पौराणिक कथा में अगिया बेताल एक ऐसा भूत होता है जो मुंह से रह-रह कर आग फेंकता है। वैसे भाजपा-संघ में अगिया बेताल की कभी कमी नहीं रही परंतु जब से हिमंत विस्वा सरमा वर्ष 2015 में कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए हैं तब से भाजपा के कई अगिया बेताल उनके सामने बौने लगते हैं। अब उनसे बड़े अगिया बेताल कौन-कौन हैं, यह किसी को बताने की जरूरत नहीं है। पहले यह अगिया बेताल असम में आग फेंकता रहता था परंतु अब यह पूरे देश में आग लगाता फिरता है। कुछ दिन से इसे झारखंड का चुनाव प्रभारी बनाया गया है तब से यह झारखंड में आग लगा रहा है।
हिमंत विस्वा सरमा ने असम में भाजपा को सत्ता में बनाए रखने के लिए असम में रह रहे गैर असमिया भाषी मुसलमानों को निशाना बनाया। ‘‘मियां’’ ‘‘बंगाली घुसपैठिया’’ कहकर निरंतर गालियां दीं। ‘‘मियां’’ मुसलमानों के लिए असम में एक अपमानजनक शब्द है। हिमंत विस्वा सरमा जो काम असम में करते हैं वही काम वह अब झारखंड में कर रहे हैं। झारखंड में बांग्लादेशी घुसपैठियों की झूठी बातें करके वहां धार्मिक ध्रुवीकरण करने की कोशिश कर रहे हैं। झारखंड की विधानसभा के चुनाव से पहले यह अगिया बेताल आग ही आग उगल रहा है।
अगिया बेताल का एक मतलब एक ऐसे आदमी से भी है जो हमेशा गुस्से से भरा रहता है और दूसरों को नुकसान पहुंचता है। हिमंत विस्वा सरमा ऐसा ही अगिया-बेताल है जो पूरे भारतीय समाज को नुकसान पहुंचा रहा है। मोहन भागवत और मोदी ने एक से बढ़कर एक अगिया बेताल पाल रखे हैं। हालांकि कोई भी अगिया बेताल इन दोनों के सामने कुछ खास नहीं है।
हिमंत विस्वा सरमा : अगिया बेताल
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को