होश खोते होसबोले

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ट्रम्प से लेकर संघ तक सब ‘वोकिज्म’ (Wokeism) से परेशान हैं। ट्रम्प अपने यहां इसे खतरा बताता है तो संघ भारत में इसे खतरा बताता है। दोनों को एक ही चीज परेशान कर रही है। दोनों ‘वोक’ को देखते हैं और अपने होश खो बैठते हैं। 
    
परेशान संघ के महासचिव दत्तात्रेय होसबोले तो ‘वोकिज्म’ से इतने परेशान हैं कि वे इसे भारतीय समाज को गुलाम बनाने की नयी रणनीति के तौर पर देखते हैं। कोई कह सकता है साहब जब देश गुलाम था तब तो आप अंग्रेजों की मांद में सो रहे थे। पूरा देश जगा हुआ था सिर्फ आप ही थे जो सोये हुए थे। जब देश आजाद हो गया तब आप जग गये और लगे हैं देश को सुलगाने। 
    
जनाब होसबोले कहते हैं देश की सामाजिक और सांस्कृतिक सीमाएं कमजोर हो रही हैं। ‘वोकिज्म’ इन सीमाओं को कमजोर कर रहा है। जो पूरे देश हिन्दू सभ्यता व हिन्दू संस्कृति के एक ही रंग में रंगना चाहता है उसे यह चिंता है कि ‘लिबरेलाइजेशन और ग्लोबलाइजेशन’ के नाम पर सभी सांस्कृतिक पहचान व सभ्यताओं को एक ही रंग में रंगा जा रहा है। पश्चिमी विचारधारा ‘जेनरेशन’ को बर्बाद कर रही है। हिटलर-मुसोलिनी को पूजने वाले संघ के पुरखों के बारे में होसबोले न कुछ बोल सकते थे न कुछ बोले। आपके विचार से लेकर वेशभूषा तक पश्चिमी है। 
    
‘वोकिज्म’ क्या है? वोकिज्म अंग्रेजी के वोक (Woke) शब्द से निकला है जिसका मतलब है जागा हुआ। जो कोई अपने हक के लिए जागा हुआ है वह ‘वोक’ है। चाहे वह रंगभेद के खिलाफ अमेरिका में लड़ने वाला हो या फिर भारत में जातिवाद, मर्दवाद के खिलाफ लड़ने वाला हो। धर्म, नस्ल, जाति, लिंग, वर्ग राज्य आदि के कारण पैदा होने वाले भेदभाव, उत्पीड़न, दमन आदि का विरोध करने वाले सभी ‘वोक’ हैं। और चाहे संघ हो या ट्रम्प इनमें से हर किसी को ‘वोकिज्म’ से दिक्कत है। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता