हिंदू राष्ट्रवादी और मजदूर वर्ग

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आज भारत में राष्ट्रवादियों की एक ऐसी जमात मौजूद है जो भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना चाहती है। इन राष्ट्रवादियों को हिंदू राष्ट्रवादी कह सकते हैं। इन हिंदू राष्ट्रवादियों के हिंदू राष्ट्र में मजदूर वर्ग की क्या स्थिति होगी इसे इनके द्वारा समय-समय पर बतलाया जाता रहता है।
    
अभी हाल में ही एक ऐसी घटना हुई जिसने हिंदू राष्ट्रवादियों की नजर में मजदूर वर्ग की क्या अहमियत है, इस बारे में इनका दृष्टिकोण साफ कर दिया। दरअसल अमेरिका के नये-नये बने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प (हालाकि वे दूसरी बार राष्ट्रपति बने हैं) ने उन 104 भारतीयों को हथकड़ी और बेड़ियों में बांधकर वापिस भारत भेज दिया जो मजदूरी करने अमेरिका गये हुए थे। ये भारतीय मजदूर किसी तरह पैसा कमाकर अपने परिवार की बेहतरी के लिए अमेरिका गये थे। दरअसल रुपये और डालर का भारी अंतर (1 डालर=87 रुपया) इन्हें अमेरिका की और ले गया। जैसे किसी नेपाली मजदूर को नेपाली रुपया और भारतीय रुपया का अंतर उसे भारत की तरफ खींचता है। 
    
डोनाल्ड ट्रम्प अमेरिकी राष्ट्रवादी हैं जिन्होंने दूसरे देश से आये मजदूरों को अमेरिका से निकालने के लिए और उनको अपमानित करने के लिए यह रास्ता चुना। जाहिर है यह न केवल उन मजदूरों का अपमान था बल्कि यह उन मजदूरों के देश का भी अपमान था। लेकिन भारत के हिंदू राष्ट्रवादियों का राष्ट्रवाद इस सबसे आहत नहीं हुआ। आखिर होता भी कैसे इन्हीं हिंदू राष्ट्रवादियों ने तो इन्हीं डोनाल्ड ट्रम्प को 2020 में जिताने के लिए पूजा अर्चना की थी।
    
हिंदू राष्ट्रवादियों के नेताओं से लेकर कार्यकर्ताओं तक सबने इन मजदूरों को ही लताड़ना शुरू कर दिया। इन्होंने इन मजदूरों की उस मजबूरी को जानने की कोशिश नहीं की कि आखिर क्यों लाखों रुपये खर्च कर अपनी जान को दांव पर लगाकर ये मजदूर अमेरिका गये। विकास के जिस गुजरात माडल के दम पर हिंदू राष्ट्रवादी सत्ता में पहुंचे उस गुजरात से इतनी बड़ी संख्या में लोग अमेरिका क्यों जा रहे हैं। हरित क्रांति के माडल रहे पंजाब से लोग पलायन कर क्यों अमेरिका का रुख कर रहे हैं। 
    
जिन भारतीय मजदूरों को वापिस भारत भेजा गया है ये अमेरिका में सबसे घटिया दर्जे का काम करने को मजबूर होते हैं। लेकिन उस काम से वे इतना कमा लेने की उम्मीद करते हैं जितना भारत में नहीं कर सकते। इस पैसे (डालर) को जब वे भारत भेजते हैं तब उस डालर से जो उनके मुद्रा भंडार में वृद्धि होती है तब उनको उनके इस पैसे से तो कोई दिक्कत नहीं होती। बिल्कुल उसी तरह जैसे इन हिंदू राष्ट्रवादियों के पूर्वजों को शूद्रों से पैसे लेने में कोई दिक्कत नहीं होती थी। लेकिन जब इन मजदूरों के साथ खड़े होने का वक्त आता है तो ये अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। जब पूंजीपति (अडाणी) की बात आती है तो वे उसके साथ खड़े होते हैं लेकिन मजदूरों के साथ नहीं। 
    
आज इन हिंदू राष्ट्रवादियों ने खुद भारत के अंदर मजदूरों की स्थिति अत्यंत दयनीय बना दी है। देशी-विदेशी पूंजीपतियों के आगे इन्होंने भारतीय मजदूर को चारे की तरह फेंक दिया है। अभी हाल में सुजुकी के मजदूरों के साथ जिस तरह का व्यवहार इन हिंदू राष्ट्रवादियों ने किया वह दिखाता है कि हिंदू राष्ट्र बन जाने पर मजदूर वर्ग की क्या स्थिति होगी। अमेरिका से आये मजदूरों के साथ इनका व्यवहार इनकी वर्गीय पक्षधरता के कारण को ही दिखाता है।

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