इजराइल को भारतीय मजदूरों का निर्यात

इजराइल-फिलिस्तीन के बीच जारी युद्ध के बीच यह खबर आ रही है कि भारत करीब 1 लाख मजदूर इजराइल को भेजेगा। ये मजदूर उन फिलिस्तीनी मजदूरों का स्थान लेंगे जो अब तक इजराइल में काम करते रहे हैं। यानी अब इजराइल न केवल फिलिस्तीनियों को युद्ध के जरिये मारेगा वरन जो मजदूर उसके यहां काम कर अपना जीवन यापन कर रहे थे वे अपनी आजीविका गंवा कर इधर-उधर भटकने को मजबूर होंगे।
    
दरअसल मई 2023 में इजराइल के विदेश मंत्री जब भारत आये थे तो इजराइल और भारत के बीच एक समझौता हुआ था जिसके तहत भारत इजराइल को 42,000 मज़दूर भेजेगा, तय हुआ था। इन मजदूरों का अधिकांश हिस्सा (34,000 मजदूर) निर्माण क्षेत्र में लगना था। युद्ध शुरू होने के बाद इजराइल ने 90,000 और मजदूरों की मांग भारत से की है। इजराइल की योजना यह थी कि वह फिलिस्तीनी मजदूरों को काम से हटा देगा। और मजदूरों की यह कमी भारत से पूरी करेगा। इसके अलावा चीन और मोरक्को से भी वह मजदूर अपने देश बुलाना चाहता है।
    
इजराइल द्वारा फिलिस्तीनी मजदूरों को हटाकर अन्य देशों के मजदूरों को अपने यहां काम पर लगाना यह दिखाता है कि वह फिलिस्तीनी मजदूरों को अपने यहां से हटाकर इजराइल की दक्षिणपंथी ताकतों का तुष्टीकरण चाहता है। दूसरे जिस तरह से वह फिलिस्तीनी आबादी का दमन कर रहा है, कत्लेआम कर रहा है, उससे वह भयभीत भी है कि कहीं ये फिलिस्तीनी मजदूर किसी मोड़ पर उसके लिए खतरा न बन जाएं।
    
फिलिस्तीनी आबादी का कत्लेआम कर रहे इजराइल को अब फिलिस्तीनी मजदूर भी नहीं चाहिए। इजराइल गाजा पर हमले के बाद से अब तक 90,000 फिलिस्तीनी मजदूरों का वर्क परमिट समाप्त कर चुका है और वह इन मजदूरों की भरपाई भारतीय मजदूरों से करना चाहता है। सबसे ज्यादा फिलिस्तीनी मजदूर निर्माण क्षेत्र में लगे हैं। 
    
एक ओर भारत सरकार इजराइल में फंसे भारतीयों को निकाल वापस भारत लाने का विशेष आपरेशन चला रही है दूसरी ओर इजराइल द्वारा मजदूरों की मांग पर विचार कर रही है। यह बात दिखाती है कि शासकों के लिए मजदूरों की जान की कोई कीमत नहीं है। भारतीय शासक अगर मजदूर इजराइल भेजने के लिए सहमत होते हैं तो यह फिलिस्तीनी मजदूरों के पेट पर भारत द्वारा लात लगाने सरीखा होगा। पर इजराइल से गलबहियां करते भारतीय फासीवादी शासक जब फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष से ही किनाराकशी कर रहे हैं तो भला उन्हें फिलिस्तीनी मजदूरों की क्या चिंता होगी। 
    
भारत-इजराइल के शासक चाहे जो भी षड्यंत्र फिलिस्तीन के खिलाफ करें पर मजदूर वर्ग की एकजुटता और फिलिस्तीनी संघर्ष के समर्थन के लिए जरूरी है कि भारतीय मजदूर फिलिस्तीनी मजदूरों के पेट पर लात लगाने की मुहिम के भागीदार न बनें। भारत के कुछेक केन्द्रीय ट्रेड यूनियन फेडरेशनों ने भारत से फिलिस्तीनी मजदूरों की जगह लेने के लिए मजदूर भेजे जाने का उचित ही विरोध किया है। इस तरह उन्होंने फिलिस्तीनी मुक्ति संघर्ष के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया है। जरूरत है कि भारतीय मजदूर-मेहनतकश भारत के फासीवादी शासकों पर इस हद तक दबाव कायम करें कि उन्हें इजराइल से गलबहियां बंद करनी पड़ें, फिलिस्तीनी संघर्ष का समर्थन करना पड़े। इसी तरह भारत के मेहनतकश, फिलिस्तीनी अवाम के साथ एकजुटता जता सकते हैं। 

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को