मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने की तैयारी

मनुस्मृति की पुजारी संघ-भाजपा सरकार शिक्षा के भगवाकरण को नयी ऊंचाईयों पर पहुंचाने जा रही है। किसी से छिपा नहीं है कि मनुस्मृति किस हद तक महिला विरोधी, दबी-कुचली जातियों की विरोधी संहिता रही है। अंबेडकर ने इसकी प्रतियां जलाकर जाति व्यवस्था के प्रति अपना आक्रोश व्यक्त किया था। आज फासीवादी सरकार इस मनुस्मृति को पाठ्यक्रम में शामिल करने को उतारू हो चुकी है। 
    
दिल्ली विश्वविद्यालय के विधि संकाय के स्नातक पाठ्यक्रम में न्यायशास्त्र विषय में इस घोर नारी विरोधी-जातिवादी पुस्तक को शामिल किये जाने के प्रयास चल रहे हैं। संस्कृत के लेखक गंगानाथ झा की लिखी पुस्तक ‘मुनस्मृति विद द महाभाष्य आफ मेघातिथि’ को एलएलबी के पहले सेमेस्टर में पढ़ाने का सुझाव दिया गया है। अभी इसे पढ़ाने की योजना को दिल्ली विश्वविद्यालय की शैक्षणिक मामलों की अकादमिक परिषद द्वारा पारित किया जाना बाकी है। 
    
दरअसल सरकार राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 के तहत सीखने के भारतीय दृष्टिकोण के नाम पर ऐसे तमाम परिवर्तन पाठ्यक्रम में कर चुकी है जिनका उद्देश्य संघ-भाजपा के फासीवादी एजेण्डे को आगे बढ़ाना है। मनुस्मृति पढ़ाने की कवायद भी इसी योजना का एक आगे बढ़ा हुआ कदम है। इसके जरिये प्राचीन संस्कृति के नाम पर मनुस्मृति का बखान किया जायेगा। जाति-वर्ण व्यवस्था को जायज ठहराया जायेगा। परिवार के हित के नाम पर महिलाओं पर बंधनों का पक्ष लिया जायेगा। कुल मिलाकर मध्ययुगीन सवर्ण वर्चस्व वाली ब्राह्मणवादी जीवन शैली-संस्कृति को सही ठहराया जायेगा। उसके शोषणकारी-अपमानजनक चरित्र को छिपाने का काम किया जायेगा। 
    
हालांकि सरकार की इस कवायद का शिक्षाविदों की ओर से विरोध शुरू हो चुका है। छात्र संगठनों, दबे-कुचले समुदायों के संगठनों व महिला संगठनों के संभावित विरोध के मद्देनजर सरकार के लिए अपने इस कारनामे को व्यवहार में उतारना आसान नहीं होने वाला है। इसीलिए शुरूआत में सरकार मनुस्मृति को ‘सुझाये गये पाठ’ के रूप में प्रस्तावित कर पढ़ने की सलाह दे रही है। वक्त आने पर सरकार इसे मूल पाठ्यक्रम में शामिल करने से भी पीछे नहीं हटेगी। 
    
फासीवादी सरकार की मनुस्मृति के प्रति यह निष्ठा ही दिखलाती है कि ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का नारा देने वाली सरकार किस कदर नारी विरोधी है। यह जाति-वर्ण व्यवस्था की घोर समर्थक है। यह समाज में बीते 2-3 सौ वर्षों में महिला स्वतंत्रता व दबे-कुचले समुदायों की स्वतंत्रता की सारी कवायदों का एक झटके में गला घोंट मध्य युग की ओर वापसी पर उतारू है। मनुस्मृति को यह पाठ्यक्रम से शुरू कर संविधान तक में उतारने की पक्षधर है। उसके ‘फासीवादी हिन्दू राष्ट्र’ के घोषित लक्ष्य के लिये ये सारे इंतजाम जरूरी हैं। इन इंतजामों के जरिये सरकार खुद के असली खूंखार चेहरे को नग्न रूप में सबके सामने ला रही है। वक्त की मांग है कि इनके असली चेहरे को पहचान कर इन्हें अपने भविष्य के साथ खिलवाड़ करने से रोक दिया जाए। 

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