फ्रांस : हत्यारी पुलिस के खिलाफ जनता सड़कों पर

17 वर्षीय डिलीवरी ड्राइवर की पुलिस द्वारा हत्या

27 जून को फ्रांस के पेरिस के नानतारे में एक 17 वर्षीय डिलीवरी ड्राइवर की पुलिस द्वारा गोली मारकर हत्या कर दी गयी। इस हत्या के विरोध में बड़े पैमाने पर लोग सड़कों पर उतर प्रदर्शन करने लगे हैं। पुलिस अधिकारी ने महज इसलिए कार ड्राइवर पर गोली चला दी कि उसने सड़क के नियमों का उल्लंघन किया व पुलिस द्वारा रोकने पर भी नहीं रुका। दोषी पुलिस अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया है। 
    
पुलिस के अनुसार अधिकारी ने गोली आत्मरक्षा में इसलिए चलायी क्योंकि ड्राइवर गाड़ी को अधिकारी के ऊपर चढ़ा देता। हालांकि बाकी प्रत्यक्षदर्शियों ने पुलिस की इस कहानी का खण्डन किया है। पिछले कुछ वर्षों में पुलिस द्वारा समूचे फ्रांस में कई निर्दोष लोगों की हत्यायें की गयी हैं। इसीलिए जब एक और हत्या की खबर सामने आयी तो लोगों का गुस्सा उफन कर जगह-जगह सड़कों पर फूट पड़ा। आक्रोशित लोगों ने जगह-जगह तोड़फोड़ व आगजनी भी की। 
    
पुलिस द्वारा बढ़ती ज्यादती के पीछे सरकार द्वारा दमनकारी प्रावधान बढ़ाना, पुलिस को अधिक अधिकार देना व लोगों के अधिकारों में कटौती कारक रहे हैं। अकेले पिछले वर्ष केवल ट्रैफिक नियम तोड़ने को लेकर 13 लोगों की पुलिस द्वारा हत्या की गयी। 
    
आक्रोशित जनता के प्रदर्शन लगातार जारी हैं। वे पुलिस को अधिक जवाबदेह बनाने की मांग कर रहे हैं। प्रदर्शनों के दबाव में राष्ट्रपति इमानुएल मैक्रां को सामने आना पड़ा व पुलिस की बर्बरता की निन्दा करनी पड़ी। राष्ट्रपति ने कहा कि इस घटना से पूरा देश हिल गया है। 
    
अब तक हुए प्रदर्शनों व तोड़फोड़-आगजनी में 31 लोगों को पुलिस ने गिरफ्तार किया है। 25 पुलिस वाले घायल हुए हैं व 40 कारें फूंक दी गयी हैं। इस हत्याकाण्ड की तस्वीरें व वीडियो वायरल होने ने लोगों के गुस्से को और भड़का दिया जिसमें पुलिस वाले को मनमाने ढंग से हत्या करते देखा जा सकता है। 
    
फ्रांस में सड़कों पर बारम्बार जनता का उतरना दिखाता है कि जनता की आर्थिक दुर्दशा लगातार बढ़ रही है। पेंशन सुधारों के बाद इस मसले पर जिस तरह जनता ने प्रतिक्रिया दी वह दिखाती है कि जनता अब शासकों की मनमर्जी और सहने को तैयार नहीं है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।