अपनी-अपनी परंपरा
अल-बरूनी ग्यारहवीं सदी में भारत आया था। वह सालों तक भारत में रहा। वह ज्ञान-विज्ञान का पिपासु था। भारत आने का उसका उद्देश्य भी यही था कि वह हिन्दुस्तान के ज्ञान-विज्ञान से
अल-बरूनी ग्यारहवीं सदी में भारत आया था। वह सालों तक भारत में रहा। वह ज्ञान-विज्ञान का पिपासु था। भारत आने का उसका उद्देश्य भी यही था कि वह हिन्दुस्तान के ज्ञान-विज्ञान से
‘‘बस, अब बहुत हुआ’’ राष्ट्रपति मुर्मू का बयान हर अखबार के फ्रंट पेज पर छपा। जो खूब चर्चा का विषय बना।
महिला पहलवान विनेश फोगाट ओलंपिक मेडल जीतते-जीतते रह गयीं। 50 किलो भार वर्ग में 100 ग्राम वजन ज्यादा होने से उन्हें फाइनल में पहुंचने के बाद भी अयोग्य करार दिया गया। ये वह
बहुत सारे व्यवस्थापरस्त लोग इस बात पर हैरानी जता रहे हैं कि पिछले सालों में तेज आर्थिक विकास वाले बांग्लादेश में लोग इस तरह क्यों सड़कों पर उतर आए?
लोकसभा चुनाव 2024 के परिणाम में भाजपा को बहुमत से कम जब 240 सीटें मिलीं तो मोदी की सरकार बनाने में राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के घटक दलों खासकर जेडीयू प्रमुख नीत
देश के पांच राज्यों में विधानसभा की रिक्त हुई 13 सीटों पर 10 जुलाई को हुए उपचुनाव के नतीजों में भाजपा केवल 2 सीटें ही जीत पाई। बाकी 11 सीटों में एक सीट निर्दलीय ने और शेष
औद्योगिक घरानों से लेकर धर्म गुरुओं तक और राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से लेकर नौकरशाहों तक सभी आजकल सरयू में नहाकर भारी पुण्य कमा रहे हैं। इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित
बीते 9-10 वर्षों में मोदी सरकार ने कम से कम 7 बार संसद में इस बात का वायदा किया कि वह अडाणी ग्रुप के घोटालों की जांच कर रही है पर हर बार जनता का ध्यान हटते ही उसने जांच क
भारत में चुनाव में मुफ्त में शराब बांटी जाती है यह आम बात है। खास बात यह है कि कोई बंदा चुनाव में जीत जाये और वह बकायदा आबकारी विभाग से अनुमति ले और पुलिस की उपस्थिति में
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को