राजनीति

गदे पहलवान तो पहलवान गधे में बदले

भारत की संसद में 1 जुलाई को जो हुआ वह अजब-गजब था। लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी की गर्जन-तर्जन से सत्ता पक्ष बेचैन था। इधर राहुल गांधी बोलते उधर कभी प्रधानमंत्री,

इतनी जल्दी तो चूजा भी मुर्गा नहीं बनता

बहन मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनन्द को ठीक चुनाव के पहले अपनी पार्टी बसपा का राष्ट्रीय समन्वयक और उत्तराधिकारी घोषित किया था। आकाश आनन्द ने चुनाव में ऐसे-ऐसे बयान दिये क

‘बौने नायकों’ से पहाड़ सी उम्मीद

इस लोकसभा चुनाव के दौरान भाजपा को हराने की इच्छा रखने वाला उदारवादी बुद्धिजीवियों का समूह आंख मूंद कर इंडिया गठबंधन की तारीफों में जुटा रहा। चुनाव में इस गठबंधन के बेहतर

निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी...

पहले तो खबर आयी कि अयोध्या में भाजपा के प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा और अब खबर यह है कि ‘पहली बारिश में ही टपकने लगा श्री राम मंदिर में पानी’। जिस रामपथ के निर्माण

जम्मू-कश्मीर : ताजा आतंकी हमले

जम्मू कश्मीर में 9 जून के बाद से एक के बाद एक आतंकी हमले हुए। सबसे गंभीर हमले में 9 श्रद्धालु जो वैष्णों देवी जा रहे थे, मारे गये। कुछ जवानों व आतंकियों के भी मारे जाने क

लंगड़ी तुलना

कहावत है तुलनाएं हमेशा लंगड़ी होती हैं। और जब तुलना मोदी और नेहरू की हो तो तुलना की दोनों टांगें टूट जाती हैं। इस बार बहुत हल्ला है कि मोदी ने तीसरी बार लगातार प्रधानमंत्र

कुवैत में मजदूरों की मौत : ये अग्निकांड नहीं, हत्याकांड है !

12 जून को कुवैत की एक इमारत में आग लगने से 50 से अधिक मजदूर मारे गये। मारे जाने वाले मजदूरों में से 41 भारतीय बताये जा रहे हैं। इस छोटी सी इमारत में 196 मजदूर ठूंस-ठूंस क

‘‘परिपक्वता’’ का अभाव

करीब पांच महीने पहले ही बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने अपने भतीजे आकाश आनंद को पार्टी का राष्ट्रीय समन्वयक और अपना उत्तराधिकारी घोषित किया था। अब मायावती ने आनंद

आलेख

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

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7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

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अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।