श्रीलंका संकट
पिछले वर्ष श्रीलंका में अभूतपूर्व संकट आया था। यह संकट आर्थिक भी था और राजनीतिक भी। यह कहा जा सकता है कि श्रीलंका में लंबे समय से जारी आर्थिक संकट ने पिछले वर्ष के राजनैतिक संकट को भी पैदा किया था।
इस संकट का परिणाम यह निकला कि राजपक्षे परिवार को देश छोड़कर भागना पड़ा। और एक ऐसा व्यक्ति देश का राष्ट्रपति बन बैठा जिसकी पार्टी का श्रीलंकाई संसद में वह स्वयं इकलौता प्रतिनिधि था। इस संकट का दूसरा परिणाम यह निकला कि जनअसंतोष का उभार इतना तीखा था कि उसमें राष्ट्रपति कार्यालय व प्रधानमंत्री कार्यालय तक पर भी प्रदर्शनकारियों ने या तो कब्जा कर लिया या उन्हें आग के हवाले कर दिया था।
रानिल विक्रमसिंघे के राष्ट्रपति बनने के बाद ऊपरी तौर पर श्रीलंका में राजनीतिक स्थायित्व दिखाई देता है पर आर्थिक मोर्चे पर स्थितियों में बहुत ज्यादा सुधार नहीं है। साम्राज्यवादी हस्तक्षेपों की वजह से राजनीतिक दल विक्रमसिंघे को राष्ट्रपति बनाने पर सहमत तो हो गये पर यही साम्राज्यवादी हस्तक्षेप और लूट श्रीलंका में नये उभार का कारण भी बन सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विदेशी ऋणदाताओं से कर्ज लेने के लिए उनकी शर्तों को भी श्रीलंका सरकार को मानना पड़ रहा है। इन शर्तों के अनुरूप सरकार सरकारी व्यय को कम करने हेतु कटौती कार्यक्रम चला रही है। पहले ही आर्थिक संकटों का सामना कर रही श्रीलंकाई जनता को यह और ज्यादा आर्थिक संकटों में धकेलता है।
अभी मार्च में ही श्रीलंका के सार्वजनिक क्षेत्र के तमाम कर्मचारियों मसलन बंदरगाह, अस्पताल, स्कूल, रेलवे आदि ने कार्य करने से मना कर दिया था। 40 ट्रेड यूनियनों के हजारों कर्मचारियों ने उच्च करों की वापसी, बिजली की दरों में कमी आदि के मुद्दे सरकार के समक्ष उठाये।
दूसरी ओर विगत वर्ष के प्रदर्शनों के दौरान गिरफ्तार किये गये हजारों राजनीतिक कार्यकर्ताओं और छात्रों को विक्रमसिंघे की सरकार ने अब तक रिहा नहीं किया है। जुलाई के अंतिम सप्ताह और अगस्त 2022 में भी छात्र संघों के कई नेताओं को हिरासत में लिया गया था। कई प्रदर्शनकारियों को आतंकवाद निरोधक कानून के तहत गिरफ्तार किया गया था।
7 जून 2023 को छात्रों के द्वारा कोलम्बो की सड़कों पर विरोध प्रदर्शन आयोजित किया गया। छात्रों की मुख्य मांग थी कि गिरफ्तार छात्रों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को रिहा किया जाये। विक्रमसिंघे जो कि प्रकारान्तर से राजपक्षे की मदद से ही राष्ट्रपति की कुर्सी पर बैठा, जुलाई-अगस्त से ही दमन पर आमादा है। कानून व्यवस्था के नाम पर उसने पहले आपातकाल लगाया और तब से वह सभी प्रकार के प्रदर्शनों को निरंकुशता के साथ कुचल रहा है। मौजूदा प्रदर्शनों में भी उसकी पुलिस आंसू गैस के गोले और पानी की बौछारों से दमन कर रही है। इंटर यूनिवर्सिटी स्टूडेन्ट्स फेडरेशन के संयोजक मटूशान चन्द्राजिथ कहते हैं कि शिक्षा और चिकित्सा के बजट में कटौती ने छात्रों को संकट में डाल दिया है। उन्होंने यह भी मांग की है कि छात्रों के मासिक भत्ते को बढ़ाया जाये।
यह दिखाता है कि श्रीलंका में प्रदर्शन पिछले वर्ष जैसे बड़े भले ही न हो रहे हों या उतने उग्र भले ही न हों परन्तु विक्रमसिंघे सरकार की साम्राज्यवाद परस्त नीतियों का विरोध होना जारी है। श्रीलंकाई जनता पर कटौती कार्यक्रमों और करों के बोझ के चलते उसका जीवन और भी ज्यादा कष्टमय होता जा रहा है। श्रीलंका का संकट, आर्थिक और राजनीतिक दोनों खत्म नहीं हुए हैं वरन ऊपर की शांति के भीतर दावानल सुलग रहा है जो किसी भी समय पहले के संकट से बड़े संकट की ओर श्रीलंका को ले जायेगा।