शेयर बाजार का जुआघर

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पूंजीवाद में आर्थिक असमानता जितनी ज्यादा बढ़ती जाती है, उतना ही आबादी के एक हिस्से में तेज आर्थिक प्रगति की चाहत बढ़ती जाती है। पूंजीवादी समाज अमीर बनने की चाहत को गलत नहीं ठहराता। बल्कि इसके उलट यह अमीर बनने की चाहत को समाज को आगे बढ़ाने के लिए जरूरी बताता है। इस सबके बीच जब ढ़ेरों किस्से कहानियां इस रूप में प्रचारित किये जाते हैं कि कोई जूस बेचने वाला अरबपति बन गया, तो आबादी का एक हिस्सा भ्रमित हो ही जाता है और अमीर बनने के शेख चिल्ली के सपने देखने लगता है। 
    
शेयर बाजार शेख चिल्ली के सपने दिखाने वाला स्थान है। पूंजीवादी व्यवस्था शेयर बाजार को समाज की तरक्की के लिए सहयोगी और जरूरी बताता है। पूंजीवादी व्यवस्था के अनुसार शेयर बाजार किसी व्यक्ति को मौका देता है कि वह अपने मौजूदा उपभोग में कटौती कर निवेश करे और पुरुस्कार स्वरूप भविष्य में देश की आर्थिक तरक्की में हिस्सा बंटाते हुए अपनी आर्थिक हैसियत को ऊंचा करे। इनके अनुसार शेयर बाजार में रिटर्न हासिल करने की संभावना जितनी ऊंची होगी, कोई व्यक्ति उतना ही ज्यादा अपने तात्कालिक उपभोग में कटौती करेगा। इन बातों में यह अंतर्निहित है कि कोई व्यक्ति अमीर बनने की चाहत में अगर कर्ज लेकर या अपने बाप-दादा की सम्पत्ति बेचकर भी निवेश करता है, तो वह अपना भले ही नुकसान करवा बैठता है, लेकिन देश और समाज को आर्थिक तौर पर आगे ले जा रहा होता है। ऐसे में छोटी हैसियत वाले लोगों में अमीर बनने की चाहत पैदा करना और उसको खाद-पानी देना समाज को आगे ले जाने वाला काम भला क्यों नहीं बन जाएगा। 
    
सेबी द्वारा जारी एक रिपोर्ट यह दिखाती है कि भारत में ‘फ्यूचर’ और ‘आप्शन’ की व्युत्तपतियों में छोटी आमदनी वाले व्यक्तियों के द्वारा बढ़ती संख्या में निवेश किया जा रहा है। (फ्यूचर और ऑप्शन सट्टा लगाने के तरीके हैं जिसमें किसी शेयर की भविष्य में कीमतों के अनुमान पर दांव लगाया जाता है।) इनमें से 90 प्रतिशत से ज्यादा लोग शेयर बाजार में नुकसान उठाते हैं। इसके नुकसान की कीमत पर प्रोपराइटरी ट्रेडर्स और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशक लाभ हासिल करते हैं। प्रोपराइटरी ट्रेडर्स वे संस्थागत निवेशक होते हैं जो कि अपने धन का निवेश करते हैं, न कि अपने क्लाइंट के धन का। 
    
सेबी की रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2022 से वर्ष 2024 के तीन वर्षों में 1013 करोड़ व्यक्तिगत निवेशकों ने कुल 1.81 लाख करोड़ रुपये का नुकसान फ्यूचर और ऑप्शन के व्यापार में उठाया। नुकसान उठाने वाले एक करोड़ निवेशकों (कुल का 92.8 प्रतिशत) ने औसतन 2 लाख रुपये प्रति व्यक्ति का नुकसान उठाया। इनमें से चार लाख निवेशक ऐसे थे जिन्होंने 28 लाख रुपये का प्रति व्यक्ति नुकसान उठाया। इन सभी व्यक्तिगत निवेशकों में से लगभग 75 प्रतिशत निवेशकों की घोषित वार्षिक आय 5 लाख रुपये से कम है। 
    
इस सब के विपरीत वर्ष 2024 में प्रोपराइटरी ट्रेडरों ने 33,000 करोड़ और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों ने 28,000 करोड़ रुपये का सकल लाभ कमाया। इनमें से 95 प्रतिशत से ज्यादा एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग के जरिए था। एल्गोरिद्मिक ट्रेडिंग से आशय कम्प्यूटर प्रोग्राम के जरिए शेयर मार्केट में खरीद-बेच करना होता है जिसमें कोई निवेशक हर सेकेंड में बड़ी संख्या में खरीदता और बेचता है। सेबी ने लाभ कमाने वाले इन निवेशकों के नाम नहीं बताए हैं। 
    
सेबी अपनी रिपोर्ट में चिह्नित करती है कि फ्यूचर और ऑप्शन के व्यापार में व्यक्तिगत निवेशक भारी मात्रा में हानि उठाते हैं। इस सबके बावजूद वह स्वाभाविक रूप से अपने को ऐसे कदमों तक ही सीमित रखता है जिससे इन निवेशकों का भरोसा शेयर बाजार पर बना रहे और अमीर बनने की चाहत में वे या अन्य नए निवेशक शेयर बाजार में आते रहें और अपनी जमा पूंजी लुटाते रहें। सेबी अपनी जिम्मेदारी व्यक्तिगत निवेशकों को जोखिम प्रबंधन के लिए शिक्षित करने तक ही सीमित रखता है। 
    
पिछले तीन वर्षों में फ्यूचर और ऑप्शन में निवेश करने वाले व्यक्तिगत निवेशकों की संख्या लगभग दोगुनी हो गयी है। तीस वर्षों से कम उम्र के निवेषक 2023 में 31 प्रतिशत थे जो कि 2024 में 43 प्रतिशत हो गये हैं। 
    
फ्यूचर और आप्शन में निवेश करने वाले कुल निवेशकों का 72 प्रतिशत तीस बड़े शहरों से बाहर का है। म्युचअल फंड के निवेशकों के मामले में यह आंकड़ा 62 प्रतिशत है। 
    
फ्यूचर और ऑप्शन में निवेश करने वाले निवेशकों में लगातार दो वर्षों तक हानि उठाने वाले निवेशकों में से 75 प्रतिशत ने तीसरे वर्ष भी निवेश किया। 
    
सेबी के ये आंकड़े दिखाते हैं कि देश की लगभग एक करोड़ की आबादी के लिए फ्यूचर और ऑप्शन में सट्टा लगाना एक नशे सरीखा बन चुका है। अमीर बनने की चाहत में वे बार-बार नुकसान उठाकर फिर से जोखिम उठा रहे हैं। उनके भीतर पैदा किया गया लालच कुछ सटोरियों को हजारों-लाखों करोड़ रुपयों का लाभ पहुंचा रहा है। 
    
जुआ-सट्टा-लॉटरी आदि कोई समाजोपयोगी गतिविधि नहीं है। इसके जरिए धन पैदा नहीं होता बल्कि सिर्फ एक हाथ से दूसरे हाथ में चला जाता है। ज्यादातर मामलों में धन निचली आमदनी वाले हाथ से निकलकर ऊंची आमदनी वाले हाथ में चला जाता है। तब भी पिछले वर्षों में ऐसी गतिविधियां बहुत तेजी से बढ़ रही हैं। यह सिर्फ और सिर्फ पूंजीवाद की पतनशीलता को व्यक्त कर रहा है।  

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