तुर्की में विरोधियों का दमन और विरोध प्रदर्शन

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तुर्की में लगातार विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ये विरोध प्रदर्शन उस समय शुरू हुए जब 19 मार्च को तुर्की के सबसे बड़े शहर इस्ताम्बुल के मेयर एक्रेम इमामोग्लू की गिरफ्तारी हुई। एक्रेम इमामोग्लू कमालवादी पार्टी की तरफ से राष्ट्रपति पद के उम्मीदवार होने वाले थे। तुर्की के राष्ट्रपति तैय्यब एर्दोगान उन्हें अपना सबसे सशक्त प्रतिद्वन्द्वी मानते हैं। इसलिए उन्हें पहले राष्ट्रपति पद के लिए अनिवार्य अर्हता डिग्री से वंचित कराया। बाद में गिरफ्तारी करके उनको जेल में डाल दिया। उनकी गिरफ्तारी का कारण तुर्की वर्कर्स पार्टी (पी.के.के.) के साथ उनकी सांठगांठ बताया और उन पर कई भ्रष्टाचार और वित्तीय अनियमितता के आरोप लगाये। यह अजीब बात है कि एक तरफ तुर्की के राष्ट्रपति पी.के.के. के साथ खुद सांठगांठ करने की कोशिश कर रहे हैं। अभी जेल में बंद पी.के.के. के नेता ने पी.के.के. से कहा है कि वे तुर्की की सत्ता के विरुद्ध हथियारबंद संघर्ष बंद कर दें। यह तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोगान द्वारा पी.के.के. के साथ किसी समझौते का संकेत है। 
    
राष्ट्रपति एर्दोगान तुर्की में 2002 से सत्ता में हैं। उनकी सत्ता के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथ मजबूत हुआ है। इस्लामिक कट्टरपंथ और पूंजीपति वर्ग की यह घोर प्रतिक्रियावादी सत्ता है। यह अधिकाधिक दक्षिणपंथ की ओर गई है। इसने अपने शासनकाल के दौरान मजदूर वर्ग और मेहनतकश आबादी का दमन किया है। यह अमरीकी साम्राज्यवादियों की हर उस सत्तापलट की साजिश में शामिल रही है, जिसे उन्होंने पिछले दो दशकों में अपने हित में पाया है। अभी उन्होंने हाल ही में सीरिया में असद सरकार को गिराने में और एच.टी.एस. के कट्टरपंथी जोलानी को सत्तासीन करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। आज सीरिया के उत्तरी हिस्से में तुर्की का वस्तुतः कब्जा है। तुर्की की सत्ता फिलिस्तीनियों के पक्ष में चाहे जो भी बात करती रही हो, हकीकत यह है कि यह इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता के साथ लगातार व्यापार करती रही है और उसकी युद्ध मशीनरी के लिए तेल अजरबैजान पाइपलाइन से आपूर्ति करने में मददगार रही है। 
    
एर्दोगान की सत्ता के विरोध में मजदूर वर्ग और अन्य व्यापक मेहनतकश आबादी के आंदोलन जब भी बढ़े तो उसने बेरहमी से उनका दमन किया। यही कारण है जब इसने इस्ताम्बुल के मेयर की गिरफ्तारी की तो व्यापक पैमाने पर समूची तुर्की में उसके विरुद्ध मजदूरों-मेहनतकशों और छात्रों-नौजवानों के विरोध प्रदर्शन उग्र होते गये। व्यापक पुलिस दमन और प्रतिबंधों के बावजूद लाखों की संख्या में लोग इसमें रोज शामिल होने लगे। अभी तक 2000 से ज्यादा लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है। सैकड़ों लोगों को विरोध प्रदर्शन के दौरान चोटें आयी हैं। 
    
जहां राष्ट्रपति एर्दोगान व्यापक दमन का सहारा लेकर लोगों को कुचल रहे हैं, वहीं कमालवादी पार्टी इस जन आक्रोश का इस्तेमाल करके इसे अपने चुनावी फायदे तक सीमित करना चाहती है। उसकी पूरी कोशिश यही है कि यह जन असंतोष और गुस्सा इतना न बढ़ जाये कि वह तुर्की की पूंजीवादी व्यवस्था के लिए खतरा बन जाये। 
    
राष्ट्रपति एर्दोगान एक तरफ देश के भीतर अपनी सत्ता के विरुद्ध बढ़ रहे गुस्से को दबाने के लिए दमन का सहारा ले रहे हैं वहीं दूसरी तरफ आटोमन साम्राज्य की तरह अपने राज्य को स्थापित करने के लिए अंधराष्ट्रवाद का सहारा ले रहे हैं। वे सीरिया में कब्जे को अपनी विजय के रूप में पेश करके और यूरोप में नाटो की दूसरी सबसे बड़ी सेना तथा अपने हथियार उद्योग की बेहतरी का प्रदर्शन कर रहे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी भी तुर्की के राष्ट्रपति की प्रशंसा कर रहे हैं। यूरोपीय साम्राज्यवादी भी तुर्की के इन दमनकारी कदमों की खुले आम निंदा इसलिए नहीं कर रहे हैं क्योंकि वे तुर्की की शक्ति को रूस के विरुद्ध यूक्रेन की मदद में केन्द्रित करना चाहते हैं। 
    
ऐसी स्थिति में तुर्की के भीतर प्रतिक्रियावादी दक्षिणपंथ को पराजित करने की जिम्मेदारी तुर्की की मजदूर-मेहनतकश अवाम की है और यह अंततोगत्वा पूंजीवाद के खात्मे की लड़ाई के साथ जुड़ी हुई है। 

आलेख

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संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

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