झूठ, साम्प्रदायिक वैमनस्य, पाखण्ड : ‘चौकीदार’ अब असली चोले में

लोकसभा चुनाव

19 अप्रैल को पहले चरण के मतदान के बाद संघी-भाजपाई मण्डली बौखलाई नजर आ रही है। लगभग 5 प्रतिशत कम मतदान, जगह-जगह बहिष्कार के साथ जमीनी स्तर की जनता की प्रतिक्रिया दिखला रही है कि जनता 10 वर्षों के मोदी शासन से नाराज है। राम मंदिर, धारा 370, तीन तलाक, नागरिकता संशोधन कानून, विकास का झूठा ढोल जनता को बरगला नहीं पा रहा है। इन सबके ऊपर बढ़ती बेकारी-महंगाई का मुद्दा भारी पड़ रहा है। यह अहसास होते ही 400 पार जाने का नारा देने वाली संघ-भाजपा मण्डली को सत्ता से बाहर होने का भय सताने लगा है। 
    
सत्ता जाने का भय सर्वाधिक प्रधानमंत्री मोदी के चेहरे पर नजर आने लगा है। सत्ता बचाने की खातिर उन्हें अपने दिखावटी रंग रोगन हटा कर असली रूप में सामने आना पड़ा है। मतदान के पहले चरण से पहले तक मोदी विकास का ढोल पीट रहे थे। आयुष्मान-ऋण योजनाओं-वंदे भारत रेल की बढ़ाई में जुटे थे। पर अब विकास का लबादा उतार उन्हें अपना असली रूप पेश करना पड़ा है। मानो 2002 के गुजरात दंगों के वक्त का मोदी फिर जिन्दा हो गया है। दरअसल संघ-भाजपा को झूठ-पाखण्ड के साथ साम्प्रदायिक वैमनस्य के जहर पर ही सर्वाधिक भरोसा रहा है। इसी साम्प्रदायिक वैमनस्य ने उसे फर्श से अर्श पर पहुंचाया है। यही उसका व प्रधानमंत्री का असली चेहरा है। 
    
अब ब्रह्मास्त्र के रूप में हिन्दू जनता के भीतर मुस्लिमों के प्रति वैमनस्य भरने में देश के तथाकथित ‘चौकीदार’ जुट चुके हैं। वे हिन्दू स्त्रियों से मंगलसूत्र छीने जाने, लोगों से पैतृक सम्पत्ति छीने जाने व यह सम्पत्ति ‘घुसपैठियों-मुसलमानों’ को दिये जाने का अनर्गल भय दिखाने में जुट गये हैं। वे शमशान-कब्रिस्तान की भाषा पर लौट आये हैं। मुसलमानों को खुलेआम कोसने-गरियाने में वे सारी शर्म-हया त्याग चुके हैं। झूठ-दर-झूठ बोलने, पाखण्ड करने में वे मानो गोल्ड मेडल हासिल करने की दौड़ में दौड़ रहे हैं। प्रधानमंत्री से लेकर स्थानीय संघी लम्पट अब एक ही जुबां में जहर उगल भयादोहन कर हिन्दू वोट पाने की जुगत भिड़ा रहे हैं। 
    
देश के मुखिया का ‘असली’ रूप देख कुछ ‘लोकतंत्र के रक्षक’ चिंतित व हताश हैं। पर यह येन केन प्रकारेण जीत की संघी बौखलाहट ही है जो चौकीदार को अपने असली रूप में आने को मजबूर कर रही है। चौकीदार की असलियत जितनी तेजी से जनता के सामने उजागर होती जायेगी, जनता की उससे नफरत उतनी ही तेजी से बढ़ती जायेगी। 
    
किसी भी वक्त से ज्यादा जरूरी है कि नफरत फैलाने, हिन्दू-मुसलमान करते बेकाबू हो चुके चौकीदार और उसकी मंडली के झूठे मोहपाश में फंसने से जनता को रोका जाये और फासीवादी मंडली, उसके पूंजीवादी आकाओं के असली मंसूबों को उजागर किया जाए। 

आलेख

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।