कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ जे एन यू छात्रों का एकजुटता का वक्तव्य

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ (जेएनयूएसयू) कोलंबिया विश्वविद्यालय के छात्रों के साथ अपनी अटूट एकजुटता व्यक्त करता है जो साहसपूर्वक इजरायल के युद्ध और फिलिस्तीन के खिलाफ नरसंहार के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं।
    
कोलंबिया में छात्रों को स्वतंत्र भाषण और शांतिपूर्ण विरोध का मौलिक अधिकार है। उनकी मांगें स्पष्ट हैंः कोलंबिया विश्वविद्यालय को फिलिस्तीन में नरसंहार से लाभ कमाने वाली कंपनियों में वित्तीय रूप में विनिवेश करना चाहिए।
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कोलंबिया विश्वविद्यालय को फिलीस्तीनी नरसंहार में शामिल कंपनियों को वित्त पोषित करने के लिए छात्रों के अरबों ऋणों में भुगतान की जाने वाली ट्यूशन फीस का उपयोग बंद करना चाहिए। जेएनयूएसयू न केवल इजरायल के मानवाधिकारों के उल्लंघन के खिलाफ लड़ाई में एकजुटता के साथ खड़ा है, बल्कि विश्वविद्यालय की शोषणकारी नीतियों और फिलिस्तीन में नरसंहार को बढ़ावा देने और वित्त पोषण करने में अमेरिका की प्रत्यक्ष भागीदारी के खिलाफ भी एकजुटता में खड़ा है। हम भारत के ऐतिहासिक रुख से हटकर इजराइल का समर्थन करने की अपनी आरएसएस समर्थित सरकार की स्थिति की भी निंदा करते हैं।
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यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि स्कूल आफ इंटरनेशनल स्टडीज एच.ई. एरिक गार्सेटी (भारत में अमेरिका के राजदूत) का 29 अप्रैल को एक व्याख्यान आयोजित कर रहा है।  यह कार्यक्रम फिलिस्तीन में अमेरिका समर्थित इजराइल द्वारा फैलाई जा रही त्रासदी के बीच हो रहा है। कोलंबिया विश्वविद्यालय में हुई हालिया घटनाओं के आलोक में, जेएनयूएसयू एचई गार्सेटी को निमंत्रण के खिलाफ खड़ा है, जो इजराइल द्वारा फिलिस्तीन में किए जा रहे नरसंहार में शामिल है। -जेएनयू छात्र संघ
 

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इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

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कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।