फरीदाबाद/ 21 अप्रैल 2024 को कामरेड लेनिन के स्मृति शताब्दी वर्ष में, कामरेड लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र के द्वारा वक्तव्य व फिल्म दिखाने का कार्यक्रम किया गया।
कार्यक्रम में कामरेड लेनिन के जीवन, रूसी क्रांति और इस दौरान रूस में तमाम विचार धाराओं से लेनिन ने किस तरह संघर्ष किया, पर एक वक्तव्य प्रस्तुत किया गया एवं रूसी क्रांति और 1896 से लेकर 1917 के मध्य घटित तमाम घटनाओं पर व लेनिन के जीवन पर संक्षिप्त में प्रकाश डालती फिल्म ‘वे दस दिन जब दुनिया हिल उठी’ का प्रदर्शन किया गया।
वक्तव्य में बताया गया कि लेनिन महान अक्टूबर समाजवादी क्रांति को अंजाम देने वाली पार्टी बोल्शेविक पार्टी के नेता थे। लेनिन के नेतृत्व में सोवियत मजदूरों ने अपने देश में क्रांति कर पूंजीपति वर्ग की लूट का अंत कर दिया था। मजदूरों ने क्रांति के उपरान्त पहले लेनिन व फिर स्तालिन के नेतृत्व में समाजवाद का निर्माण कर दिखा दिया था कि मजदूर न केवल सत्ता चला सकते हैं बल्कि मजदूरों के सम्मानजनक जीवन का इंतजाम भी कर सकते हैं। समाजवाद के तहत बेकारी, महंगाई, वेश्यावृत्ति सरीखी पूंजीवादी बीमारियों का समूल नाश कर दिया गया था। वक्ताओं ने भारत में भी मजदूरों की मुक्ति के लिए समाजवादी क्रांति की राह पर बढ़ने की जरूरत पर जोर दिया। -फरीदाबाद संवाददाता
कामरेड लेनिन के जन्मदिवस पर कार्यक्रम
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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को