कुंभ में भगदड़, एक दर्जन से ज्यादा मौतें, आखिर जिम्मेदार कौन ?

प्रयागराज में आयोजित कुम्भ में आग लगने की दो घटनाओं के बाद अंततः एक बड़ा हादसा हो ही गया जिसने एक दर्ज़न से ज्यादा लोगों की जान ले ली। सैकड़ों लोग घायल हो गये। ऐसे हादसे की आशंका पहले से ही जताई जा रही थी। इस हादसे ने योगी सरकार के सारे इंतजामों की पोल खोल कर रख दी।

योगी-मोदी सरकार महाकुंभ का आयोजन करने का ढिंढोरा देश भर में पीटती रही। टीवी विज्ञापन, अखबार, सोशल मीडिया व बडे-बडे होर्डिंगों के जरिये लाखों लोगों को जुटाती गयी। धर्म व आस्था के नाम पर जुटी भीड़ को नियंत्रित करने की पोल तब खुलने लगी थी जब वहां गये लोगों ने शासन-प्रशासन पर सवाल उठाये कि ये पुलिस वाले नेता, मंत्री, नागा साधु व वीआईपी लोगों को पुलों पर से जाने दे रहे हैं। आम आदमी को बीस किमी से ज्यादा दूरी पैदल तय करनी पड़ रही है। कई वैकल्पिक पीपा पुल बनाये गये। लेकिन वे सिर्फ वीआईपी लोगों के लिए ही हैं।

मौनी अमावस्या के दिन लाखों लोग कुंभ पहुंचने वाले थे यह तो प्रशासन को जानकारी थी। सरकार व गोदी मीडिया तो 6-7 करोड़ लोगों के पहुँचने की बात कर रही थी। लेकिन पूरा प्रशासन वीआईपी व नागा साधू संतों की सेवाओं में लगा हुआ था। उन्हें आम जन की सुध नहीं थी। पिछले 3-4 दिनों से लोग लगातार वीआईपी लोगों के आने-जाने पर आक्रोशित थे क्योंकि आम जनता को घाट तक जाने ही नहीं दिया जा रहा था।

मौनी अमावस्या 29 जनवरी को थी। 28 जनवरी की रात से ही लोग संगम नोज़ पर इकट्ठा होने लगे। हादसे के बाद लोगों ने बताया कि स्नान करने के लिए जाने वाले और लौट कर आने वालों के लिए एक ही रास्ता था। इस कारण भीड़ का दबाव बढ़ गया। भीड़ इस कदर बढ़ गयी कि लोगों की सहायता करने वालों के लिए बना पुलिस बूथ ही उखड़ने लगा जिसके अंदर पुलिस कर्मी भी थे। तभी भीड़ बेरिकेड तोड़कर निकलने लगी और उसे बाद भगदड़ मच गयी। जो एक बार गिर गया वह फिर उठ नहीं पाया। मरने वालों में महिलाएं और बूढ़े ज्यादा हैं।

धार्मिक कार्यक्रमों में इस तरह भगदड़ मचने और लोगों के मरने की घटना पहली नहीं है। इससे पहले भी ये घटनायें होती रहती हैं। लेकिन उसके बावजूद सरकारें नहीं चेतती हैं। वे लाखों-करोड़ों लोगों को एक जगह इकट्ठा करने के कीर्तिमान तोड़ना चाहती हैं। और इस तरह ऐसे हादसों के लिए जमीन तैयार करती हैं।

आलेख

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असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

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इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

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आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो। 

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ट्रम्प द्वारा फिलिस्तीनियों को गाजापट्टी से हटाकर किसी अन्य देश में बसाने की योजना अमरीकी साम्राज्यवादियों की पुरानी योजना ही है। गाजापट्टी से सटे पूर्वी भूमध्यसागर में तेल और गैस का बड़ा भण्डार है। अमरीकी साम्राज्यवादियों, इजरायली यहूदी नस्लवादी शासकों और अमरीकी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों की निगाह इस विशाल तेल और गैस के साधन स्रोतों पर कब्जा करने की है। यदि गाजापट्टी पर फिलिस्तीनी लोग रहते हैं और उनका शासन रहता है तो इस विशाल तेल व गैस भण्डार के वे ही मालिक होंगे। इसलिए उन्हें हटाना इन साम्राज्यवादियों के लिए जरूरी है। 

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आज भी सं.रा.अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी आर्थिक और सामरिक ताकत है। दुनिया भर में उसके सैनिक अड्डे हैं। दुनिया के वित्तीय तंत्र और इंटरनेट पर उसका नियंत्रण है। आधुनिक तकनीक के नये क्षेत्र (संचार, सूचना प्रौद्योगिकी, ए आई, बायो-तकनीक, इत्यादि) में उसी का वर्चस्व है। पर इस सबके बावजूद सापेक्षिक तौर पर उसकी हैसियत 1970 वाली नहीं है या वह नहीं है जो उसने क्षणिक तौर पर 1990-95 में हासिल कर ली थी। इससे अमरीकी साम्राज्यवादी बेचैन हैं। खासकर वे इसलिए बेचैन हैं कि यदि चीन इसी तरह आगे बढ़ता रहा तो वह इस सदी के मध्य तक अमेरिका को पीछे छोड़ देगा।