महावीर प्लाई में हादसा

उत्तर प्रदेश के जिला बरेली में परसा खेडा क्षेत्र है। यह फैक्टरी एरिया है। यहां लगभग 200 से 250 फैक्टरी होंगी। इसी क्षेत्र में रोड न. 4 पर स्थित महावीर प्लाइबोर्ड है जिसमें लगभग 200-300 मजदूर ठेके के तहत काम करते हैं। इसमें अलग-अलग ठेकेदार हैं। हर रोज नये मजदूरों की भर्ती ठेकेदार करता है लेकिन ईएसआईसी सभी मजदूरों का नहीं बनाता है। कुछ पुराने लोगों का ईएसआईसी बना हुआ है। फैक्टरी में काम करते समय मजदूरों ने ठेली में लिमिट से ज्यादा माल लोड कर दिया और ओवरलोड होने की वजह से ठेली पलट गई और हादसा हो गया। इस हादसे में तीन मजदूरों को चोटें आई हैं। चोट लगने के बाद दो घंटे ठेकेदार ने अस्पताल ले जाने में लगा दिये। तब तक तीनों मजदूर जमीन पर पड़े तड़पते रहे। बहुत जद्दोजहद के बाद ठेकेदार ने मजदूरों को अस्पातल में भर्ती कराया है। तीनों मजदूर पास के गांव जौहरपुर के रहने वाले हैं। अतः ठेकेदार ने तीनों को अस्पताल में भर्ती कराया है और तीनों में से दो को इलाज के बाद छुट्टी दे दी गयी है लेकिन एक मजदूर को ज्यादा चोट आई है उसे अभी छुट्टी नहीं दी गई है। उसका इलाज चल रहा है मरीजों के परिजनों का ठेकेदार से संघर्ष जारी है। वह ठेकेदार से मांग कर रहे हैं कि जब तक मजदूर ठीक न हो तब तक मुफ्त इलाज, घर बैठे की सेलरी, बच्चों के भरण पोषण के लिए मुआवजा दिया जाये। -एक पाठक, बरेली

आलेख

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।