निज भ्रम नहिं समुझहिं अग्यानी...

पहले तो खबर आयी कि अयोध्या में भाजपा के प्रत्याशी को हार का मुंह देखना पड़ा और अब खबर यह है कि ‘पहली बारिश में ही टपकने लगा श्री राम मंदिर में पानी’। जिस रामपथ के निर्माण के लिए कईयों के घर उजाड़ दिये गये और रोजी-रोटी छीन ली गई उस रामपथ में पहली बारिश में ही 20 स्थानों पर बड़े-बड़े गड्डे बन गये हैं। और उस खबर को कौन भूल सकता है कि मंदिर परिसर और उसके आस-पास की भूमि के क्रय-विक्रय में करोड़ों रुपये के हेर-फेर किये गये।
    
यह भक्तों का भ्रम ही था कि अयोध्या में भाजपा जीतेगी ही जीतेगी। जहां से उम्मीद नहीं थी वहां से भाजपा हार गई। और हद तो यह हो गई कि मोदी जी बमुश्किल जीते। यह भी भ्रम था कि श्री राम मंदिर युगों-युगों तक के लिए निर्मित है। और मंदिर बनाने वालों का कारनामा देखो वह पहली बारिश नहीं झेल पाया। रामपथ बनाने में किसने क्या सामग्री डाली, किस ने क्या निरीक्षण किया कि वह पहली बरसात में ही जगह-जगह से उखड़ गया। गड्डों से भर गया। मोदी जी, योगी जी और भक्त इस पर क्या कहेंगे। 
    
भक्तों का अपने नेता पर, उसके नारों पर, उसके कार्यों पर बहुत-बहुत भरोसा था। समय ने साबित किया न तो नेता न उसके नारे और न उसके कार्य करिश्मा दिखा सके। परन्तु अग्यानी क्या करें। वे अपने भ्रम को समझ ही नहीं सकते। तुलसीदास जी ने ठीक ही कहा निज भ्रम...। वे तो अयोध्या में मिली हार के लिए अयोध्या वालों को गरिया रहे हैं। 
 

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पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

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उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

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1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।