पृथ्वी लगातार तीव्र गति से अपने अक्ष पर घूम रही है। प्रत्येक 24 घंटे में मानव जाति इसे अगले दिन में बदलता हुआ देखती है। परंतु फैक्टरी का जीवन पृथ्वी के घूमने के हिसाब से नहीं चलता। आंख खुलते ही थोड़ा हंसी-मजाक करते हुए जीवन अभी भी लोहे के मजबूत दरवाजे के भीतर कैद होता है। सुबह के 6 बज चुके हैं, थोड़े बहुत बचे हुए काम को निपटाकर अब जाने की योजना बन रही है। फैक्टरी में गुजारे गए 24 घंटे का चक्र पूरा होने को है।
धूल कहां से गिरी, अचानक से प्रश्न ने मनोज के विचारों के क्रम को तोड़ा। कबूतरों के पंख हिलाने से ये धूल ऊपर से गिरी थी। सर उठाकर ऊपर देखने पर जवाब मिलता है। कहीं बीट न कर दें, विचार आते ही मनोज पत्थर से कबूतरों को उड़ा देता है। रात घर में पनीर बना था, इस विचार ने भूख को और तेज कर दिया है। भरपेट खाना खाकर भरपेट सोने की प्रबल इच्छा पैदा हो रही है।
पूरी फैक्टरी में धूल भरा माहौल रहता है। काम के दौरान सारे कपड़े धूल से भर जाते हैं, पूरा शरीर जंग लगे लोहे सा महकता है। इसलिए काम के दौरान पहनने वाले कपड़े दूसरे होते हैं और कंपनी आने-जाने वाले कपड़े दूसरे। जिन्हें पहनने से पहले नहाना जरूरी होता है। दूसरा घर पहुंचकर नहाने के दौरान लगने वाला समय भी बच जाता है। सात बज चुके हैं, घड़ी पर नजर पड़ती है। कदम झोले की तरफ बढ़ने लगते हैं जिसमें आने-जाने वाले कपड़े रखे हुए हैं।
अरे चीनी थोड़ा कम डालना, रात भर सोने के बाद रमेश गार्ड अभी उठा है और अपने जूनियर गार्ड को आदेश दे रहा है। फैक्टरी गेट पर ही गैस चूल्हा रखा हुआ है। साला मोटा शुगर का मरीज, मन ही मन रमेश गार्ड को कोसता हुआ जूनियर गार्ड चाय बना रहा है। दिन भर कुछ न कुछ खाने की वजह से रमेश गार्ड का शरीर जरूरत से ज्यादा आकार ग्रहण कर चुका है। तभी फैक्टरी के लैंड लाइन पर घंटी बजती है। हेलो .....रमेश गार्ड फोन पर मैनेजर की आवाज सुनता है। अरे रमेश! रात में रुके हुए लड़कों को जाने मत देना। मैनेजर फोन पर आदेश देता है। हां ठीक है सर, मैं जाने नहीं दूंगा। अभी बोल देता हूं सभी को। आदेश का पालन किया जाता है।
जब आप बहुत ईमानदारी से काम करते हों और वह ईमानदारी आपकी सोच में बसी हुई होती है, आपकी मेहनत में बसी होती है। जब आप फैक्टरी के कामों को पूरी निष्ठा के साथ निभाते हैं और सोचते हैं कि कहीं न कहीं ऊपर वाला इसका फल आपके परिवार को कहीं न कहीं जरूर देगा। और इस भावना के वशीभूत होकर आप पूरी निष्ठा के साथ मानव के शरीर की औसत सीमा से बढ़कर काम करते हैं और तभी आपको जहर में डूबे हुए आदेश सुनाई देते हैं जो अमानवीय होते हैं। ऐसे आदेश जो हृदयहीन शरीर से निकलते हैं। उन हृदयहीन अमानवीय शरीर से जिन्हें इस संसार की अमानवीय व्यवस्था ने ऐसे पदों पर बैठा दिया है जिन्हें अधिकारी कहते हैं। जिन्हें अधिकार तो बहुत होते हैं परंतु कर्तव्यों का पालन सिर्फ मालिकों के हितों में होता है। मालिकों की जी हजूरी करने वाले अधिकारी कहीं से भी मानवीय नहीं रहते। इन अमानवीय मुंह से निकलने वाले जहरीले शब्दों को सुनकर मन के भीतर जो गहरी वेदना होती है उसे सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
मैनेजर का आदेश पाकर आज सुपरवाइजर सुबह 7 बजे ही फैक्टरी पहुंच गया है। आर्डर बढ़ गया है, पूरा माल आज ही तैयार होना है। गाड़ी जब तक नहीं होगी कोई घर नहीं जायेगा। सुपरवाइजर सभी मजदूरों को सूचित करता है। सम्मिलित दुहाई, थकान, कड़ी मेहनत, नींद कोई भी भावना सुपरवाइजर पर प्रभाव छोड़ने में कामयाब नहीं होती। गेट वाले जबरन मजदूरों को बाहर जाने से रोक देते हैं। मैं क्या कर सकता हूं? मेरे ऊपर भी प्रेशर है। कोई काम मत करो! बाहर नहीं जाने देंगे, मगर हाथ थोड़े ही पकड़ लेंगे। आवेग में विनोद लड़कों को संबोधित करता है। कई मजदूर हामी भरते हैं। मजदूरों की सम्मिलित भड़ास में सुपरवाइजर का स्वर भी शामिल हो जाता है।
काम की क्या पोजीशन है? शाम को गाड़ी जानी है। सुपरवाइजर मैनेजर के केबिन में खड़ा है। मैं शाम तक करवा दूंगा। सुपरवाइजर की हामी। मैनेजर सुपरवाइजर को आदेश देता है। पर्ची पर माल की गिनती लिखते हुए मैनेजर सुपरवाइजर को नई पर्ची थमाता है। इतना माल और होना है। किस मजदूर को पुचकारना है, किसे डांटना है, किसे गुटखा खिलाकर काम निकलवाना है इस काम में सुपरवाइजर सिद्धहस्त है। वो भली भांति जानता है कि कैसे काम निकलवाना है। सारे मजदूर अपनी वास्तविकता से परिचित हैं। वो जानते हैं अपनी तमाम पीड़ा, व्यथा के बावजूद इस फैक्टरी से बाहर, देश के किसी भी कोने में यदि उन्हें जीवित रहना है तो इन सुपरवाइजरों, मेनेजरों के आदेश मानने ही होंगे, यही फैक्टरी का और जीवन का स्याह सच है। 24 घंटे की थकान, मन के भीतर गहराई तक बैठी हुई घुटन, तिरस्कार। खुद के प्रति किए गए अमानवीय व्यवहार की टीस को दिल में पीते हुए सभी मजदूर धीरे-धीरे काम पर लग जाते हैं।
इस महीने ओवरटाइम अच्छा हुआ है। तनख्वाह अच्छी बन गई है। तनख्वाह के दिन हाथ में नकद 17,000 रुपए पाते ही बीते हुए महीने के दुख और वंचनायें दब जाती हैं। उसी ईमानदारी से काम किया जाता है। मैनेजरों का अमानवीय व्यवहार स्वीकार कर लिया जाता है। हाथ में आई नकद धनराशि बहुत बलवती साबित होती है। बिटिया दो महीने से फटा हुआ बैग स्कूल ले जा रही है, स्कूल के बच्चों द्वारा फटे हुए बैग पर की गई बच्चों की मजाक की शिकायत बिटिया दो महीने से कर रही है। शाम को बैग लेना है। तनख्वाह लेते हुए मनोज के मन में विचार चल रहे हैं। तंगहाली जिसे मेहनतकश अपनी नियति मानते हैं, अक्सर उन घरों की महिलाएं तनख्वाह वाले दिन खुश होती हैं। सिर्फ उसी दिन जब कुछ अतिरिक्त पैसा तनख्वाह के रूप में हाथ में आता है तो कुछ बचत की योजना भी मन में जाग उठने लगती है। और उसी दिन अधूरी रह गई पिछले महीने की जरूरतों का भी ख्याल आ जाता है।
पिछले तीन महीने तेज उत्पादन भरे थे। सभी कंपनी साल के टारगेट से उत्पादन चाहती थीं। इसीलिए वेंडर कंपनी पर भारी दबाव था, और इस भारी दबाव का संबंध मनोज जैसे मजदूरों से था। यही दबाव उन्हें 36 घंटे की कड़ी मेहनत की तरफ धकेल देता था। अपने वेंडरों पर निर्भर इन बड़ी-बड़ी कंपनियों को न तो 36 घंटे की कड़ी मेहनत से कोई हमदर्दी थी और न ही स्कूल के फटे बैग से कोई संवेदना।
बरसात शुरू हो चुकी है और कंपनियों के आर्डर बहुत कम हो गए हैं। सुपरवाइजर को सूचित करते हुए मैनेजर ने कहा, कल से सुबह की ड्यूटी 9 से 5 की है। सबका ओवरटाइम बंद कर दे। ठीक है सर। स्वीकृति में सर हिला दिया जाता है। भेड़िए अक्सर ही अपने शिकार को जिंदा नोंचने लगते हैं। उन्हें कभी भी शिकार की पीड़ा का अहसास नहीं होता। उनकी इस हिंसात्मक प्रवृति का कारण प्रकृति होती है। परंतु इंसान के भीतर बैठी हुई पशुता, अमानवीयता का कारण प्राकृतिक नहीं होता। इस प्रवृत्ति का कारण जिस अदृश्य ताकत से संबंधित है आपको उससे अनभिज्ञ ही रखा जाता है। अच्छी खुराक और बेहतर दशा की गाड़ी में जुते हुए बैलों को बोझ उठाना आसान लगता है, परंतु कम खुराक और बुरी दशा वाली गाड़ी के साथ वजन को ढोना बहुत दुष्कर कार्य होता है। क्योंकि बैलों को लदे हुए भार के साथ बैलगाड़ी को ढोना ही होता है। जीवन पर्यंत इसी को नियति मान लिया जाता है। जिसके पास काम होगा सिर्फ उसे ही ओवरटाइम में रोका जाएगा वो भी कुल 2 घंटे की अनुमति है। मोटा भाई और बाकी मजदूरों में चर्चा चल रही है। कल तो विनोद का तेल काम कर गया, विनोद की तरफ इशारा करते हुए मोटा भाई ने चुटकी ली। काम बोलता है काम। एक बनावटी उत्साह के साथ विनोद ने हाथ ऊपर उठाए। मेहनतकशों के जीवन की एक खूबसूरती होती है कि कठिन से कठिन हालातों के बीच भी वो मुस्कुराती रहती है और पूरी दुनिया को गतिमान बनाए रखती है।
कंपनी में काम करने वाले सारे मजदूरों की ओवरटाइम पाने की चाहत मौजूद रहती है। परंतु बाजार के नियम और अधिकारियों का व्यवहार जिन नियमों से संचालित होता है वो नियम सामान्य बुद्धि से वैसे ही समझ में नहीं आते जैसे ईश्वर के बारे में उसकी धारणा होती है। इसे भी वह अपने भाग्य का लिखा मान लेता है। और न ही उन्हें उन नियमों का ही ज्ञान होता है जो उन्हें एक विरोधी खेमों में बांट देता है। साधारण मजदूर इन कारणों से अनजान ही रहते हैं। कुछ मजदूर जिनका नाम ओवरटाइम की लिस्ट में है, अलग गुट बना कर खड़े हैं और जिन्हें ओवरटाइम नहीं मिला वो अलग गुट में। ओवरटाइम न मिल पाने के कारण होने वाली आर्थिक तंगी, अभाव, ओवरटाइम मिलने वाले मजदूरों को कोसने और दूसरी भावनाओं के रूप में अभिव्यक्ति पाता है। और इसी बीच काम कम होने के कारण तीन दिन फैक्टरी बंद करने की सूचना दीवार पर चस्पा कर दी जाती है। -एक पाठक
ओवरटाइम भाग-2
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को