हल्द्वानी/ उत्तराखण्ड में कक्षा 1 से 12 तक के स्कूली छात्रों को किताबें समय पर दिये जाने के लिये परिवर्तनकामी छात्र संगठन (पछास) ने 6 मई को मुख्यमंत्री उत्तराखंड सरकार को ज्ञापन प्रेषित किया। इससे पूर्व 5-6 दिन से अलग-अलग स्कूलों में और सैकड़ों छात्रों के बीच हस्ताक्षर अभियान चलाया गया जिसमें छात्रों ने बढ़-चढ़ कर हस्ताक्षर किए। ज्ञापन उप जिलाधिकारी के माध्यम से भेजा गया। ज्ञापन की प्रतिलिपि उत्तराखंड शिक्षा महानिदेशक और उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा सचिव को भी भेजी गई।
इस दौरान चली सभा में वक्ताओं ने कहा कि उत्तराखण्ड सरकार कक्षा 8 तक स्कूली छात्रों को निःशुल्क पाठ्य पुस्तक उपलब्ध कराती रही है। एनसीईआरटी पाठ्यक्रम लागू करने के बाद सरकार ने पुस्तक देने की जगह डायरेक्ट बेनिफिट ट्रान्सफर (डीबीटी) के माध्यम से धनराशि जारी करना शुरू किया।
सत्र 2022-23 से सरकार ने कक्षा 1 से 12 वीं कक्षा तक डीबीटी के जरिये पाठ्य पुस्तक निःशुल्क देने का निर्णय किया। इस सत्र 2023-24 में एक माह से अधिक समय से सत्र शुरू हो जाने के बाद भी अभी तक छात्रों को पुस्तकें उपलब्ध नहीं करायी गयी हैं। बोर्ड परीक्षा वाले छात्र भी पुस्तकों से वंचित हैं। राज्य भर में लगभग 11 लाख से अधिक छात्र पुस्तकों से वंचित हैं। पुस्तकें समय पर उपलब्ध कराने के बजाय अभी एनसीईआरटी की वेबसाइट से छात्रों को पढ़ने व शिक्षकों को पढ़ाने का आदेश जारी किया गया है। इस प्रकार छात्र पुस्तकों के बिना अध्ययन कैसे जारी रख पायेंगे? 31 मार्च, 2023 को उत्तराखंड सरकार पुस्तकों के लिए एमओयू साइन कर रही थी। उत्तराखंड सरकार को जब छात्रों को किताबें देनी थीं तो उसने समय पर एमओयू साइन क्यों नहीं किया।
इतनी देरी से एमओयू साइन करना और पुस्तकें नहीं मिलना दिखाता है कि उत्तराखंड सरकार चुनावी फायदे के लिए छात्रों के साथ कई दावे करती है। लेकिन उन दावों की असलियत समय-समय पर इसी तरीके से उजागर होती रहती है। इतनी देर से पाठ्य पुस्तकें देना दिखाता है कि उत्तराखंड सरकार छात्रों के साथ कैसा व्यवहार कर रही है।
उत्तराखण्ड में विद्यालय संसाधन और शिक्षकों के अभाव से जूझ रहे हैं। बैठने की भी उचित व्यवस्था कई विद्यालयों में नहीं है। ज्यादा संख्या वाले विद्यालयों में एक ही कक्षा में भेड़-बकरियों की तरह कई छात्रों को एक साथ बैठाया जा रहा है। कई विद्यालय जर्जर हो चुके हैं। उनकी सुध सरकार द्वारा नहीं ली जा रही है। उनकी छत, दीवारें गिरने को हैं। कुछ छात्रों की इन्हीं स्कूलों में पढ़ते हुए मौत हो चुकी है। फिर भी सरकार ऐसे दुर्घटनाशील स्कूलों की सूची बनाकर उनकी जगह नए स्कूलों का निर्माण नहीं कर रही है।
छात्रों के हिसाब से सुविधाएं विद्यालयों में उपलब्ध नहीं हैं। वहां बैठने के लिए बेंच, पीने का साफ पानी, बिजली, लाइब्रेरी, उचित लैब आदि सुविधाएं नहीं हैं। मानकों के अनुसार विद्यालयों में शिक्षक नहीं हैं। सालों साल से प्रवक्ताओं, शिक्षकों के पद खाली पड़े हैं। प्रशिक्षित लोग मौजूद हैं। उसके बावजूद भी शिक्षकों की भर्ती नहीं की जा रही है। कई विद्यालय एकल शिक्षकों के भरोसे पर चल रहे हैं। जहां पर शिक्षकों के पास पठन-पाठन के अलावा भी अन्य कई तरह के काम स्कूलों में होते हैं। सरकार सबको बेहतर और गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने की बात करती है। सरकारी स्कूलों में छात्रों को बेहतर शिक्षा देने की बात करती है लेकिन इन हालातों में कैसे बेहतर शिक्षा मिल पाएगी। जब स्कूल ही अंतिम सांसें गिनने को मजबूर हैं। सरकार जब गुणवत्तापूर्ण और सबको बेहतर शिक्षा की बात करती है तो उसकी बातें खोखली और झूठी होती हैं।
आज सरकारें छात्रों-जनता को कुछ भी देने को तैयार नहीं हैं। जो कुछ भी एक समय में दिया गया था उसको छीना जा रहा है, लगातार कम किया जा रहा है। यही शिक्षा में भी किया जा रहा है। आज सरकारें सरकारी स्कूलों की हालत खराब कर शिक्षा का निजीकरण करना चाहती हैं। तभी वह इन स्कूलों की हालत और शिक्षा को नहीं बचा रही हैं।
आज पूंजीपति वर्ग भी सरकारों से यही चाहता है और सरकारें उनकी इस मांग के लिए बढ़-चढ़ कर योजना बना रही हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 भी इसी तरह की बात करती है। हालांकि शिक्षा में निजीकरण की यह गति पहले भी मौजूद थी। नई आर्थिक नीतियों ने इसको आगे बढ़ाया था। राष्ट्रीय शिक्षा नीति के लागू होने के बाद इसमें तीव्र वृद्धि हो रही है। यह अभी आगे और तेज गति से होनी है। अभी उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल में कम छात्र संख्या का हवाला देकर 114 सरकारी स्कूलों को बंद कर छात्रों को कहीं दूसरी जगह समायोजित करने की बात अनुशंसा अधिकारियों ने की है।
इसके विरोध में आज छात्र-नौजवानों सहित समाज के सभी तबकों-वर्गों को आगे आना होगा। तभी सभी छात्रों को निःशुल्क, बेहतर, गुणवत्तापूर्ण, एक समान शिक्षा मिल सके इसके लिए संघर्ष तेज किया जा सकेगा। और शिक्षा के निजीकरण होने से बचाया जा सकेगा।
इस दौरान ज्ञापन में 3 मांगें की गईं-
1. कक्षा 1 से कक्षा 12 तक के स्कूली छात्रों को तत्काल पाठ्य पुस्तकें उपलब्ध करायी जायें।
2. जर्जर विद्यालयों को ठीक कर उनमें संसाधनों की कमी दूर की जाए।
3. सभी विद्यालयों में छात्र-शिक्षक अनुपात के मानक के अनुसार शिक्षकों की नियुक्ति की जाये। -हल्द्वानी संवाददाता