पूंजीवादी जनतंत्र में चुनाव और जन-जीवन के मुद्दे
सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है
सुनील कानुगोलू का नाम कम ही लोगों ने सुना होगा। कम से कम प्रशांत किशोर के मुकाबले तो जरूर ही कम सुना होगा। पर प्रशांत किशोर की तरह सुनील कानुगोलू भी ‘चुनावी रणनीतिकार’ है
हल्द्वानी बनभूलपुरा में 8 फरवरी 2024 को प्रशासन द्वारा मदरसा व मस्जिद को हाईकोर्ट में सुनवाई होने के बावजूद भी बुलडोजर से तोड़ने के कारण उपजे विवाद के बाद हुए उपद्रव में प
फरीदाबाद/ 21 अप्रैल 2024 को कामरेड लेनिन के स्मृति शताब्दी वर्ष में, कामरेड लेनिन के जन्म दिवस के अवसर पर इंकलाबी मजदूर केंद्र के द्वारा वक्तव्य व फिल्म
पिछले कुछ समय से मोदी सरकार के इशारे पर प्रवर्तन निदेशालय (ED) ने विपक्षी पार्टियों विशेष रूप से आम आदमी पार्टी के प्रमुख नेताओं पर प्रिवेंशन आफ मनी लान्ड्रिंग एक्ट 2002
आज जैसे ही मैं सोया मेरी नींद अचानक खुल गयी। मैं परेशान था। परेशान एक घटना ने कर रखा था जो आज पूरे दिन मेरे दिलों दिमाग पर घूमती रही। एक आठ साल की बच्ची जिसको उसकी सौतेली
फिलिस्तीन (गाजा) का संघर्ष लंबे समय से चल रहा है। इस लंबे संघर्ष ने फिलिस्तीनी जनता विशेष रूप से फिलिस्तीनी महिलाओं और बच्चों के जीवन को बहुत तकलीफदेह बना दिया है।
‘‘खेलने के लिए मैंदान होने चाहिए, जहां बच्चे मुफ्त में खेलें और सीखें।’’ ‘‘हास्टल होने चाहिए जहां बाहर से आने वाले छात्र रह सकें।’’ ‘‘नशे पर रोक लगनी चाहिए।’’
हम बरेली शहर के मढ़ीनाथ और बंशीनगला मोहल्ले की बात कर रहे हैं। यहां अलग-अलग नाम से दो सेण्टर संचालित होते हैं। यहां कई कर्मचारी हैं व एक डॉक्टर भी है। यहां छोटी-छोटी बीमार
भारत ही नहीं विश्व का मजदूर आंदोलन एक विचित्र अवस्था से गुजर रहा है। मजदूर वर्ग के पुराने संगठन, पार्टियां अपने ढलान की ओर हैं, और नये संगठन, नये आंदोलन विकसित नहीं हो पा
पिछले कुछ सालों में एनसीईआरटी पाठ्य पुस्तकों में बड़े बदलाव किये गये हैं। मौजूदा बदलाव पाठयक्रम में छोटी-छोटी कैंची चला कर किये गये हैं। गुजरात दंगों का जिक्र जो अब सिर्फ
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को