भारत लोकतंत्र की जननी कैसे है?

बीते कुछ समय से मोदी सरकार ने लोकतंत्र का जाप बढ़ाते हुए भारत को न केवल सबसे बड़ा लोकतंत्र बल्कि लोकतंत्र की जननी कहना शुरू कर दिया तो सभी इतिहासकार अचम्भे में पड़ गये। वैसे यह कम आश्चर्यजनक नहीं है कि संघी सरकार जितना भारतीय लोकतंत्र की कब्र खोद रही है उसका लोकतंत्र का जाप उतना ही बढ़ता जा रहा है। 
    
इतिहास का एक सामान्य विद्यार्थी भी जानता है कि प्राचीन भारत का लोकतंत्र से दूर-दूर तक कोई लेना-देना नहीं रहा है। केवल अंग्रेजों के भारत में आने के बाद ही यहां चुनावों की शुरूआत के साथ कुछ लोकतांत्रिक संस्थाओं की शुरूआत हुई। हां पूरी दुनिया की तरह यहां भी कबीलाई समाज में प्राकृतिक लोकतंत्र सरीखी प्रक्रिया थी पर एक बार वर्गीय समाज कायम हो जाने और वर्ण व्यवस्था कायम हो जाने के बाद यहां लोकतंत्र का कोई चिन्ह तक नहीं बचा था। पर मोदी सरकार व संघी मण्डली इस सबसे इत्तेफाक नहीं रखती। 
    
जी-20 बैठक के लिए मोदी सरकार द्वारा बेवसाइट पर एक पुस्तिका डाली गयी है जिसका शीर्षक है- ‘भारत : मदर ऑफ डेमोक्रेसी’। इस पुस्तिका में मोदी सरकार ने इतिहास लेखन का जो नया रिकार्ड रचा है उसे देखकर शायद संघी इतिहासकार भी शर्मा जाये। पुस्तिका बताती है कि लोकतांत्रिक परम्परायें भारत में हजारों वर्ष से मौजूद हैं। कि ये परम्परायें सिंधु-सरस्वती सभ्यता, वैदिक काल, रामायण-महाभारत के काल, महाजनपदों के काल, जैन-बौद्ध धर्म के काल, कौटिल्य के वक्त से लेकर अकबर-शिवाजी के काल से आज तक मौजूद रही हैं। यानी भारतीय समाज हमेशा से ही लोकतांत्रिक समाज रहा है। 
    
इसके पश्चात पुस्तिका अलग-अलग कालों में लोकतंत्र की अलग-अलग विशेषताओं का वर्णन करते हुए अपनी बात सच साबित करने का प्रयास करती है। इस सचित्र वर्णन में सिन्धु-सरस्वती काल (वैसे यह काल इतिहासकार सिंधु घाटी की सभ्यता के रूप में पुकारते हैं पर मोदी सरकार ने इसमें ‘सरस्वती’ जोड़ दिया है) एक आत्मविश्वास के साथ खड़ी लड़की की मूर्ति दिखा बताया गया है कि कैसे महिलायें इस काल में आजाद, स्वतंत्र थीं। वैदिक काल में ऋगवेद व अथर्ववेद के हवाले से बताया गया है कि इनमें प्रयुक्त सभा, समिति, संसद शब्द लोकतांत्रिक परम्पराओं की मौजूदगी को दिखाते हैं। रामायण काल में बताया गया है कि राजा को जनता चुनती थी। उदाहरण के बतौर जब अयोध्या को नया राजा चाहिए था तो दशरथ ने अपने मंत्रिमण्डल व जन प्रतिनिधियों की राय मांगी तब सबने समाज के विभिन्न हिस्सों से विस्तृत चर्चा के बाद बताया कि राम ही जनता की चाहत हैं। राम राज्य आदर्श सरकार है जहां जनता सुरक्षित व समृद्ध थी व उसका कल्याण उसके द्वारा चुने राजा का परम कर्तव्य था। महाभारत काल में भीष्म द्वारा मृत्यु शैय्या पर पड़े-पड़े युधिष्ठिर को बताया गया कि राजा का कर्तव्य प्रजा की समृद्धि व खुशी है तो गीता में कृष्ण ने सभ्य होने के कर्तव्य और जिम्मेदारियों का वर्णन किया। भारत में महाजनपदों में 15 में राजा द्वारा शासन व 10 गणतंत्रों में प्रजा द्वारा गणप्रमुख के चुनाव का वर्णन कर लोकतंत्र के चिन्ह दिखाये गये हैं। भारत में बौद्ध, जैन आदि मतों की साथ-साथ मौजूदगी को बहुलतावाद व सहनशीलता के लोकतांत्रिक गुण के रूप में प्रस्तुत किया गया है। आगे इसी काल में बौद्ध संघों में लोकतंत्र के साथ बताया गया है कि भारत में राजा को हमेशा प्रजा चुनती रही है। राजा द्वारा जनता की सेवा के चाणक्य के उपदेश को भी लोकतंत्र की परम्परा करार दिया गया है। ग्रीक राजदूत मैगास्थनीज के हवाले से 300 ई.पू. में यह बता दिया गया है कि तब सब बराबर थे कोई व्यक्ति किसी से श्रेष्ठ नहीं था। अशोक के काल में मंत्रियों के हर 5 वर्ष में जनता द्वारा चुनाव का भी वर्णन है। आगे इस बात का भी उदाहरण गढ़ दिया गया है कि जनता पुराने अत्याचारी शासक से छुटकारा पाने के लिए नया शासक चुन लेती थी। नगरों के गिल्ड द्वारा प्रशासन को भी लोकतांत्रिक तरीके से चुना हुआ घोषित कर दिया गया है। साथ ही प्रशासन की जनभागीदारी भी प्रस्तुत कर दी गयी है। इसके बाद विजयनगर के शासन, अकबर, शिवाजी के साथ आजादी के बाद के भारत का वर्णन कर लोकतांत्रिक परम्परायें दर्शायी गयी हैं। 
    
इस वर्णन से स्पष्ट है कि मोदी सरकार के लिए भारत का वर्ण व्यवस्था काल-सामंतवाद और आधुनिक पूंजीवाद सब लोकतांत्रिक परम्पराओं से भरा पड़ा है। आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि इस वर्णन में न तो वर्ण व्यवस्था-जाति व्यवस्था का जिक्र है और न ही सामंतों-किसानों के बीच शोषणकारी संबंधों का। आखिर वर्ण-जाति व्यवस्था भारतीय समाज में मौजूद वंशानुगत गैरबराबरी का प्रमाण जो है जो सबके समान होने की बात को झुठलाता है। इसीलिए इस वर्णन से इन्हें गायब कर दिया गया है। 
    
अब यह स्पष्ट है कि मोदी सरकार के लिए चूंकि भारत में हजारों वर्ष से लोकतांत्रिक प्रथा थी अतः भारत को लोकतंत्र की जननी कहने में उन्हें कोई गुरेज नहीं है। वे तो इनको इतिहास के पुनर्लेखन के जरिये साबित करने में जुटे हैं। 
    
यहीं से यह भी स्पष्ट हो जाता है कि मोदी जब लोकतंत्र को लात लगाते हुए लोकतंत्र का बखान करते हैं तो वे क्या चाहते हैं। चूंकि राम राज्य भी लोकतंत्र वाला था इसीलिए जनवाद रहित इनका लक्षित फासीवादी हिन्दू राष्ट्र भी इनकी नजरों में लोकतंत्र वाला हो सकता है। 
    
इतिहास के इस संघी रूपांतरण पर मोदी सरकार चाहे जितनी मुग्ध हो पर यह इतिहास इस कदर मनगढन्त है और भारतीय समाज में जाति-वर्ण व्यवस्था के इतने चिन्ह मौजूद हैं कि शायद ही कोई इस मनगढन्त इतिहास पर विश्वास करे। पर कहते हैं कि जर्मन नस्ल को श्रेष्ठ ठहराने में जुटे हिटलर को झूठे तर्क गढ़ने से कोई रोक नहीं पाया वैसे ही आत्ममुग्ध मोदी सरकार को भारतीय इतिहास में हर जगह लोकतंत्र दिखाने से कोई रोक नहीं पायेगा। इस मनगढन्त इतिहास पर जी-20 के देशों के बीच भारत सम्मान का हकदार बनेगा या हास्य का इसे सहज ही समझा जा सकता है। पर इतिहास का यह मनगढन्त वर्णन बताता है कि मोदी सरकार लोकतंत्र का जाप करते-करते ही फासीवाद तक पहुंच जायेगी। 

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