एक फैसला ऐसा भी

अलवर की एक अदालत ने 25 मई को एक फैसला सुनाया। यह फैसला था 20 जुलाई 2020 को रकबर खान की कथित गौ रक्षकों द्वारा लिंचिंग किये जाने के सम्बन्ध में। फैसले में 4 आरोपियों को 7 साल की सजा सुनायी गयी और मुख्य अभियुक्त जो विश्व हिंदू परिषद का नेता और गौ रक्षक दल का प्रमुख भी था, को संदेह का लाभ देते हुए बरी कर दिया गया। फैसले के बाद रकबर खान की पत्नी ने इसे न्याय नहीं माना और ऊपरी अदालत में अपील करने की बात की।
    

दरअसल रकबर खान एक डेरी चलाता था और दूध बेचकर अपने परिवार का गुजारा करता था। एक दिन रकबर खान और असलम लालवंडी (अलवर) में अपनी गाएं चरा रहे थे। वे अपने गांव लौट रहे थे तभी वहां कथित गौ रक्षक नवल किशोर शर्मा, विजय कुमार, नरेश शर्मा, धर्मेंद्र यादव और परमजीत सिंह ने उन्हें घेर लिया। असलम के बयान के अनुसार नवल किशोर शर्मा जो उनका नेता था, ने उनको पीटने को कहा और साथ ही कहा कि ‘‘जब तक इनमें से कोई मर नहीं जाता तब तक ये कमीने (पीड़ित) होश में नहीं आएंगे।’’
    

उन सबने रकबर खान और असलम को खूब मारा। असलम किसी तरह उनकी गिरफ्त से छूटकर भाग गया। रकबर खान की पसलियां टूट गयीं और फेफड़ों में पानी भर गया। बाद में वहां पुलिस आयी और उसने गंभीर रूप से घायल रकबर खान को अस्पताल ले जाने में काफी समय लगा दिया। उसने पहले असलम की खोज की। उसके बाद रकबर खान को लेकर चले। रास्ते में चाय पी। मवेशियों को गौशाला पहुंचाया। और उसके बाद रकबर खान को सरकारी अस्पताल लेकर गये जहां पहुंचते ही डाक्टरों ने रकबर खान को मृत घोषित कर दिया। यानी रकबर खान पहले ही मर चुका था। अगर रकबर खान को समय से सही इलाज मिल जाता तो सम्भव था कि रकबर खान की जान बच जाती। लेकिन मारने वाले और पुलिस दोनों ही ऐसा नहीं चाहते थे। वे तो एक ‘विधर्मी’ मुसलमान को मारकर बाकी ‘विधर्मियों’ को सबक सिखाना चाहते थे। आखिर वे क्यों हिम्मत कर रहे हैं कि गाय का दूध बेचकर अपने परिवार का गुजारा करें। 
    

और इस पूरे घटनाक्रम के बाद न्यायाधीश महोदय ने जो न्याय की मिशाल पेश की उसे देखकर तो अन्याय भी शर्म से अपना मुंह छिपा ले। फैसले में पेश सबूतों को तोड़-मरोड़ कर उन्होंने अभियुक्तों को छोड़ दिया और कम से कम सजा दी। उन्होंने फैसले से पहले अपने निष्कर्ष में कहा कि अभियुक्तों की पीड़ित के साथ कोई दुश्मनी नहीं थी न ही वे एक-दूसरे को जानते थे इसलिए उनका जान से मारने का उनका कोई इरादा नहीं था। न ही उन्होंने रकबर खान को जो 13 जख्म दिये वे किसी संवेदनशील जगह पर थे। इसके अलावा उन्होंने रकबर खान को लाठी जैसे साधारण हथियार से पीटा। और सबसे बड़ी बात कि अगर उन्हें रकबर खान को मारना ही होता तो वे उसे पहले ही मार देते। इसके बजाय उन्होंने उसे पुलिस की गाड़ी तक पहुंचाया और उसके कीचड से सने कपड़ों को साफ किया। न्यायाधीश महोदय ने अपने निष्कर्ष में यह भी कहा कि ये लोग चूंकि गौ रक्षक हैं इसलिए ये थोड़ा जोश में आ गये थे। हां, पुलिस की लापरवाही को उन्होंने इस मौत के लिए जिम्मेदार माना। मुख्य अभियुक्त नवल किशोर को उन्होंने संदेह का लाभ देकर इसलिए छोड़ दिया क्योंकि उसने साफ कपड़े पहने थे व अगर वह घटनास्थल पर मौजूद होता तो उसके कपड़े भी गंदे होते। 
    

न्यायाधीश महोदय ने जिन तर्कों के आधार पर चारों अभियुक्तों को जान बूझकर हत्या करने का मुजरिम नहीं ठहराया वे तर्क कहीं से भी गले नहीं उतरते। अगर कोई व्यक्ति किसी को नहीं जानता, लाठी जैसे साधारण हथियार से उसके शरीर पर मारता है और मारने के बाद उसके कपड़े साफ कर दे और पुलिस की गाड़ी तक पहुंचा दे और फिर पुलिस की कस्टडी में उसकी मृत्यु हो जाये तो ऐसे में केवल पुलिस की ही लापरवाही इस हत्या की जिम्मेदार नहीं है वरन उन घावों की भी उसमें भूमिका है जो उसके शरीर पर मारने वाले ने दिये। आखिर ये घाव देने वालों का यह पहला काम नहीं था। इससे पहले ये गौरक्षक 13 लोगों को गंभीर रूप से घायल कर चुके थे। 
    

इसके अलावा अभियुक्त नवल किशोर के बारे में असलम ने अपने बयान में साफ कहा कि नवल किशोर वहां मौजूद था और उसने ही पीटने के निर्देश दिये थे। चूंकि नवल अपना फोन घर पर ही छोड़कर आया था इसलिए वह घर गया और फिर घर से पुलिस को फोन किया। चूंकि उसने घर जाकर कपड़े बदल लिए इसलिए उसके कपड़े गंदे नहीं थे। लेकिन असलम की इस गवाही पर अदालत में कोई ध्यान नहीं दिया गया। 
    

फैसले के बाद रकबर खान की पत्नी असमीना को गहरी निराशा हुई। उसने कहा कि मैं नहीं चाहती थी कि मेरे पति को मारने वालों को फांसी हो लेकिन यह न्याय कोई न्याय नहीं है। कम से कम उन्हें ऐसी सजा तो मिले जिससे दूसरों को सबक मिले और वे दुबारा ऐसा न कर सकें। पति रकबर खान के जाने के बाद असमीना बेहद बुरी परिस्थितियों से गुजर रही है।
    

जब रकबर खान को मारा गया तब वह पेट से थी। पति के जाने के बाद ससुर पर जिम्मेदारी आ गयी। कुछ दिन में ससुर की भी मौत हो गयी। 7 बच्चों का पेट भरने की जिम्मेदारी अब असमीना पर आ गयी। और फिर एक दिन सड़क दुर्घटना में असमीना घायल हो गयी और आंशिक रूप से विकलांग हो गयी। अब ऐसे में असमीना अभियुक्तों के लिए ऐसी सजा चाहती है जिससे किसी और को यह कष्ट न उठाना पड़े।

आलेख

/idea-ov-india-congressi-soch-aur-vyavahaar

    
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

/ameriki-chunaav-mein-trump-ki-jeet-yudhon-aur-vaishavik-raajniti-par-prabhav

ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को