अमेरिका में ट्रम्प और एलन मस्क के खिलाफ प्रदर्शन

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अमेरिका में राष्ट्रपति की शपथ लिए अभी 1 महीना भी नहीं बीता कि लोगों का गुस्सा उन पर फूट पड़ा है। लोग सड़कों पर ट्रम्प के खिलाफ नारे लगा रहे हैं। वे ट्रम्प द्वारा ट्रांसजेंडर के अधिकार छीन लेने, गजा के लोगों को विस्थापित कर दूसरे देश भेजने सम्बन्धी बयानों और प्रोजेक्ट 2025 के खिलाफ हैं। वे ट्रम्प की अप्रवासी विरोधी नीति का भी विरोध कर रहे हैं। वे ट्रम्प के साथ-साथ एलन मस्क का भी विरोध कर रहे हैं जिन्हें ट्रम्प ने सरकारी दक्षता विभाग का प्रमुख बना दिया है।
    
जब अमेरिकी राष्ट्रपति के चुनाव हो रहे थे तभी ट्रम्प ने अप्रवासियों को उनके देश भेजने, ट्रांसजेंडरों के अधिकार छीन उन्हें किसी श्रेणी (पुरुष, स्त्री या अन्य) में न रख अमेरिका में केवल दो ही लिंग (पुरुष और स्त्री) की बात कर अपने फासीवादी मंसूबों को उजागर कर दिया था। कनाडा को अमेरिका का 51 वां राज्य बना लेने की बात कर उन्होंने एक देश की सम्प्रभुता का मजाक उड़ाया। 
    
ट्रम्प के राष्ट्रपति बनने के अभियान में एलन मस्क ने पानी की तरह पैसा बहाया। अब ट्रम्प ने उनका कर्ज उतारना शुरू कर दिया है। एलन मस्क को दक्षता विभाग का प्रमुख बना दिया गया है। यह विभाग सरकारी क्षेत्र में नौकरियों को कम करेगा। इसके साथ ही एलन मस्क की पहुंच अमेरिका के ट्रेजरी तक हो गयी है। अमेरिकी लोगों को यह अमेरिका की सुरक्षा के लिए खतरा लगता है। 
    
इसलिए ट्रम्प और एलन मस्क के खिलाफ 5 फरवरी को 50 राज्यों में 50 जगहों पर एक साथ प्रदर्शन हुए। इस प्रदर्शन को @buildtheresistanceऔर @50501 के नाम से सोशल मीडिया पर भी चलाया जा रहा है। @50501 का मतलब है 50 राज्यों में 50 विरोध प्रदर्शन 1 दिन करना। इन प्रदर्शनों में वे ट्रम्प और मस्क के खिलाफ नारे लगा रहे हैं और ट्रम्प पर जांच बैठाने और एलन मस्क को बाहर भेजने की बात कर रहे हैं।

आलेख

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ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

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भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

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भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

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भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

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आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।