आपका नजरिया : बढ़ती गरीबी वाला ‘नया भारत’

मोदी  राष्ट्रीय-अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर बोलते नहीं थकते कि भारत में विकास की गंगा बहे जा रही है। लेकिन ये विकास की परिभाषा मोदी सरकार की है न कि आम जनता की। आम जनता की विकास की परिभाषा के अनुसार आम जन का जीवन सुखद होना चाहिए, जिसमें सभी के लिए सम्मानजनक रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य सभी जरूरत की चीजों की समुचित व्यवस्था की गारंटी हो। लेकिन कोई भी सरकार जनता की इस विकास की परिभाषा पर अमल तो दूर, उसे सुनना व देखना भी पसंद नहीं करती है। विकास की बड़ी-बड़ी बातें करने वाली बड़बोली मोदी सरकार एक तरफ तो देश के अस्सी करोड़ लोगों को मुफ्त राशन देने का ढकोसला कर रही है। दूसरी ओर पुरानी नाम मात्र की कल्याणकारी योजनाओं को खत्म किया जा रहा है। इतनी बड़ी आबादी को मुफ्त राशन देने का मतलब है कि लोग अभी भी गरीबी में जीवन यापन कर रहे हैं। इतनी बड़ी गरीब आबादी वाले देश को मोदी सरकार 2047 तक विकसित देश बनाने का ढिंढोरा पीट रही है। इस तरह की लफ्फाजी भरी बयानबाजी देश की मेहनतकश जनता को भ्रम में डालने के लिए की जा रही है। और देश की बदहाली पर पर्दा डालने के लिए भी ऐसा प्रचार किया जा रहा है। इनके इस तरह के विकास या विकसित देश माडल में गरीब मेहनतकश जनता कहीं नहीं है।
    
मोदी सरकार ने जनता से जो वादे किए थे, जो सपने दिखाए थे वह पूरे नहीं हुए और न होने थे। सरकार अच्छी तरह जानती है कि जनता आश्वासन पर निर्भर होने की आदी हो चुकी है। ऐसे में सरकार को भी क्या पड़ी है कि सरकार जनता से किए वादे को पूरा करे या उस दिशा में कुछ काम करे। लेकिन ऐसा भी नहीं है कि सरकार जनता से एकदम मुंह फेर ले और जनता को कुछ भी ना दे। सरकार यह भी जानती है कि अगर जनता को कुछ नहीं दिया तो जनता हमें मिट्टी में मिला देगी या अपने अधिकारों के लिए सड़कों पर उतर जायेगी। इसलिए सरकार जनता को कुछ ना कुछ टुकड़ों के रूप में देने का वादा करती है और कुछ टुकड़े दे भी देती है। और इसी प्रकार जनता के आक्रोश को शांत करने के लिए कुछ सुविधाओं के टुकड़े जनता को दे दिए जाते हैं। ये टुकड़े कुछ लोगों को मिल जाते हैं और अधिकतर लोग वंचित रह जाते हैं। और ऐसे वंचित लोग अपने भाग्य और किस्मत को कोसने के सिवाय कुछ नहीं कर पाते।
    
मोदी सरकार ने जनता को राहत देने के लिए नई योजनाओं का ऐलान किया। मोदी सरकार ने जनता के साथ वैसे व्यवहार किया जैसे किसी पशु को अपने कब्जे में करने के लिए, अपने पीछे-पीछे चलने के लिए कुछ घास हाथ में लेकर ललचाते हुए उसके आगे-आगे चलता हुआ आदमी करता है और पशु पीछे-पीछे चला आता है। वैसे ही सरकार भी जनता को कुछ लोक-लुभावने वादों से अपने पीछे लामबंद करने में सफल हो जाती है। जनता भी अपनी निम्न चेतना की वजह से सरकार की ओर से मिलने वाली नाम मात्र की जरूरत की चीजों को सरकार की मेहरबानी मान लेती है और उसी में संतोष करने की आदी हो जाती है। इस प्रकार सरकार जनता से अपना गुणगान करवाने में सफल हो जाती है। मोदी सरकार द्वारा जब-जब अपनी कुर्सी को खतरा दिखाई दिया तब-तब जनता के लिए नई-नई घोषणाएं कर दी गईं, लेकिन मात्र चंद सुविधाओं के टुकड़ों से भी कुर्सी बचाने के उपाय नाकाफी थे। इसलिए संघ/भाजपा को घोर साम्प्रदायिकता फैलाने जैसे तौर-तरीके भी अपनाने पड़े।
    
‘‘मोदी सरकार’’ के विकास के सारे दावे-वादों की पोल समय-समय पर आने वाले आंकड़े खोलते रहे हैं। मोदी सरकार ने गरीबी, भुखमरी खत्म करने के बड़े-बड़े वादे किए थे, लेकिन इन गरीबी-भुखमरी के आंकड़ों ने मोदी के गरीब विरोधी चरित्र को उजागर कर दिया। सरकार ने बदमाशी ये की कि गरीबी की परिभाषा ही बदल डाली। गरीबी मापने का पैमाना (एम पी आई) एक प्रमुख सूचकांक है जो किसी परिवार को गैर गरीब घोषित करने के लिए कुछ मापदंडों का उपयोग करता है। जैसे घरों में पाइप से पानी पहुंचने की व्यवस्था, गैर फूंस का आवास (जो धातु की छत के साथ केवल एक कमरे की झोंपड़ी हो सकती है), शौचालय, एक बैंक खाता उसमें भले ही एक रुपया न हो। उस परिवार के बच्चे स्कूल जाते हां, भले ही उनको कुछ आता हो या न आता हो। ये सब गरीबी से बाहर घोषित कर दिये गये।
    
वर्तमान समय में मोदी सरकार और इनके समर्थकों को देश में महंगाई, गरीबी, बेरोजगारी खराब स्वास्थ्य व्यवस्था के आंकड़ों से कोई फर्क नहीं पड़ता। सरकार और उसके समर्थक सरकार की करनी-कथनी पर और इनके विकास के खोखले वादों की पोल खोलने वालों को प्रतिक्रियावादी तरीके से जवाब देते हैं यानी हर सही बात का उल्टा जवाब। और कई बार तो ये हमलावर हो जाते हैं। जनता के दुःख-तकलीफ एक तरफ और सरकार की तारीफ में प्रचार एक तरफ। सरकार और सरकारी प्रचार तंत्र द्वारा जनता की ऐसी मानसिकता बनाई जा रही है कि जो मौजूदा आम जनमानस के हालात बने हुए हैं, उसी में संतुष्ट हुआ जाए। और सरकार के प्रचारित विकास को ही असल विकास समझ लेना चाहिए। सरकार भी जनता की ऐसी मानसिकता को पहचान कर मेहनतकश विरोधी नीतियों को बेशर्मी से निरन्तर आगे बढ़ा रही है।
    
जिस तरह सडे-गले कूड़े को दबाकर उसकी बदबू को रोका नहीं जा सकता। वैसे ही सरकार भी देश में बढ़ती गरीबी जैसी समस्या के जिस तरह के समाधान के नुस्खे अपना रही है और उसको भी ढेरों तरीकों से छुपाने व दफनाने की ठग विद्या पर इस सबसे गरीबों के बढ़ते आक्रोश से सरकार बच नहीं सकेगी। -राजू, गुड़गांव

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।