बढ़ती महिला हिंसा

पूंजीवादी व्यवस्था में सामंतों की औलादें आज भी मौजूद हैं जो समय-समय पर देखने को मिल जाती हैं। हमारा पूरा समाज पूंजीवादी व्यवस्था में पूरी तरह जकड़ा हुआ है जिसमें सामंती व्यवस्था के अवशेष समय-समय पर दिखते हैं। 
    
सामंती जमाने से आज तक (पूंजीवादी व्यवस्था) नारियों पर हिंसा होती चली आ रही है। 
    
हाल ही में पूर्वी उ.प्र. में मऊ जिले की एक मजदूर बस्ती में मझौंआ (ताजपुर) में एक घटना सामने आयी जिसमें कुछ लम्पट पुरुष फोरलेन सड़क के किनारे से फोरव्हीलर गाड़ी से जा रहे थे। ये शराब के नशे में थे। उसी समय तीन महिलायें फोरलेन सड़क के किनारे से रोड़ क्रास कर रही थीं। तभी फोरव्हीलर में सवार लम्पटों ने उन महिलाओं पर गंदे कमेंट किये। फिर उन तीनों महिलाओं में से एक महिला ने उनका विरोध किया। उसके बाद उन लम्पटों ने अपनी गाड़ी घुमाकर उन तीनों महिलाओं को अपनी गाड़ी से कुचल दिया जिसमें दो महिलाओं की मौके पर ही मौत हो गयी। एक महिला गम्भीर रूप से घायल हो गयी। मौके पर पुलिस बल ने पहुंचकर महिलाओं की बॉडी को पोस्टमार्टम के लिए जिला अस्पताल भेज दिया। और घायल लड़की को इलाज के लिए बीएचयू भेजा गया। 
    
मृत महिलाओं के घर वालों ने तत्काल आनन-फानन में थाने में लंपटों पर कार्यवाही हेतु एफआईआर दर्ज करायी। पुलिस विभाग ने बिना जांच किये उस घटना को एक्सीडेंट बनाकर एफआईआर दर्ज कर दी लेकिन जब घायल लड़की ने बीएचयू से वापस घर आकर घटना की आप बीती अपने घर वालों को बतायी तब पता चला कि यह दुर्घटना नहीं थी बल्कि उन कारवालों ने प्रतिक्रिया में आकर जानबूझकर महिलाओं को कुचला था। घायल लड़की ने पुलिस वालों को बयान भी दिया। फिर भी पुलिस अधिकारी एवं ए एस पी तक सभी प्रशासनिक लोग उन हत्यारों को बचाने में लगे हुए हैं। जहां धारा 302 लगानी चाहिए वहां धारा 304। लगाकर गैर इरादतन हत्या में रिपोर्ट दर्ज की गयी है। उसके बाद पीड़ित पक्ष न्याय के लिए न्यायालय के चक्कर काट रहा है। 
    
छेड़-छाड़ एवं बलात्कार करके महिलाओं को मार देने की घटनायें आम तौर पर देखने को मिल जाती हैं। ऐसी बहुत सी घटनायें सामाजिक दबाव के कारण थाने तक जाती ही नहीं हैं। हमारी कानून व्यवस्था भी भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ चुकी हैं। आखिर लोग न्याय के लिए जायें तो कहां जायें।
    
आखिर इस तरह की छेड़-छाड़ एवं बलात्कार जैसी घटनाओं को अंजाम देने वाले ये अराजक तत्व कहां से पैदा हो रहे हैं। इन्हें कौन पैदा कर रहा है? ऐसी घटनाओं के पीछे मुनाफे पर टिकी पूंजीवादी व्यवस्था जिम्मेदार है। जो समाज में लगातार पतित संस्कृति परोस रही है। यह पतित उपभोक्तावादी संस्कृति फिल्मों, अश्लील गानों, विज्ञापनों द्वारा चैनलों, सोशल मीडिया द्वारा परोसी जा रही है। अर्थात समाज के सामने इस तरह पतित संस्कृति परोसी जा रही है जिससे आज की पूरी नौजवान पीढ़ी पूरी तरह इसका शिकार हो रही है। 
    
ये पूंजीपति कोई भी सामान का विज्ञापन कराते हैं तो उस सामान के बगल में एक खूबसूरत अर्द्धनग्न महिला को भी खड़ा कर देते हैं। जिससे देखने में यह प्रतीत होगा कि वह सामान और महिला दोनों उपभोग की वस्तुएं हैं। 
    
ये पूंजीपति वर्तमान समय में इस नौजवान पीढ़ी को नशाखोरी, वेश्यावृत्ति का शिकार बना रहे हैं तथा स्वस्थ मनोरंजन की जगह दूषित मनोरंजन परोस रहे हैं।
    
इस तरह की घटनाओं से हमें निजात पाने के लिए एक साथ मिलकर लड़ना होगा। ऐसी सामंती पितृसत्तात्मक-पुरुष प्रधान सोच एवं पूंजीवादी सोच रखने वाली संस्कृति के खिलाफ लड़ना होगा और स्वस्थ संस्कृति स्वस्थ मनोरंजन स्थापित करने के लिए एक मात्र तरीका है संघर्ष। बिना संघर्ष के हमें कुछ भी नहीं प्राप्त हो सकता। -सिकन्दर (मऊ)

आलेख

बलात्कार की घटनाओं की इतनी विशाल पैमाने पर मौजूदगी की जड़ें पूंजीवादी समाज की संस्कृति में हैं

इस बात को एक बार फिर रेखांकित करना जरूरी है कि पूंजीवादी समाज न केवल इंसानी शरीर और यौन व्यवहार को माल बना देता है बल्कि उसे कानूनी और नैतिक भी बना देता है। पूंजीवादी व्यवस्था में पगे लोगों के लिए यह सहज स्वाभाविक होता है। हां, ये कहते हैं कि किसी भी माल की तरह इसे भी खरीद-बेच के जरिए ही हासिल कर उपभोग करना चाहिए, जोर-जबर्दस्ती से नहीं। कोई अपनी इच्छा से ही अपना माल उपभोग के लिए दे दे तो कोई बात नहीं (आपसी सहमति से यौन व्यवहार)। जैसे पूंजीवाद में किसी भी अन्य माल की चोरी, डकैती या छीना-झपटी गैर-कानूनी या गलत है, वैसे ही इंसानी शरीर व इंसानी यौन-व्यवहार का भी। बस। पूंजीवाद में इस नियम और नैतिकता के हिसाब से आपसी सहमति से यौन व्यभिचार, वेश्यावृत्ति, पोर्नोग्राफी इत्यादि सब जायज हो जाते हैं। बस जोर-जबर्दस्ती नहीं होनी चाहिए। 

तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले

ये तीन आपराधिक कानून ना तो ‘ऐतिहासिक’ हैं और ना ही ‘क्रांतिकारी’ और न ही ब्रिटिश गुलामी से मुक्ति दिलाने वाले। इसी तरह इन कानूनों से न्याय की बोझिल, थकाऊ अमानवीय प्रक्रिया से जनता को कोई राहत नहीं मिलने वाली। न्यायालय में पड़े 4-5 करोड़ लंबित मामलों से भी छुटकारा नहीं मिलने वाला। ये तो बस पुराने कानूनों की नकल होने के साथ उन्हें और क्रूर और दमनकारी बनाने वाले हैं और संविधान में जो सीमित जनवादी और नागरिक अधिकार हासिल हैं ये कानून उसे भी खत्म कर देने वाले हैं।

रूसी क्षेत्र कुर्स्क पर यूक्रेनी हमला

जेलेन्स्की हथियारों की मांग लगातार बढ़ाते जा रहे थे। अपनी हारती जा रही फौज और लोगों में व्याप्त निराशा-हताशा को दूर करने और यह दिखाने के लिए कि जेलेन्स्की की हुकूमत रूस पर आक्रमण कर सकती है, इससे साम्राज्यवादी देशों को हथियारों की आपूर्ति करने के लिए अपने दावे को मजबूत करने के लिए उसने रूसी क्षेत्र पर आक्रमण और कब्जा करने का अभियान चलाया। 

पूंजीपति वर्ग की भूमिका एकदम फालतू हो जानी थी

आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।

राजनीति में बराबरी होगी तथा सामाजिक व आर्थिक जीवन में गैर बराबरी

यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।