बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं पर लगाए झूठे मुकदमे

हल्द्वानी/ हल्द्वानी के बहुचर्चित रेलवे बनाम बनभूलपुरा अवाम मामले में बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए गये हैं। ज्ञात रहे विगत 2 जुलाई 2022 को बस्ती बचाओ संघर्ष समिति के बैनर तले उत्तराखंड उच्च न्यायालय में अपीलकर्ता रविशंकर जोशी के घर पर जाकर बस्ती के बच्चे और महिलाओं का याचिका वापस लेने की अपील का कार्यक्रम ‘बाल आग्रह’ तय किया गया था। तब मामला उत्तराखंड उच्च न्यायालय नैनीताल में विचाराधीन था। जिसकी पूर्व सूचना स्थानीय प्रशासन, उप जिलाधिकारी कार्यालय हल्द्वानी में दे दी गई थी। 1 जुलाई को संघर्ष समिति के 4 कार्यकर्ता अपीलकर्ता के आवास पर भी कार्यक्रम की पूर्व सूचना देने गये थे। अपीलकर्ता रविशंकर जोशी के घर पर नहीं मिलने पर घर पर मौजूद उनकी माता व बहन से लोगों ने प्रेम पूर्वक हालचाल जाना व मामले से अवगत कराया गया। अपीलकर्ता को फोन कॉल करने पर उन्होंने फोन रिसीव नहीं किया। बाद में उनकी कॉल वापस आई। तब उनको भी इस पूरे मामले से अवगत कराया गया। अपीलकर्ता ने कार्यक्रम पर आपत्ति दर्ज कराई और कार्यक्रम को अपने घर पर न करने का आग्रह किया।

स्थानीय पुलिस-प्रशासन ने भी मामले की गंभीरता व कानून व्यवस्था का हवाला देकर रविशंकर जोशी के घर पर कार्यक्रम न करने की अपील की। संघर्ष समिति ने 2 जुलाई का कार्यक्रम अपीलकर्ता के घर की जगह बुद्ध पार्क, तिकोनिया में करना तय किया। संघर्ष समिति के लोगों ने अपीलकर्ता व प्रशासन के साथ इस तरह से सहयोग ही किया।

इसके बावजूद रविशंकर जोशी ने गलत इरादे से इस मामले की शिकायत उच्च न्यायालय में की। जिस पर उच्च न्यायालय ने स्वतः कोई संज्ञान न ले एसएसपी नैनीताल को जांच के आदेश दिये। संघर्ष समिति के संयोजक से एसपी सिटी कार्यालय, हल्द्वानी में विस्तार से पूछताछ की गयी। जोकि अपीलकर्ता के घर में नहीं गये थे। चोरगलिया थाने के एसआई ने मामले में घर गये चारों कार्यकर्ताओं रजनी, चंदन, रियासत और उमेश से अलग-अलग पूछताछ की। प्रशासन ने कहा कि उच्च न्यायालय में हम जांच सौंप देंगे और मामले का कोई आधार न होने की बात की।

14 फरवरी, 2023 को संघर्ष समिति के एक कार्यकर्ता के घर में 17 फरवरी को न्यायालय में प्रस्तुत होने का सम्मन प्राप्त हुआ। उसके बाद तीन और कार्यकर्ताओं के नाम सम्मन पहुंचे। इनमें परिवर्तनकामी छात्र संगठन, प्रगतिशील महिला एकता केंद्र और क्रांतिकारी लोक अधिकार संगठन, तीन संगठनों के कार्यकर्ता थे। इसमें समिति के सदस्यों पर आईपीसी की जमानती-गैर जमानती धाराओं 387 (जबरदस्ती वसूली करने के लिए किसी व्यक्ति को स्वयं उसकी या किसी अन्य व्यक्ति की मृत्यु या गंभीर आघात के भय में डालेगा या डालने का प्रयत्न करेगा), 448 (कोई गृह-अतिचार करेगा), 506 (जब कोई व्यक्ति आपराधिक धमकी के अपराध का दोषी होता है) के तहत मामला दर्ज किया गया हैं। जबकि उनके घर में प्रेमपूर्वक बातचीत हुई थी। FIR में 448 व 506 धाराओं का जिक्र है। जबकि 387 धारा बाद में पुलिस-प्रशासन ने जोड़ दी। मुकदमे दर्ज होने के बाद 2 सम्मन प्रशासन ने समिति के सदस्यों को नहीं दिये। तीसरा सम्मन समिति के सदस्यों को पुलिस से प्राप्त हुआ। संघर्ष समिति के लोगों को परेशान करने के लिए पुलिस प्रशासन ने पहले के दो सम्मन जारी नहीं किये।

अवगत रहे बस्ती बचाओ संघर्ष समिति इस मामले को सामाजिक रूप और न्यायालय के स्तर पर मामले को बस्ती वासियों के पक्ष में उठा रही थी जो कि आज भी जारी है। संघर्ष समिति के लोग ऐसे समय में यह कार्यवाहियां कर रहे थे जब उत्तराखंड सरकार 2016 के बाद न्यायालय में बनभूलपुरा की अपनी जमीन की पैरवी करना बंद कर चुकी थी। वह इस मामले में चुप्पी लगाकर बैठ गई थी। रेलवे, स्थानीय प्रशासन बार-बार जमीन खाली करने की बात कर रहा था। सामाजिक रूप से बस्ती वासियों के पक्ष में कोई आवाज नहीं उठ रही थी। उस वक्त संघर्ष समिति बस्ती वासियों के साथ मिलकर उत्तराखंड सरकार से बस्ती की पैरवी करने, प्रशासन स्तर पर कोई कार्यवाही ना करने, रेलवे से झूठा दावा वापस लेने, (ज्ञात रहे रेलवे ने बस्ती पर पक्षकार बनकर अपना दावा नहीं जताया) रवि शंकर जोशी से अपनी गलत याचिका वापस लेने, केंद्र सरकार से इस मामले में हस्तक्षेप कर बस्ती वासियों के पक्ष में खड़े होने की मांग कर रहे थे। ऐसे में संघर्ष समिति के कार्यकर्ताओं को हैरान-परेशान करने के इरादे से यह कार्यवाहियां की गई हैं।

इस पूरे मामले में शुरुआत से ही गलत कार्यवाहियां होती रही हैं। 2008 में बस्ती के पूरब की ओर बहने वाली गौला नदी में बना पुल गिर गया। याचिकाकर्ता रविशंकर जोशी ने उत्तराखंड उच्च न्यायालय में पुल टूटने की जांच की मांग को लेकर याचिका लगाई। पुल टूटने की जांचकर, उसके आरोपियों पर कार्यवाही करने की जगह, बस्ती के गरीब लोगों की वजह से पुल टूटना मान लिया गया। बाद में रेलवे की ओर से एक एफिडेविट के जरिए अपनी 29 एकड़ भूमि में अतिक्रमण की बात कही गयी जो बाद में रहस्यमय तरीके से 78 एकड़ भूमि कर दी गयी। (20 दिसंबर को उत्तराखंड उच्च न्यायालय के फैसले में कितनी भूमि अतिक्रमण की जद में हैं इसका जिक्र तक नहीं था) तभी से यह विवादित भूमि बन गयी। याचिकाकर्ता और रेलवे ने इसे रेलवे की भूमि मान लिया। बस्ती वासियों से उक्त भूमि को खाली कराने की योजना चलती रही हैं। फिलहाल उच्चतम न्यायालय द्वारा लगी रोक के चलते मामला फिलहाल रुका हुआ है।

बस्ती बचाओ संघर्ष समिति 50 हजार लोगों के आवास और जीवन की रक्षा की मांग कर रही है। बस्ती में रहने वाली आबादी मजदूर-मेहनतकश, गरीब लोग हैं। हिन्दू-मुस्लिम सभी धर्मों के लोग वहां पर रहते हैं। बहुसंख्यक आबादी अल्पसंख्यक मुस्लिम समुदाय से है। वहां पर सरकारी स्कूल, अस्पताल, सड़क, बिजली, पानी आदि सरकारी सुविधाएं निवासियों के पास मौजूद हैं। वर्षों से वहां लोगों से टैक्स वसूला जाता रहा हैं। दोनों ही धर्मों के धर्मस्थल वहां मौजूद हैं। पिछले कई दशकों से वहां निवासियों के अपने आवास मौजूद हैं। जिंदगी भर की मेहनत लोगों ने वहां लगाई है। लोग यहां के निवासी हैं, नागरिक हैं।

संघर्ष समिति ने अपने 4 लोगों पर लगाये फर्जी मुकदमों की निन्दा की है और कहा है कि ऐसे दमनकारी कदमों से समिति डरने व न्याय की लड़ाई छोड़ने वाली नहीं है। -हल्द्वानी संवाददाता

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