दृष्टिबाधित बच्चियां हुई यौन हिंसा का शिकार

हल्द्वानी/ उत्तराखण्ड के हल्द्वानी शहर के निकट गोलापार की नेशनल एसोसिएशन फार द ब्लाइंड (छ।ठ) नवाड़खेड़ा, एक आवासीय शैक्षणिक संस्थान हैं जिसमें आंखों की रोशनी गंवा चुके दृष्टिबाधित बच्चे पढ़ते हैं। यह संस्था दृष्टिबाधित बच्चों के भविष्य को संवारने की बात करती है। इस संस्था में अधिकतर लड़कियां पढ़ती हैं। इस संस्था में पढ़ने के लिए हल्द्वानी के आस-पास के इलाके के अलावा राजधानी देहरादून से आकर भी बच्चे पढ़ते हैं। यह संस्था दृष्टिबाधितों के सशक्तिकरण, शिक्षा व समावेश की दिशा में काम करने के लिए पहचानी जाती है। यह संस्था देशव्यापी है। 
    
सरकारों द्वारा बाल विकास व महिला सशक्तिकरण के लिए कई संस्थाएं खोली गयी हैं जो महिला उत्थान के लिए काम करने वाली कही जाती हैं। सरकारों द्वारा ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ का नारा दिया गया है। कहा जाता है कि बेटी पढ़ेगी तभी तो बेटी आगे बढ़ेगी। लेकिन सरकारों द्वारा खोली गयी संस्थाओं की असलियत नेशनल एसोसिएशन फार द ब्लाइंड संस्था में पढ़ने वाली बच्चियों के साथ होने वाली यौन हिंसा से खुलती है। 
    
नेशनल एसोसिएशन फार द ब्लाइंड की एक शाखा गौला पार में है। वहां के संचालक श्याम धानक जो कि 60 वर्ष के हैं; संस्था में पढ़़ने वाली लड़कियों के साथ लम्बे समय से यौन उत्पीड़न कर रहे थे। कई लड़कियां श्याम धानक के द्वारा किये गये यौन उत्पीड़न की शिकार थीं। वह उन पीड़ित लड़कियों को मारता-पीटता था। उन्हें कई दिनों तक खाना नहीं देता था ताकि उसके कृत्यों की सूचना बाहर न जा सके। लड़कियों के पास मोबाइल व संचार का कोई साधन नहीं था। और न धानक ने संस्था के संचार साधनों का प्रयोग करने की अनुमति दी थी। पूरी संस्था में खौफ का माहौल था। छह माह पूर्व एक बच्ची ने स्टाफ को उसके साथ होने वाले यौन उत्पीड़न के बारे में बताया था। लेकिन धानक के खौफ के चलते स्टाफ ने न तो बच्चों से पूछताछ की और न ही धानक को रोका। 
    
बाल कल्याण समिति (सी डब्ल्यू सी) की टीम निरीक्षण के लिए जब वहां आती थी तो पीड़ित बच्चों को समिति के सामने नहीं लाया जाता था। इस सब के बावजूद एक बच्ची ने साहस का परिचय दिया। उसने डरते, छुपते-छुपाते एक पत्र नैनीताल के वरिष्ठ पुलिस अधीक्षक तक भेजा जिसमें उसने अपने व अन्य बच्चियों के साथ होने वाली यौन हिंसा के बारे में बताया। मामला बड़ा था इसलिए पुलिस सक्रिय हुई। 13 अक्टूबर को धानक को गिरफ्तार कर लिया गया। 
    
यह संस्था एक बड़ी व देशव्यापी संस्था है। उसके बावजूद बच्चियां यौन उत्पीड़न की शिकार हुईं। हमारे देश में कई ऐसी संस्थाएं हैं। जहां गरीब, मूकबधिर, दृष्टिबाधित, मानसिक विकलांग व अनाथ बच्चियां रहती व पढ़ती हैं। इन संस्थाओं में लड़कियों का सशक्तिकरण व विकास तो कम वह यौन हिंसा की शिकार ज्यादा होती हैं। हर जगह कमजोर मासूम बच्चों को यौन हिंसा का शिकार आसानी से बनाया जाता है। राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो (एन सी आर बी) की रिपोर्ट के मुताबिक 2021 में बच्चों के खिलाफ अपराधों के 1,49,404 मामले दर्ज किए गए हैं। इनमें से 53,874 मामले पाक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं। 
    
राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार भारत में पिछले चार साल में 1,88,257 मामले पाक्सो एक्ट के तहत दर्ज हुए हैं। 2014 की नेशनल क्राइम रिकार्डस ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार तब एक वर्ष में बच्चों के बलात्कार के 13,776 मामले, लड़कियों के शील भंग करने के इरादे से हमला करने के 11,335 मामले, यौन उत्पीड़़न के 4,593 मामले, उन्हें निर्वस्त्र करने के व शक्ति प्रयोग के 711 मामले, घूरने के 88 और पीछा करने के 1,091 मामले दर्ज किए गये। जाहिर है समय के साथ इन मामलों में वृद्धि ही हुई है। 
    
असल में असलियत कहीं ज्यादा भयावह है। कई मामले तो थाने तक पहुंचते ही नहीं हैं। लड़कियां गरीब, दलित व वंचित समुदाय की हों तो हालात और भी बुरे हैं। 
    
मजदूर-मेहनतकश वर्ग की महिलाए-लड़कियां आये-दिन किसी न किसी हिंसा की शिकार होती हैं जिसमें यौन हिंसा भी शामिल हैं। 
    
लड़़कियों व महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा के पीछे उजरती दासता, सामंती मूल्य-मान्यताएं व घरेलू दासता है। पूंजीवाद द्वारा पालित-पोषित अश्लील संस्कृति महिलाओं व लड़कियों को यौन वस्तु में तब्दील कर देती है। पूंजीवादी संस्कृति कमजोर असहाय को दबाती है। जिसका शिकार महिलाओं के साथ-साथ समाज का हर दबा कुचला-गरीब-कमजोर समुदाय होता है। इस सबसे मुक्ति का एक विकल्प हैं कि मजदूर-मेहनतकश- किसान-नौजवान, महिलाएं एकजुट हों समस्याओं की जड़ पूंजीवादी व्यवस्था का नाश कर मजदूर-मेहनतकशों का समाज समाजवाद का निर्माण करें।         -हल्द्वानी संवाददाता

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