महाशक्तियों के बीच टकराव का एक और क्षेत्र - एशिया-प्रशांत क्षेत्र

दुनिया के कई क्षेत्रों में महाशक्तियों के बीच टकराव तीव्र से तीव्रतर होते जा रहा है। अमरीकी साम्राज्यवादी अभी भी सबसे ताकतवर बने हुए हैं। लेकिन उनके प्रभाव को जगह-जगह पर चुनौती मिल रही है। चुनौती देने वाली शक्तियों में रूसी और चीनी साम्राज्यवादी ताकतें हैं। इस समय इन दोनों साम्राज्यवादी गुटों में टकराव का एक केन्द्र रूस-यूक्रेन युद्ध है। टकराव का दूसरा केन्द्र पश्चिम एशिया में है जहां अमरीकी साम्राज्यवादी, इजरायली यहूदी नस्लवादी सत्ता द्वारा फिलिस्तीनियों का गाजापट्टी में किये जा रहे नरसंहार और विनाश में साझीदार व मददगार हैं। टकराव के इस क्षेत्र में रूसी और चीनी साम्राज्यवादी फिलिस्तीनियों की आजादी और उनके संप्रभु राज्य के बनने के समर्थक के बतौर दिखाई दे रहे हैं। टकराव की ओर लगातार बढ़ता जा रहा एक और क्षेत्र, एशिया प्रशांत क्षेत्र है। यहां अमरीकी साम्राज्यवादी, चीनी साम्राज्यवादियों के बढ़ते प्रभाव को सीमित करने के लिए उसकी घेरेबंदी कर रहे हैं। इस क्षेत्र की मध्यवर्ती शक्तियों के साथ गठबंधन बना रहे हैं। चीन के साथ इस क्षेत्र के देशों के विवादों को हवा दे रहे हैं। इस क्षेत्र के विभिन्न देशों में अपने पहले से तैनात फौजी अड्डों का विस्तार कर रहे हैं। चीन के आर्थिक प्रभाव को कमजोर करने के लिए उस पर प्रतिबंध लगा रहे हैं। चीन के एक चीन के सिद्धांत को स्वीकार करने के बावजूद, ताइवान को चीन का हिस्सा मानने के बावजूद, ताइवान को चीन के विरुद्ध हथियारबंद कर रहे हैं। दक्षिणी चीन सागर में आवाजाही की स्वतंत्रता के नाम पर इस क्षेत्र में अपनी नौसेना की मौजूदगी को बढ़ा रहे हैं और समय-समय पर उकसावे की कार्रवाई करते रहते हैं। अमरीकी साम्राज्यवादी चीन को दीर्घकालिक तौर पर अपना सबसे बड़ा प्रतिद्वन्द्वी घोषित कर चुके हैं। 
    
अपने गिरते हुए प्रभाव को रोकने और इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव को कमजोर करने के मकसद से अमरीकी साम्राज्यवादी कूटनीतिक तौर पर अपना आक्रामक अभियान पिछले दो वर्षों से, विशेष तौर पर रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद से तेज करते जा रहे हैं। अभी हाल ही में अमरीका के विदेश सचिव एन्टोनी बिंल्कन ने चीन की यात्रा के दौरान चीन के विदेश मंत्री और चीनी राष्ट्रपति शी जिन पिंग से मुलाकात के दौरान चीन द्वारा रूस की मदद न करने की सिफारिश की। बिंल्कन की चीन की इस यात्रा के ठीक पहले रूसी विदेशमंत्री लावरोव की चीन यात्रा हुई थी। अमरीकी विदेश मंत्री ने चीन को यह कहा कि वह रूस को सेमी कण्डक्टर और चिप्स की आपूर्ति करके उसे हथियार निर्माण में मदद कर रहा है। इस तरह चीन का यह दावा कि वह रूस को हथियारों की आपूर्ति नहीं करता, गलत साबित हो रहा है। सेमी कण्डक्टर और चिप्स का दोहरा उपयोग हो सकता है और वस्तुतः रूस इनका सैनिक उपयोग कर रहा है। 
    
चीनी विदेश मंत्री ने बिंल्कन की इस मांग को अस्वीकार करते हुए यह कहा कि अमरीका कहता कुछ है और करता कुछ है। इसका उदाहरण देते हुए चीनी विदेशमंत्री ने अपने अमरीकी समकक्ष से कहा कि एक तरफ अमरीका एक चीन के सिद्धांत को मानता है, वह ताइवान की सरकार को घोषित तौर पर कोई स्वतंत्र देश की सरकार नहीं मानता। दूसरी तरफ, ताइवान को आधुनिक हथियारों की आपूर्ति करता है। वह सिर्फ ताइवान को आधुनिक हथियार ही नहीं बेचता बल्कि ताइवान के भीतर अमरीकी फौज को भी तैनात करता है। स्वाभाविक था कि बिंल्कन के पास इसका कोई तार्किक जवाब नहीं था। 
    
तमाम किस्म की मीठी बातों और कूटनीतिक दांवपेंचों के बावजूद फिलीपीन्स के साथ कुछ टापुओं को लेकर चीन के साथ विवाद में अमरीकी साम्राज्यवादी न सिर्फ फिलीपीन्स को उकसा रहे हैं बल्कि फिलीपीन्स में अपने फौजी अड्डों की उपस्थिति को भी बढ़ा रहे हैं। यह चीनी सरकार की निगाह में इस क्षेत्र में अस्थिरता और तनाव पैदा करने वाला कदम है। इसके अतिरिक्त, ताइवान के अधीन एक टापू किनमिन नाम का है जो चीन की सीमा से महज 10 किमी. की दूरी पर है, इसके कुछ हिस्से तो चीन से महज 4 किमी. की दूरी पर हैं। इस किनमिन टापू पर अमरीका अपनी फौजी टुकड़ी तैनात किये हुए है। चीन की सरकार इस पर भी अपना ऐतराज जता चुकी है।
    
बिंल्कन के साथ बातचीत के दौरान दक्षिणी चीन सागर के मुद्दे पर फिलीपीन्स के साथ विवाद पर चीन ने आपत्ति दर्ज कराई कि रेनाई रीफ सहित नान्शा द्वीप समूह पर चीन का ऐतिहासिक और कानूनी अधिकार रहा है। लेकिन फिलीपीन्स ने यहां से अपना युद्धपोत नहीं हटाया। वह रेनाई रीफ पर कब्जा करना चाहता है। अमरीका अक्सर ‘‘यू.एस. फिलीपीन्स पारस्परिक रक्षा संधि’’ की धमकी देकर न सिर्फ संयुक्त राष्ट्र चार्टर उद्देश्यों और सिद्धान्तों का गम्भीर उल्लंघन करता है बल्कि इस क्षेत्र की शांति और स्थिरता को भी गम्भीर रूप से कमजोर करता है। 
    
बिंल्कन ने चीन की ‘अतिक्षमता’ उत्पादन के बारे में आरोप लगाया था और कहा कि नये ऊर्जा वाहनों, लिथियम बैटरी और फोटोवोल्टिक उत्पादों पर चीन की सरकार सब्सिडी देकर उन्हें बड़े पैमाने पर उत्पादित कर रही है। इससे अमरीकी और अन्य देशों के इन उत्पादों को प्रतिस्पर्धा में वे पछाड़ रही हैं। इस पर भी दोनों विदेश मंत्रियों के बीच मतभेद मौजूद था। 
    
चीन के विदेशमंत्री ने अपने अमरीकी समकक्ष से कहा कि वह चीन में तथाकथित ‘अतिक्षमता’ की झूठी कहानी को प्रचारित करना बंद करे, चीनी कम्पनियों के विरुद्ध अवैध प्रतिबंधों को रद्द करे और विश्व व्यापार संगठन के नियमों का उल्लंघन करने वाले 301 तटकर लगाना बंद करे। 
    
बिंल्कन की इस यात्रा के दौरान दोनों पक्षों ने सम्बन्धों को सुधारने पर बात की लेकिन दोनों सरकारों के बीच मतभेद ज्यादा बड़े उभरकर सामने आये। 
    
चीन के प्रतिद्वन्द्वी के बतौर उभरने से अमरीकी साम्राज्यवादी बौखलाने लगे हैं। अमरीकी साम्राज्यवादियों का एक हिस्सा तो चीन में शासन परिवर्तन की भी मांग करता रहा है। अमरीका का पूर्व उप राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार मैट पोटिंगर और एक अन्य पूर्व अधिकारी माइक गैलाघर ने अपने लेख में वस्तुतः यह लिखा है कि संयुक्त राज्य अमेरिका को चीन के साथ प्रतिस्पर्धा का प्रबंधन नहीं करना चाहिए, उसे चीन को जीतना चाहिए। वे पूरे एशिया-प्रशांत क्षेत्र में ईंधन, गोलाबारूद और उपकरण जैसी महत्वपूर्ण आपूर्ति को तेज करके अमरीकी सैन्य प्रतिष्ठानों को बढ़ाने की हिमायत कर रहे हैं। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी न सिर्फ ताइवान को आधुनिक हथियारों से लैस कर रहे हैं बल्कि चीन के प्रभाव को कमजोर करने के लिए ‘क्वाड’ को नये नाटो के रूप में आगे बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं। न्यूजीलैण्ड पर भी दबाव डालकर आकस (।न्ब्न्ै)  में जोड़ने की कोशिश हो रही है। 2022 में नैंसी पेलोसी की ताइवान की यात्रा तनाव बढ़ाने का ही उकसावेभरा कदम था। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों ने इसके बाद एशिया प्रशांत क्षेत्र में नयी मध्यम दूरी की मिसाइलों की तैनाती की प्रक्रिया शुरू कर दी। इसका उद्देश्य यह बताया गया कि इससे चीन को ताइवान पर आक्रमण करने से रोकना है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों ने फिलीपीन्स में एक सैन्य अभ्यास में भाग लेने के लिए पहली बार अपनी नवीनतम भूमि आधारित मध्यम दूरी की मिसाइल प्रणाली के तत्वों को विदेशों में तैनात किया। उपरोक्त सबसोनिक टॉमहॉक क्रूज मिसाइलों के अलावा, टाइफान सुपरसानिक एस एम-6 बहुउद्देश्यीय मिसाइलों को भी ले जाता है। ये सारी मिसाइल प्रणालियां चीन के पश्चभूमि में स्थापित होंगी। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादियों द्वारा क्वाड और आकस के जरिये सैनिक युद्धाभ्यास किया जा रहा है। यह सीधे तौर पर चीन के विरुद्ध केन्द्रित है। इसके अतिरिक्त अमरीकी साम्राज्यवादी एक चलायमान फौजी अड्डा बनाने जा रहे हैं जो सागर में मौजूद रहेगा। इसमें हवाई उड़ानों और जहाजों के लिए भरपूर मात्रा में ईंधन की भरने की सुविधा रहेगी। यह आसानी से एक स्थान से दूसरे स्थान तक सागर में जरूरत के मुताबिक विचरण कर सकेगा। 
    
इसके जवाब में रूसी और चीनी साम्राज्यवादी उत्तरी कोरिया के साथ मिलकर सैन्याभ्यास कर रहे हैं। ये तीनों देश परमाणु हथियारों से सम्पन्न देश हैं। उत्तरी कोरिया को अभी तक अमरीकी साम्राज्यवादी अलग-थलग करने की कोशिशों में लगे हुए हैं। लेकिन रूस-यूक्रेन युद्ध के बाद रूसी और चीनी साम्राज्यवादी ज्यादा दृढ़ता के साथ उत्तरी कोरिया के साथ गठबंधन में आ गये हैं। 
    
इस प्रकार, देखा जा सकता है कि एक तरफ अमरीकी साम्राज्यवादी जापान, दक्षिण कोरिया, ताइवान, फिलीपीन्स, आस्ट्रेलिया और अन्य कुछ एशिया प्रशांत के देशों के साथ मिलकर चीनी साम्राज्यवादियों के प्रभाव को कमजोर करने के लिए सैनिक, राजनीतिक और कूटनीतिक घेरेबंदी कर रहे हैं और दूसरी तरफ, रूसी और चीनी साम्राज्यवादी उत्तरी कोरिया के साथ मिलकर हर तरह से इसका जवाब देने की तैयारी में लगे हुए हैं। 
    
सबसे दुविधाग्रस्त और पशोपेश में इस क्षेत्र की कुछ मध्यवर्ती शक्तियां हैं। इंडोनेशिया, मलयेशिया, वियतनाम, लाओस और कम्बोडिया जैसे देश एक तरफ चीन के साथ व्यापारिक सम्बन्ध बढ़ाते जा रहे हैं। दूसरी तरफ, उससे आशंकित भी हैं। वे अमरीकी साम्राज्यवादियों से आशंकित भी हैं और उसे नाराज भी नहीं करना चाहते। ऐसे देश यह नहीं चाहते कि एशिया-प्रशांत क्षेत्र दो महाशक्तियों- अमरीका और चीन- के बीच युद्ध का क्षेत्र बने। इसमें वे अपना नुकसान देखते हैं। 
    
लेकिन इस क्षेत्र में टकराव बढ़ता जा रहा है। चीन और रूस के साथ कई क्षेत्रीय संगठन खड़े हैं और वे इस टकराव में इनकी ताकत बन सकते हैं। लेकिन अमरीकी साम्राज्यवादियों के साथ भी नाटो के अलावा अलग-अलग क्षेत्रीय संगठन खड़े हैं। हालांकि इन क्षेत्रीय संगठनों की वैसी मजबूत स्थिति नहीं है जैसी ब्रिक्स, शंघाई सहकार संगठन जैसे संगठनों की स्थिति है। 
    
लेकिन इन दोनों प्रकार के क्षेत्रीय संगठनों के भीतर भी मतभेद और अंतरविरोध मौजूद हैं। इससे जटिल स्थिति बन जाती है। 
    
अमरीकी साम्राज्यवादी और उसके नाटो सहयोगी लगातार यूक्रेनी युद्ध में उलझे होने से काफी फंसे हुए हैं। अब चीन को घेरने में वे और ज्यादा फंसने से डरते भी हैं लेकिन उनके स्वार्थ उन्हें इसी दिशा में ले जा रहे हैं। 
    
वस्तुगत तौर पर इस क्षेत्र में टकराव की स्थितियां बढ़ती जा रही हैं। क्या मौजूदा टकराव युद्ध की ओर जायेगा, यह आने वाला समय बतायेगा। लेकिन देर सबेर इससे बचा नहीं जा सकता। 

आलेख

/syria-par-atanki-hamalaa-aur-takhtaapalat

फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।

/bharatiy-arthvyawastha-ki-gati-aur-niyati

यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं। 

/izrail-lebanaan-yudha-viraam-samjhauta-sthaayi-samadhan-nahin-hai

इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं। 

/ek-baar-phir-sabhyata-aur-barbarataa

कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।