मंदिर राम का, वोट भाजपा का

प्रधानमंत्री मोदी के द्वारा अयोध्या में राम मंदिर के उद्घाटन की तैयारियां जोरों पर हैं। चुनावी वर्ष में चुनाव से कुछ समय पूर्व मंदिर उद्घाटन संघ-भाजपा को वोटों की नयी खेप मिलने की उम्मीद जगा रहा है। राम के सहारे मोदी तीसरी बार प्रधानमंत्री बनने का ख्वाब पाले हुए हैं। 
    
संघ-भाजपा के राजनैतिक उत्थान में राम के इस मंदिर की बड़ी भूमिका रही है। राम चाहे जहां पैदा हुए हों, इतिहास में हुए भी हों या न हुए हों, संघ-भाजपा ने राम के अयोध्या में पैदा होने और बाबर द्वारा राम मंदिर की जगह बाबरी मस्जिद बनाने के विमर्श को समाज में जमीनी स्तर पर मेहनत कर स्थापित किया। इस विमर्श के साथ फिर से वहां राम मंदिर बनाने को एक आंदोलन का रूप दे डाला। आंदोलन की बढ़ती के साथ ही संघ-भाजपा का आधार और वोट बैंक बढ़ता गया। आंदोलन की बढ़ती के साथ ही भारतीय समाज का साम्प्रदायिक सद्भाव बिगड़ता गया। 
    
बाबरी विध्वंस और उसके साथ दंगों का जो सिलसिला शुरू हुआ वो बीते 30 वर्षों में देश के हर कोने-अंतरे में क्रमशः फैलता चला गया। संघ-भाजपा दंगों व साम्प्रदायिक वैमनस्य की फसल बोते-बोते भारतीय राजनीति के हाशिये से केन्द्र में आ गये। इस दौरान मंदिर मुद्दा उनकी मदद करता रहा। इन दंगों में हजारों हिन्दू-मुस्लिमों का खून बहाकर ही ये सत्ता के केन्द्र पर पहुंच पाये। 
    
इन्होंने मंदिर मुद्दा तब तक जिन्दा रखा जब तक इन्हें और भरोसेमंद मुद््दे न मिल गये। अंततः साम्प्रदायिक मुद्दों का अंबार- गौहत्या, लव जिहाद, मथुरा-काशी, समान नागरिक संहिता आदि- मिलने पर ही इन्हें महसूस हुआ कि राम के बगैर भी इनका साम्प्रदायिक एजेंडा फल-फूल सकता है। कि 30 वर्षों से सांप्रदायिक जहर में पली जनता अब राम के अलावा बाकी मुद्दों पर भी मरने-मारने को उतर सकती है तो इन्होंने न्यायपालिका जो कि खुद राममय हो चुकी थी, से मनचाहा निर्णय दिलवा मंदिर निर्माण शुरू करा दिया और मंदिर उद््घाटन के नाम पर फिर से चुनाव में इसका फायदा लेने का इंतजाम कर दिया। 
    
फासीवादी हिन्दू राष्ट्र कायम करने की कुत्सित मंशा लिए संघ-भाजपा और मोदी तेजी से आगे बढ़ रहे हैं। सभी सरकारी विभागों में संघी मानसिकता के लोग भरने के बाद अब अपराधिक कानूनों की संहिता भी ये मनमाफिक बदल चुके हैं। अब इन्हें इन कानूनों के सहारे विरोध की हर आवाज, हर विपक्षी को अपराधी ठहरा कुचलने का काम करना है। ऐसा करते ही ये फासीवादी हिन्दू राष्ट्र तक पहुंच जायेंगे। साम्प्रदायिकता इनकी विचारधारा का केन्द्र बिन्दु है। इसी के सहारे ये काली ताकतें यहां तक पहुंची हैं और इसी के सहारे और आगे बढ़ना चाहती हैं। भारतीय शासक यानी शीर्ष पूंजीपतियों का आशीर्वाद इन्हें पहले ही मिल चुका है। इन्होंने बीते 10 वर्षों के शासन में समाज में साम्प्रदायिक जहर फैलाने, अंधराष्ट्रवादी उन्माद फैलाने के अलावा मजदूरों-मेहनतकशों-आम जन की खून-पसीने की कमाई को भी तरह-तरह से छीन अम्बानी-अडाणी की तिजोरियों तक पहुंचाने का काम किया है। मजदूरों को निचोड़ने के 4 नये कोड बिल ये पहले ही तैयार कर चुके हैं। 
    
अब ये चाहते हैं कि इनकी करतूतों से त्रस्त, भूख-बेकारी-कंगाली के दलदल में धंसे मजदूर-मेहनतकश राम मंदिर जा राम से बेहतरी की प्रार्थना करें और साथ ही मंदिर निर्माण के लिए मोदी की भी वाहवाही करें। 
    
राम के नाम पर मोदी सरकार और संघ-भाजपा एक से बढ़कर रावणी कृत्य करती गयी है। राम के नाम को उसने दंगे-कत्लेआम का, साम्प्रदायिक जहर फैलाने का जरिया बना डाला। राम के नाम पर हिन्दू-मुसलमानों को एक-दूसरे के खिलाफ इन्होंने खड़ा कर दिया। मोदी के कारनामों से संभवतः रावण भी ईर्ष्या करने लगता कि कैसे राम का नाम लेकर राम को हराया जा सकता है अयोध्या पर कब्जा किया जा सकता है। 
    
राम मंदिर उद्घाटन दरअसल रावणी शक्तियों द्वारा अयोध्या में घुसकर राम को हराना नहीं है। अयोध्या कब्जाने के बाद ये आधुनिक रावणी शक्तियां पूरे देश में कब्जा जमा रावणी-हिटलरी तांडव करना चाहती हैं। 
    
जरूरत है कि आंखें खोली जायें और राम का चोला ओढ़े रावण को पहचाना जाये। और उसे हराने के लिए नयी रामायण रची जाये। देश को उसके चंगुल में जाने से रोका जाए। हिटलर की संतानों को हिटलर के अंजाम तक पहुंचाया जाए। 

आलेख

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