नेपाल: प्रचंड का प्रधानमंत्री बनना

नेपाल में क्रांति की राह छोड़ चुकी पार्टी सीपीएन-माओवादी सेण्टर के नेता प्रचण्ड नये प्रधानमंत्री बन गये हैं। पिछले माह हुए चुनाव में किसी भी दल को पूर्ण बहुमत नहीं मिल पाया था। इससे पूर्व नेपाली कांग्रेस व सीपीएन-माओवादी सेण्टर का गठबंधन सत्तासीन था। इस बार भी इसी गठबंधन के सत्तासीन होने के आसार दीख रहे थे पर प्रचण्ड की शुरूआती 6 माह खुद को प्रधानमंत्री बनाने की मांग को नेपाली कांग्रेस के नेता शेर बहादुर देउबा ने मानने से इंकार कर दिया। परिणाम यह हुआ कि प्रचण्ड ने नेपाली कांग्रेस से गठबंधन तोड़ दिया।

अब प्रचण्ड ने सीपीएन-माओवादी सेण्टर का गठबंधन ओली के नेतृत्व वाले दल सीपीएन यूएमएल, सीपीएन-एमसी, राष्ट्रीय स्वतंत्र पार्टी (आरएसपी) और अन्य छोटे दलों के साथ कायम हो गया। इनके पास 275 सदस्यीय संसद में 168 सांसदों का समर्थन मौजूद है। प्रधानमंत्री बनने के बाद प्रचण्ड को अगले 30 दिनों में संसद में विश्वास मत हासिल करना होगा।

नेपाल की राजनीति में जहां नेपाली कांग्रेस के शेर बहादुर देउबा को भारत समर्थक माना जाता रहा है वहीं दूसरी ओर ओली को चीन समर्थक। प्रचण्ड की स्थिति कभी इस ओर तो कभी उस ओर झुकने की रही है। अब प्रचण्ड ओली की सरकार बनने पर इसे चीन समर्थक सरकार के तौर पर भारत में देखा जा रहा हैै। कहने की बात नहीं कि दक्षिण एशिया के विभिन्न देशों में भारत व चीनी शासक एक तरह से वर्चस्व की जंग लड़ रहे हैं। ऐसे में नेपाल के मौजूदा चुनाव भी भारत और चीन के हस्तक्षेप से युक्त नहीं रहे होंगे। ऐसे में हाल फिलहाल चीन को अपनी पक्षधर सत्ता नेपाल में बिठाने में सफलता मिल गयी है।

प्रचण्ड पूर्व में भारत के साथ हुई गैर बराबरीपूर्ण संधियों को रद्द करने व नई संधियां कायम करने की बातें करते रहे थे। हालांकि जैसे-जैसे उनकी क्रांतिकारिता थमती गयी भारतीय विस्तारवाद के खिलाफ उनके तेवर भी नरम पड़ते गये।

2006 में नेपाल में क्रांति के जरिए जनता ने राजशाही को उखाड़ फेंका था तब प्रचण्ड की माओवादी पार्टी ने इस जनसंघर्ष की अगुवाई की थी। पर राजशाही के खात्मे के बाद नेपाल समाजवाद की राह पर आगे बढ़ने के बजाय पूंजीवाद के रास्ते पर ही आगे बढ़ा। प्रचण्ड और उनकी पार्टी क्रांति की राह छोड़ पूंजीवाद में सत्ता की होड़ में संलग्न हो गयी। आज हालत यहां पहुंच चुकी है कि नेपाली राजनीति में पाला बदलने में प्रचण्ड सबसे आगे हो चुके हैं। येन केन प्रकारेण सत्ता हासिल करने की चाहत ने उनके भीतर नाम मात्र के भी सिद्धान्त बचे नहीं रहने दिये हैं।

पूंजीवादी राजनीति में पैर जमाने की कोशिश करते प्रचण्ड का यह हस्र कोई नई बात नहीं है। क्रांति की राह छोड़ सत्ता पर काबिज होने की तलाश में जुटने वाले अनगिनत नेता-दल इस हस्र का शिकार हो चुके हैैं। नेपाली जनता जिन आकांक्षाओं के साथ 2006 में राजशाही के खिलाफ उठ खड़ी हुयी थी, जिन आकांक्षाओं के साथ वह लम्बे लोक युद्ध में हथियार ले कर लड़ी थी, वे आकांक्षायें डुबोने का काम खुद प्रचण्ड व उनका दल कर रहा है।

नेपाली जनता को अब नये क्रांतिकारी उठान की तैयारी करनी होगी। यह उठान समाजवादी क्रांति के लिए होगा। इसके निशाने पर मौजूदा पूंजीवादी पार्टियों के साथ भारत-चीन के विस्तारवादी शासक भी होंगे। जाहिर है इस उठान के लिए नेपाली जनता को एक क्रांतिकारी कम्युनिस्ट पार्टी की जरूरत होगी।

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