फ्रांस में हुए चुनाव में एक त्रिशंकु संसद अस्तित्व में आयी है और 3 प्रमुख दलों में से किसी को बहुमत हासिल नहीं हुआ है। हालांकि फ्रांस की जनता ने नवफासीवादी पार्टी को तीसरे स्थान पर धकेल दिया है। फ्रांस में यूरोपीय चुनावों में नवफासीवादी दल नेशनल रैली या रैसम्बलमेंट नेशनल [RN] की जीत के तत्काल बाद राष्ट्रपति मैक्रां ने 30 जून व 7 जुलाई को फ्रांसीसी संसद के नये चुनाव की घोषणा कर दी थी। यूरोपीय संघ के चुनावों में 31.37 प्रतिशत वोटों के साथ पहले स्थान पर रही आर एन को फ्रांस में अपनी सरकार कायम करने का एक तरह से सुनहरा अवसर मिल चुका था।
पर नवफासीवादी दल के सत्तासीन होने के खतरे ने फ्रांस के तरह-तरह के वामपंथियों को एक मोर्चे में बंधने की ओर धकेला और वे न्यू पापुलर फ्रंट (एनपीएफ) बनाकर मैदान में उतरे। अंततः 7 जुलाई के चुनाव में एनपीएफ 182, मैक्रां की पार्टी को 168 व फासीवादी नेशनल रैली (आर एन) को 143 सीटें प्राप्त हुईं। इस तरह फिलहाल सत्ता कायम करने का फासीवादी दल का ख्वाब अधूरा रह गया।
फासीवादी दल की हार में उनके प्रधानमंत्री पद के युवा उम्मीदवार जार्डन बाडला के व्यवहार की अपनी ही भूमिका रही। जार्डन बाडला ने अपने वक्तव्यों में कई दफा असंगत उत्तर दिये। और कई बार वे हंसी का पात्र भी बने।
फ्रांस की संसद में 577 सदस्य होते हैं। इन्हें दो दौर की चुनाव प्रणाली के तहत 5 वर्ष के लिए चुना जाता है। पहले दौर में वैध मतों का 25 प्रतिशत या अधिक प्राप्त करने वाले उम्मीदवार दूसरे दौर के प्रत्याशी बनते हैं। यदि किसी उम्मीदवार को 25 प्रतिशत मत नहीं मिलते तो 12.5 प्रतिशत मतों से ज्यादा पाने वाले 3 उम्मीदवार दूसरे दौर में पहुंच जाते हैं। पहले दौर के मतदान के बाद 306 सीटों पर 3 उम्मीदवार व 5 सीटों पर 4 उम्मीदवार दूसरे दौर में पहुंचे थे। ऐसे में 3 उम्मीदवार वाली सीटों पर फासीवादी नेशनल रैली की जीत की उम्मीद लगायी जा रही थी। तभी मैक्रां की रेनेसां पार्टी व न्यू पापुलर फ्रंट के बीच हुए समझौते के तहत नेशनल रैली की जीत रोकने हेतु 200 से अधिक उम्मीदवारों ने अपने नाम वापस ले लिये, और वहां एक दूसरे को समर्थन दे दिया। इसके चलते नेशनल रैली को तीसरे स्थान पर खिसकना पड़ा। जबकि पहले दौर के चुनाव में वह पहले स्थान पर थी।
इस तरह वोट प्रतिशत के तौर पर पहले दौर में 33.21 प्रतिशत व दूसरे दौर में 37.06 प्रतिशत मत पाकर पहले स्थान पर रहने के बावजूद नेशनल रैली 143 सीटें ही जीत पायी। जबकि दूसरे दौर में 25.8 प्रतिशत मत पा न्यू पापुलर फ्रंट 182 व 24.53 प्रतिशत मत वाले एनसम्बेल (मैक्रां का गठबंधन) को 168 सीटें प्राप्त हो गयीं।
इस प्रकार चुनावी जोड़तोड़ से ही फासीवादी पार्टी को जीत से दूर किया जा सका है। अन्यथा फ्रांस में उसकी लोकप्रियता कहीं से कम नहीं हुई है। फ्रांस के सिर पर से फासीवादी शासन का खतरा अभी टला नहीं है। फिलहाल नयी सरकार बनाने की जोड़-तोड़ जारी है।
फ्रांस : त्रिशंकु संसद
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आज की पुरातन व्यवस्था (पूंजीवादी व्यवस्था) भी भीतर से उसी तरह जर्जर है। इसकी ऊपरी मजबूती के भीतर बिल्कुल दूसरी ही स्थिति बनी हुई है। देखना केवल यह है कि कौन सा धक्का पुरातन व्यवस्था की जर्जर इमारत को ध्वस्त करने की ओर ले जाता है। हां, धक्का लगाने वालों को अपना प्रयास और तेज करना होगा।
यह देखना कोई मुश्किल नहीं है कि शोषक और शोषित दोनों पर एक साथ एक व्यक्ति एक मूल्य का उसूल लागू नहीं हो सकता। गुलाम का मूल्य उसके मालिक के बराबर नहीं हो सकता। भूदास का मूल्य सामंत के बराबर नहीं हो सकता। इसी तरह मजदूर का मूल्य पूंजीपति के बराबर नहीं हो सकता। आम तौर पर ही सम्पत्तिविहीन का मूल्य सम्पत्तिवान के बराबर नहीं हो सकता। इसे समाज में इस तरह कहा जाता है कि गरीब अमीर के बराबर नहीं हो सकता।