रोमानिया : वेतन वृद्धि के लिए शिक्षकों का संघर्ष

रोमानिया के लगभग 2 लाख शिक्षकों में करीब 1.5 लाख शिक्षक 22 मई से हड़ताल पर हैं। उनके साथ में स्कूलों के 70,000 सहयोगी स्टाफ भी हड़ताल पर हैं। इतनी वृहद हड़ताल बीते 18 वर्षों में पहली बार हुई है। इस हड़ताल से ज्यादातर स्कूल बंद हो गये हैं। 
    

यूरोप के बाकी देशों की तरह रोमानिया भी महंगाई की ऊंची दर का शिकार है। मुद्रास्फीति की दर यहां 10 प्रतिशत के आस-पास रही है। इस बढ़ती महंगाई का खामियाजा वैसे तो समूचे मजदूर वर्ग को झेलना पड़ रहा है पर शिक्षकों की हालत इसलिए ज्यादा बुरी है क्योंकि उनकी आय राष्ट्रीय औसत से नीचे है। 
    

करीब 10,000 की संख्या में प्रदर्शनकारी शिक्षक राजधानी बुखारेस्ट में संसद भवन मार्च के लिए इकट्ठा हुए। मार्च के दौरान वे ‘सम्मान’ ‘चोर’ व ‘शर्म करो’ आदि नारे लगा रहे थे। एक 47 वर्षीय शिक्षिका ने बताया कि वो प्रदर्शन में शामिल हुई हैं क्योंकि उनका धैर्य व सहनशक्ति जवाब दे चुकी है। उसने कहा ‘‘हम सालों से अनगिनत वायदे जो कभी पूरे नहीं होते, सुनते आ रहे हैं।’’
    

अभी तक शिक्षक यूनियन व सरकार के बीच कई चक्र की वार्ता हो चुकी है पर कोई नतीजा नहीं निकला। सरकार 1000 लेई (200 यूरो) बोनस जून में व 1500 लेई (300 यूरो) बोनस अक्टूबर में हर शिक्षक को देने का प्रस्ताव कर रही है जिस पर यूनियन सहमत नहीं है। एक यूनियन नेता ने कहा कि यह बोनस लेने से बेहतर है कि वे कुछ भी न लें। कि उन्हें इतनी कम राशि मंजूर नहीं है। 
    

रोमानिया में कालेज स्तर के शिक्षकों की मासिक आय मात्र 2400 लेई (480 यूरो) है जबकि देश में प्रति माह औसत आय इसके दो गुने के बराबर है। शिक्षक बोनस आदि की जगह वेतन बढ़ोत्तरी की मांग कर रहे हैं। सरकार का कहना है कि वेतन वृद्धि के लिए उसे सार्वजनिक क्षेत्र के कानून को बदलना होगा जिसमें कुछ वक्त लगेगा। सरकार जुलाई मध्य तक कानून बदलने की बात कर रही है जबकि कई जानकारों का कहना है कि इसमें और कई महीने लगेंगे। 
    

फिलहाल रोमानिया के शिक्षक संघर्ष के मैदान में डटे हैं। देखना है वे सरकार को कहां तक झुका पाते हैं। 

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को