रूसी राष्ट्रपति चुनाव : पुतिन की जीत तय

रूस में राष्ट्रपति पद के चुनाव 15 से 17 मार्च तक होने हैं। रूस में पहली बार ऑन लाइन तरीके से चुनाव हो रहे हैं और लोग इन तीन दिनों में कभी भी वोट डाल सकते हैं। इन चुनावों में पुतिन की राष्ट्रपति के बतौर जीत पहले से तय है। 
    
रूस में राष्ट्रपति पद का चुनाव जनता के प्रत्यक्ष मतदान के जरिये होता है। अगर प्रथम चुनाव में किसी प्रत्याशी को 50 प्रतिशत मत नहीं मिलते हैं तो 3 हफ्ते बाद दूसरे राउण्ड का चुनाव दो शीर्ष मत पाने वाले प्रत्याशियों के बीच होता है। 
    
पुतिन 1999 से ही रूसी राजनीति के शीर्ष पर बने हुए हैं। सत्ता के शीर्ष पर बने रहने के लिए ये संविधान तक को बदलते रहे हैं। कभी राष्ट्रपति तो कभी प्रधानमंत्री बन कर ये रूस की सत्ता के शीर्ष पर लगातार बने रहे हैं। अपने सभी प्रमुख विरोधियों को ठिकाने लगा या जेल में ठूंस कर उन्होंने यह शीर्ष स्थिति कायम कर रखी है। 
    
ऐसा नहीं है कि रूस में पुतिन के पूंजीवादी नेतृत्व के खिलाफ दूसरे गुटों के लोग सामने न आते रहे हों या सक्रिय न होते रहे हों। पर किसी भी विरोधी के ताकतवर बनने से पूर्व पुतिन उसके पर कतरने में सफल हो जाते रहे हैं। इन चुनावों में भी उन्होंने इसी कलाकारी का परिचय दिया। 
    
पुतिन के घोषित विरोधी एलेक्सी नवलनी थे। वे पुतिन के भ्रष्टाचार के मुखर विरोधी रहे थे। उन्होंने पुतिन की पार्टी यूनाइटेड रशिया को ‘बदमाश और चोरों की पार्टी’ कहकर संबोधित किया। 2018 में पुतिन के खिलाफ वे राष्ट्रपति चुनाव में खड़े हुए थे पर उन्हें चुनाव लड़ने से रोक दिया गया। अगस्त 2020 में नवलनी को एक एजेण्ट के जरिये जहर दिया गया जिसका आरोप उन्होंने पुतिन पर लगाया। जब नवलनी रूस 2021 में वापस आये तो फिर सरकार ने उन्हें चरमपंथी व अन्य आरोपों में 19 वर्ष की सजा दिलवा दी। 16 फरवरी 2024 को उनकी रूसी जेल में ही रहस्यमय परिस्थितियों में मौत हो गयी। लोग उनकी हत्या का जिम्मेदार पुतिन को ठहराते रहे हैं। यूक्रेन पर रूसी हमले के वक्त ये इस हमले के विरोध में खड़े हुए और युद्ध विरोधी प्रदर्शनों का आह्वान करते रहे। उनकी शवयात्रा में हजारों लोगों की उपस्थिति उनकी लोकप्रियता को दर्शाती है। 
    
नवलनी से खतरा समाप्त होने के बाद विपक्षी दलों ने बोरिस नादेजदीन को पुतिन के खिलाफ राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार बनाया। इनको तमाम निर्वासित लोगों का समर्थन प्राप्त था। इसके अलावा ये युद्धविरोधी रुख के लिए मशहूर थे। इनका नामांकन तकनीकी आधार पर खारिज कर दिया गया। कानूनन उम्मीदवारी के लिए एक लाख हस्ताक्षरों की आवश्यकता होती है पर चुनाव आयोग ने उनके द्वारा प्रस्तुत आवेदन पत्र में 9000 से अधिक हस्ताक्षर अमान्य घोषित कर उनकी उम्मीदवारी समाप्त कर दी। हालांकि विश्लेषकों का कहना था कि अगर ये चुनाव लड़ते तो भी पुतिन को गम्भीर चुनौती नहीं दे पाते। पर पुतिन शासन को थोड़ी भी चुनौती शायद बर्दाश्त नहीं थी। 
    
इन दो प्रमुख विरोधियों के दौड़ से बाहर होने के बाद पुतिन के सामने लगभग न के बराबर चुनौती है। हालांकि उनके सामने 3 प्रत्याशी खड़े हैं पर वे पुतिन की नीतियों से कुछ खास फर्क नहीं रखते हैं। इनमें सर्वप्रमुख कम्युनिस्ट पार्टी के उम्मीदवार निकोलाई खारितोनोव हैं जो 2000 के बाद चुनाव में पुतिन के बाद दूसरे स्थान पर रहे थे। 2004 के राष्ट्रपति चुनाव में इन्हें 13.8 प्रतिशत मत मिले थे। दूसरे प्रत्याशी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ रसिया के प्रत्याशी लियोनद स्लटस्की हैं व तीसरे प्रत्याशी न्यू पीपल पार्टी के टलादिस्लाव दावानकोव हैं। 
    
ये तीनों ही प्रत्याशी पुतिन के लिए कोई चुनौती नहीं बनते हैं। इस तरह रूस में होने वाले चुनाव में पुतिन की जीत तय है।
    
कहने को रूस में लोकतांत्रिक व्यवस्था है और नियमित चुनाव होते हैं पर पुतिन ने सत्ता के सारे सूत्र अपने हाथ में केन्द्रित किये हुए हैं। और रूसी जनता एक तानाशाह के बतौर उन्हें झेलने को मजबूर है।  

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता