समान नागरिक संहिता : साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण का एजेण्डा

प्रधानमंत्री मोदी ने अमेरिका यात्रा से लौटते ही एक बार फिर समान नागरिक संहिता का राग छेड़ दिया है। वर्तमान समय में इस मुद्दे को उठाने का भाजपा का लक्ष्य एकदम स्पष्ट है। इसके जरिये वह समाज में साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण कर आने वाले चुनावों में लाभ उठाना चाहती है। 
    
समान नागरिक संहिता का मुद्दा भाजपा के राजनैतिक एजेण्डों की सूची में लम्बे समय से रहा है। दरअसल समान नागरिक संहिता के नाम पर पूरे देश के सभी धर्मों-समुदाय के लोगों के पारिवारिक-निजी जीवन के मसलों को धर्मनिरपेक्ष तरीके से समान प्रावधानों से संचालित करना संघ-भाजपा का लक्ष्य कभी भी नहीं रहा है। इसीलिए संविधान सभा में संघी मानसिकता के लोगों द्वारा अंबेडकर द्वारा प्रस्तुत समान नागरिक संहिता का विरोध इस आधार पर किया गया था कि इससे हिन्दू धार्मिक विश्वासों पर चोट पड़ेगी। तब भारी विरोध के चलते सभी धर्मों-समुदायों के लिए अलग-अलग व्यक्तिगत कानून लागू कर समान नागरिक संहिता के मसले को भविष्य में लागू होने के लिए नीति निर्देशक तत्वों में डाल दिया गया था। 
    
आज जब संघ-भाजपा समान नागरिक संहिता लागू करने की बात करते हैं तो दरअसल वे हिन्दू कोड़ के प्रावधानों को ही बाकी सारे धर्मों-समुदायों पर थोपना चाहते हैं। स्वाभाविक तौर पर मुस्लिम व अन्य धार्मिक समुदायों-आदिवासियों की ओर से संघ-भाजपा के ऐसे प्रयासों का विरोध होता है। समान नागरिक संहिता के नाम पर सारे समाज पर हिन्दू व्यक्तिगत कानून को थोपने का प्रयास संघ-भाजपा के फासीवादी हिन्दू राष्ट्र के एजेण्डे का हिस्सा है। 
    
जहां तक प्रश्न हिन्दू कानून का है तो बाकी धर्मों के व्यक्तिगत कानूनों की तरह इसमें भी ढेरों सकारात्मक सुधारों के बावजूद अभी भी कई गैरबराबरी वाले खासकर महिला विरोधी प्रावधान मौजूद हैं। पर संघी शासकों का लक्ष्य इनमें सुधार करना नहीं है। उनका लक्ष्य तो इस एजेण्डे को उठा समाज में यह प्रचारित करना है कि केवल मुस्लिम समुदाय के लोग इस एजेण्डे का विरोध कर रहे हैं। जबकि वास्तविकता यही है कि सिख-बौद्ध से लेकर आदिवासी समुदाय सभी की ओर से संघ-भाजपा के इन प्रयासों का विरोध होता रहा है। 
    
इस एजेण्डे को हवा देकर संघ-भाजपा यह साबित करना चाहते हैं कि मुस्लिम समुदाय अपने पुराने स्त्री विरोधी, गैरबराबरी वाले व्यक्तिगत कानून से चिपका हुआ है। कि वह विकास व बदलाव का विरोधी है। ऐसा करके ये ताकतें हिन्दू आबादी का अपने पक्ष में ध्रुवीकरण करना चाहती हैं ताकि उसका वोट चुनावों में हासिल किया जा सके। 
    
कुछ राज्य सरकारें जो भाजपा शासित हैं,  पहले ही इस एजेण्डे पर आगे बढ़ चुकी हैं। उत्तराखण्ड में तो समान नागरिक संहिता के बिल के शीघ्र ही जारी होने की बातें सामने आ रही हैं। जो बातें सामने आ रही हैं उसके अनुसार बिल के जरिये बहु विवाह, बच्चे ज्यादा पैदा करने, तलाक के प्रावधानों पर ऐसे बदलाव किये जा रहे हैं जो मुस्लिम कानूनों पर हमला बोलते हैं। 
    
संघ-भाजपा यह एजेण्डा ऐसे समय में उठ रहा है जब 2018 में 21वां विधि आयोग इस बात की सिफारिश कर चुका था कि समान नागरिक संहिता फिलहाल लागू करना न तो वांछनीय है और न जरूरी। इसी के साथ विधि आयोग ने लैंगिक समानता से जुड़े कई सुधार प्रस्तावित किये थे। पर भाजपा सरकार ने इन सुधारों को लागू करने के बजाय 22 वें विधि आयोग के जरिये फिर से समान नागरिक संहिता के मसले पर लोगों से राय आमंत्रित करवानी शुरू कर दी। 
    
सारे समाज पर हिन्दू प्रावधानों को थोपने के संघी एजेण्डे से प्रेरित समान नागरिक संहिता का विरोध जरूरी है। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।