योजनावीर मोदी सरकार

मोदी सरकार बीते 5 वर्षों के शासन में एक के बाद एक योजना लाने के लिए मशहूर रही है। एक योजना पेश करने के कुछ समय बाद ठण्डे बस्ते में डाल दी जाती व ताम झाम के साथ दूसरी योजना पेश कर दी जाती। इस कवायद के जरिये यह फिजा बनायी जाती कि सरकार जनता के हितार्थ दिन रात काम कर रही है और मोदी तो 18-18 घण्टे काम करते हैं। 
    
अब रिपोर्टर्स कलेक्टिव ने इन करीब 906 केन्द्रीय योजनाओं के अध्ययन से पता लगाया कि लगभग 72 प्रतिशत योजनाओं को घोषणा से कम धन आवंटित किया गया और 20 प्रतिशत योजनाओं में तो आधे से भी कम खर्च किया गया। यहां कुछ प्रमुख योजनाओं का विवरण है। रिपोर्टर्स कलेक्टिव के लेख के कुछ अंश यहां दिये जा रहे हैं। 1. पेंशन-   .........
    
जुलाई 2019 में अपने पहले बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने कहा, ‘‘भारत सरकार ने लगभग तीन करोड़ खुदरा व्यापारियों और छोटे दुकानदारों को पेंशन लाभ देने का फैसला किया है।“
    
सदन में जश्न के माहौल के बीच जैसे ही उन्होंने प्रधानमंत्री कर्म योगी मान धन योजना का नाम घोषित किया, कैमरा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पर चला गया, जिनकी सरकार ने इस योजना के पहले वर्ष में 750 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया है, जिसमें 3,000 रुपये मासिक पेंशन का वादा किया गया है ।
    
हालांकि, जैसे-जैसे ध्यान हटा, प्रतिबद्धता भी खत्म होती गई। अपने पहले साल में सरकार ने केवल 155.9 करोड़ रुपये खर्च किए, जिससे 594 करोड़ रुपये का चौंका देने वाला फंडिंग गैप रह गया।
    
अगले तीन वर्षों में, खर्च अनुमानों में भारी गिरावट आई और यह मामूली रकम बन गई। पिछले वित्त वर्ष में, इस कार्यक्रम के लिए मात्र 3 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, जिसमें से नवीनतम बजट डेटा के अनुसार, केवल 10 लाख रुपये ही खर्च किए गए। इसके लांच होने के बाद से पांच वर्षों की अवधि में, सरकार ने 1,133 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया, लेकिन वास्तव में केवल 162 करोड़ रुपये आवंटित किए गए- जो वादा की गई राशि का केवल 14 प्रतिशत है। आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, जनवरी 2023 तक इस योजना के लिए केवल 50,000 से अधिक लोगों ने आवेदन किया था।
    
मार्च 2023 में संसदीय स्थायी समिति ने सरकार से पूछा कि पेंशन योजना क्यों विफल हो गई। सरकार ने कहा कि यह पेंशन योजना एक समान नाम वाली दूसरी योजना से टकराती है।
    
सरकार के अनुसार, लोगों ने प्रधानमंत्री कर्म योगी मान धन को प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन नामक एक अन्य पेंशन योजना के साथ मिला दिया, जिसे इसके ठीक चार महीने पहले लांच किया गया था, जो कि नई अखिल भारतीय परियोजनाओं के नामकरण में कल्पना की कमी की एक दुर्लभ स्वीकारोक्ति है, जबकि सरकार की विफलता पर सवालों को टालने का प्रयास है।
    
प्रधानमंत्री श्रम योगी मान धन योजना के तहत असंगठित क्षेत्र के 42 करोड़ कामगारों को कवर किया जाना था। लेकिन दस्तावेजों से पता चलता है कि यह पेंशन योजना भी विफल हो गई। इसके लांच होने के तीन साल बाद तक 42 करोड़ संभावित लाभार्थियों में से केवल 43 लाख ही इसके दायरे में आ पाए थे।
    
जब संसदीय स्थायी समिति ने सरकार से सवाल किया, तो उसने इसका कुछ दोष एक पुरानी तीसरी पेंशन योजना- अटल पेंशन योजना पर डाल दिया, जिसे असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों के लिए 2015 में शुरू किया गया था। इस योजना के दायरे में पहले से ही वे लोग शामिल थे, जिन्हें इसके बाद आई दो पेंशन योजनाओं के तहत निशाना बनाया गया था।
    
अटल पेंशन योजना का भी रिकार्ड संदिग्ध है। स्वतंत्र शोध और द रिपोर्टर्स कलेक्टिव द्वारा की गई जांच से पता चला है कि बैंक नागरिकों को उनकी अनुमति के बिना जबरन अटल पेंशन योजना में नामांकित कर रहे थे। इस पर कड़ी आलोचना हुई कि सरकार योजना की सफलता को गलत तरीके से दिखाने के लिए नामांकन की संख्या को कृत्रिम रूप से बढ़ा रही है।
    
सरकार ने अपनी पेंशन योजनाओं का मूल्यांकन करने के लिए एक थिंक टैंक को काम सौंपा। थिंक टैंक ने अपनी रिपोर्ट में श्रम योगी मान धन को बंद करके उसे अटल पेंशन योजना में विलय करने की सिफारिश की। इसके अलावा मंत्रालय खुद दुकानदारों की पेंशन योजना को असंगठित मजदूरों की पेंशन योजना में विलय करने पर विचार कर रहा है।
    
तीनों पेंशन योजनाएं अलग-अलग स्तर पर विफल हो सकती हैं, लेकिन वे बिलबोर्ड गवर्नेंस के प्रति नरेन्द्र मोदी की रुचि का प्रतीक हैं- अत्यधिक दृश्यमान सुर्खियां बटोरने वाली शासन संबंधी पहल, जो आम लोगों की स्मृति में ताजा रहने के लिए काफी समय तक प्रचारित की जाती है, लेकिन जैसे ही लोगों की स्मृति समाप्त हो जाती है, उसका वित्त पोषण बंद कर दिया जाता है।.......

2. कृषि- किसानों की आय दोगुनी करने के लिए लाई गई अनेक योजनाओं में, बजट में किए गए आरंभिक वादों की तुलना में भारी कटौती की गई तथा व्यय भी न्यूनतम रहा।
    
कलेक्टिव ने अपनी पिछली रिपोर्ट में इनमें से एक योजना, पीएम आशा का विश्लेषण किया था। फसल मूल्य समर्थन योजना पर वास्तविक खर्च 2019 और 2024 के लोकसभा चुनावों के आस-पास के महीनों में ही हुआ। दो आम चुनावों के बीच तीन साल में सरकार ने इस योजना पर एक भी रुपया खर्च नहीं किया।
    
दूसरी योजना, प्रधानमंत्री किसान मान धन योजना, छोटे और सीमांत किसानों के लिए पेंशन योजना है। करम योगी मान धन और श्रम योगी मान धन की तरह, इस योजना में भी नामांकन बहुत कम हुआ है। 2019 से, केवल 7.8 प्रतिशत किसानों ने इस योजना में नामांकन कराया है, जिसका लक्ष्य 3 करोड़ किसानों को शामिल करना था। आंकड़ों से पता चलता है कि वित्त वर्ष 2023-24 को छोड़कर सभी वर्षों के लिए, सरकार ने अपने बजट से कम खर्च किया।
    
इससे भी बुरी बात यह है कि 2020 में 10,000 किसान उत्पादक संगठनों के गठन और संवर्धन के लिए एक योजना शुरू होने के बाद से, सरकार ने सभी चार वर्षों में अपने वादे से बहुत कम खर्च किया है। इस योजना का उद्देश्य किसानों को एक साथ काम करने में मदद करना है ताकि वे अपनी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ा सकें, उत्पादन लागत कम कर सकें और अपनी फसल को एक साथ बेचकर अधिक पैसा कमा सकें।

3. स्वास्थ्य- 2021 में कोविड-19 की दूसरी घातक लहर के समय, केंद्र सरकार ने पीएम-आयुष्मान भारत स्वास्थ्य अवसंरचना मिशन की घोषणा की, जिसे 2005 के बाद से सार्वजनिक स्वास्थ्य अवसंरचना के लिए भारत की सबसे बड़ी योजना बताया गया। यह योजना राज्यों के साथ साझेदारी में चलाई जाती है, जिसमें कुछ घटक पूरी तरह से केंद्र द्वारा संचालित होते हैं। अपने वादे को पूरा करने के लिए, केंद्र सरकार ने अन्य चीजों के अलावा, गंभीर देखभाल के लिए राष्ट्रीय संस्थान स्थापित करने और रोग अनुसंधान केंद्रों को मजबूत करने के लिए 5 वर्षों में 9,339 करोड़ रुपये से अधिक खर्च करने की योजना बनाई, लेकिन 3 साल बाद भी केवल 1,373 करोड़ रुपये या नियोजित राशि का 14.7 प्रतिशत ही खर्च किया है। 

4. शिक्षा- अपने 2019 के चुनावी घोषणापत्र में, भाजपा ने 50 प्रतिशत से अधिक अनुसूचित जनजातियों वाले ब्लाकों में एकलव्य माडल आवासीय विद्यालय खोलने का वादा किया था। इस विद्यालय का उद्देश्य आदिवासियों के बच्चों के लिए शिक्षा तक पहुंच को बेहतर बनाना है। जनजातीय मामलों के मंत्रालय ने 2025-26 तक 740 विद्यालयों का लक्ष्य रखा था, जिसमें से 54 प्रतिशत लक्ष्य दिसंबर 2023 तक 401 विद्यालयों तक पहुंच गया।
    
धीमी गति के बावजूद, बजट अनुमानों में 2024 के लोकसभा चुनाव के करीब आने तक कोई बढ़ोत्तरी नहीं देखी गई। इसने 2023-2024 में 5,943 करोड़ रुपये खर्च करने का वादा किया था, लेकिन संसद की स्थायी समिति की आलोचना के बावजूद अभी तक केवल 41.6 प्रतिशत ही खर्च किया गया है।
    
समिति ने कहा कि उसे इस बात की ‘‘आशंका’’ है कि सरकार 2025-26 तक लक्ष्य हासिल कर पाएगी, क्योंकि एक ऐसा स्कूल बनाने में 2.5 साल लगते हैं। समिति ने कहा कि मंत्रालय ने अपने पास मौजूद पूरी धनराशि का इस्तेमाल नहीं किया।
    
इसी तरह, सरकार ने अनुसूचित जातियों के छात्रों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के अवसर प्रदान करने के लिए अनुसूचित जातियों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप को कम वित्त पोषित किया। संसद की स्थायी समिति ने दिसंबर 2023 में इस पर चिंता जताई थी।
    
डेटा से पता चलता है कि फेलोशिप पर वास्तविक खर्च घट रहा है। जबकि सरकार ने 2019-20 में बजट में वादा की गई राशि का केवल 68 प्रतिशत खर्च किया था, 2021-22 तक यह घटकर 40 प्रतिशत रह गया। पिछले साल के बैकलाग को शामिल करने के बाद भी 2018-19 की तुलना में 2022-23 में प्रदान की गई फेलोशिप की संख्या में 30 प्रतिशत की गिरावट देखी गई। 
5. ग्रामीण अर्थव्यवस्था- अपने पहले बजट भाषण में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बताया कि सरकार ASPIRE नामक योजना के माध्यम से कृषि-ग्रामीण उद्योग क्षेत्रों में 75,000 कुशल ग्रामीण उद्यमियों को विकसित करने में कैसे मदद करेगी। अगले चार वित्तीय वर्षों में, सरकार ने संचयी रूप से 137 करोड़ रुपये खर्च करने की प्रतिबद्धता जताई। हालांकि, इस अवधि में इसने केवल 31 करोड़ रुपये खर्च किए हैं, जो वादा की गई राशि का केवल 22.7 प्रतिशत है।
    
ASPIRE के साथ-साथ सीतारमण ने पारंपरिक उद्योगों को उन्नत करने की योजना SFURTI का भी ज़िक्र किया। 2022-23 तक SFURTI पर खर्च लगातार बढ़ता रहा, जब सरकार ने 334 करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा था, लेकिन सिर्फ़ 1.95 करोड़ रुपये ही खर्च किए। इसी तरह, अगले वित्तीय वर्ष में सरकार ने 280 करोड़ रुपये के बजट अनुमान के मुकाबले 2.5 करोड़ रुपये खर्च किए।

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।