
इजरायल ने ईरान के परमाणु व मिसाइल ठिकानों पर अपनी मिसाइलों से क्रूर हमला बोल दिया है। ‘आपरेशन राइजिंग लायन’ नामक इस सैन्य अभियान ने दुनिया में जंग का एक नया केन्द्र खुलने की संभावना पैदा कर दी है। इजरायल ने इस हमले को सफल बताते हुए इसमें ईरानी सेना प्रमुख मोहम्मद बाघेरी, इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स के प्रमुख हुसैन सलामी व एक प्रमुख वैज्ञानिक को मार गिराने का दावा किया है। वहीं ईरान के सर्वोच्च नेता अयातुल्ला अली खामेनेई ने इस हमले के जुर्म की सजा इजरायल को देने का एलान किया है। ईरान द्वारा 100 से अधिक द्रोणों एवं मिसाइलों से इजरायल पर हमले की भी खबर आ रही है।
यह हमला ऐसे वक्त में किया गया जब अभी अमेरिका-ईरान की वार्ता चल रही थी। इजरायल हमेशा से इस वार्ता का विरोधी रहा था और ईरान से युद्ध छेड़ने की वकालत करता रहा था। इस हमले से कुछ रोज पूर्व ही दोनों देशों के बीच टकराव बढ़ने की संभावनायें पैदा हो गयी थीं। ईरान ने जहां अपना परमाणु कार्यक्रम सफल होने अर्थात परमाणु हथियार बनाने की क्षमता हासिल करने का दावा किया था वहीं अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने ईरान द्वारा पूर्व में किये गये समझौतों के उल्लंघन का आरोप लगाया था।
अमेरिकी विदेश मंत्री ने यद्यपि दावा किया है कि इस हमले में अमेरिका का हाथ नहीं है। पर साथ ही उन्होंने ईरान को धमकी भी दे डाली कि यदि उसने अमेरिकी हितों-नागरिकों एवं मध्य पूर्व में उसके सैन्य अड्डों को नुकसान पहुंचाया तो ईरान को गम्भीर परिणाम भुगतना पड़ेगा। अमेरिका की ओर से इजरायल द्वारा ईरान पर हमला बोलने की संभावनायें पहले से व्यक्त की जाती रही थीं जिसके जवाब में ईरान ने अमेरिका के ऊपर हमले की धमकी दी थी।
अमेरिका की संसद के कई सदस्यों ने इजरायल के हमले का समर्थन करते हुए अमेरिका द्वारा इजरायल के खुले समर्थन की मांग की है। दरअसल अमेरिकी विदेश मंत्री व अमेरिकी सरकार इस हमले के संदर्भ में गलतबयानी कर रहे हैं। बगैर अमेरिकी साम्राज्यवादियों की सहमति के उसका मध्य पूर्व में लठैत इजरायल ईरान पर हमला कर ही नहीं सकता था। अमेरिकी शासक पूरी तरह से इजरायल के कुकर्मों में न केवल उसके साथ खड़े हैं बल्कि उन्हीं के निर्देशों पर ही इजरायली शासक ये हमले कर रहे हैं। बात चाहे गाजा में उनके द्वारा रचे जा रहे नरसंहार की हो या फिर ईरान पर मौजूदा हमलों की, अमेरिकी साम्राज्यवादियों के हाथ खून से सने हैं।
पर चूंकि अमेरिकी सरगना ट्रम्प आजकल खुद को शांति का मसीहा स्थापित करने की सनक पर सवार हैं इसलिए वे ईरान पर हमले में अपनी भूमिका को छिपाये रखना चाहते हैं। ट्रम्प द्वारा राष्ट्रपति बनते ही सभी जंगें रोकने के दावे विफल हो चुके हैं। न तो रूस-यूक्रेन युद्ध वे रोक पाये और न गाजा में इजरायल द्वारा जारी नरसंहार ही थमा है। ऐसे में अमेरिकी साम्राज्यवादी अपने मंसूबे इजरायल के कंधों पर बंदूक रखकर साध रहे हैं। वे ईरान और चीन से निपटने को प्राथमिकता में रख यूक्रेन से अपने हाथ पीछे खींचने को प्रयासरत हैं। पर यूरोपीय साम्राज्यवादी यूक्रेन के साथ खड़े हैं इसलिए रूस-यूक्रेन युद्ध खत्म होने के बजाय और विस्तार पाने की ओर बढ़ रहा है।
इजरायल ने दावा किया है कि उसका मौजूदा आपरेशन ईरान द्वारा इजरायल पर संभावित द्रोण व मिसाइल हमलों को रोकने के लिए शुरू किया गया है। ईरान ने इन हमलों में नागरिकों के मारे जाने का दावा करते हुए इसका बदला लेने का ऐलान किया है।
इस हमले से दुनिया एक नयी जंग के मुहाने पर आ खड़ी हुई है। इस बार यह जंग गाजा की तरह किसी कमजोर ताकत के खिलाफ नहीं है। जहां इजरायल मनमर्जी से नरसंहार रच सके। यह जंग अपेक्षाकृत ताकतवर देश ईरान से है। इजरायली व अमेरिकी शासक इस बात को समझते हैं। इसीलिए हमले के तुरंत बाद इजरायल ने आपातकाल की घोषणा करते हुए अपनी हवाई उड़ानें स्थगित कर दीं तो अमेरिका अपने नागरिकों एवं सैन्य अड्डों को नुकसान पहुंचने पर बड़ी कार्यवाही की धमकी देने लगा।
इजरायल का यह हमला इसलिए भी और गम्भीर हो जाता है कि ईरान को चीनी-रूसी साम्राज्यवादियों का समर्थन-सहयोग मिलने की संभावना है। ऐसे में अगर यह किसी युद्ध की ओर बढ़ता है तो इसके फैलने व बड़े युद्ध में तब्दील होने की संभावनायें कहीं अधिक हैं।
वैसे ट्रम्प शांति के दूत का नकाब लास एंजिल्स में अपनी ही जनता के खिलाफ सेना तैनात कर, खुद ही उतारते जा रहे हैं। अब अमेरिकी पूंजी व अमेरिकी सैन्य प्रतिष्ठान के इस चाकर का खूनी चेहरा उजागर होता जा रहा है। ईरान के खिलाफ एक ओर वार्ता दूसरी ओर हमले ने भी उसके नकाब को उतार दिया है। फिलिस्तीन में इजरायली नरसंहार को अमेरिकी समर्थन पहले ही यह नकाब तार-तार कर चुका था।
साम्राज्यवादी लूट और वर्चस्व की खातिर किये जा रहे ये हमले व युद्ध की संभावना दुनिया भर की मजदूर-मेहनतकश जनता के हितों के खिलाफ है। इसमें ईरान-इजरायल की आम जनता को ही मारा जाना है। ऐसे में अमेरिकी-इजरायली शासकों द्वारा युद्ध का नया मोर्चा खोले जाने का विरोध किया जाना जरूरी है।