काशी विश्वनाथ टेक्सटाइल कम्पनी : बस पलटने से एक मजदूर की मौत व दर्जनों घायल

पिछले दिनों काशीपुर में काशी विश्वनाथ टेक्सटाइल कम्पनी की बस पलटने से एक मजदूर की दर्दनाक मौत हो गयी और दर्जनों मजदूर घायल हो गये। मृतक मजदूर फैक्टरी से कुछ ही दूरी पर प्रतापपुर के समीप सैनिक कालोनी का है। यह घटना 22 जुलाई को सुबह लगभग 6ः50 बजे घटी जब बस रामनगर से कम्पनी में मजदूरों को लेकर जा रही थी। 
    
काशी विश्वनाथ टेक्सटाइल प्राइवेट लिमिटेड कम्पनी जिसे अधिकतर लोग शिवांगी के नाम से जानते हैं, काशीपुर-रामनगर मार्ग पर काशीपुर से लगभग 5 किमी. की दूरी पर स्थित है। यह जिन्दल ग्रुप की कम्पनी है। यह कम्पनी 1996 में अस्तित्व में आयी थी। इस कम्पनी में बड़ी संख्या में महिला मजदूर काम करती हैं। यहां 12-12 घंटे की दो शिफ्ट में अधिकतर काम होता है। 
    
कम्पनी अपने उत्पाद के उच्च गुणवत्ता का होने का दावा करती है। लेकिन इस उच्च गुणवत्ता के पीछे उसमें काम करने वाले मजदूरों की जिन्दगी व काम करने की परिस्थितियां बेहद खराब हैं। कम्पनी में काम करने वाले मजदूर कम्पनी के अंदर काफी गर्मी होने की शिकायत करते हैं। इतनी गर्मी कि मजदूरों का खाना (लंच) तक खराब हो जाता है। अक्सर ही मजदूरों को काम के दौरान चोटें (उंगलियां कटना आदि) लगती रहती हैं। लेकिन मजदूरों को श्रम कानूनों के तहत मुआवजा तक नहीं दिया जाता है। छोटा-मोटा इलाज करा दिया जाता है और मालिक/प्रबंधन की जिम्मेदारी खत्म। 
    
22 जुलाई को बस पलटने की घटना ने यह दिखाया कि कैसे मालिक/प्रबंधन के लिए अपने यहां काम करने वाले मजदूर की जान की भी कोई कीमत नहीं है। बस पलटने के कारण मारे जाने वाले मजदूर के परिवार को मुआवजे के नाम पर फूटी कौड़ी तक नहीं मिली है। कम्पनी प्रबंधन ने मजदूर की लाश जलाने के लिए बहुत जल्दबाजी की और जब तक लाश जल नहीं गयी वे वहीं बने रहे। उनको डर था कहीं ऐसा न हो कि मजदूर के परिवार और गांव वाले मजदूर की लाश को लेकर कम्पनी पहुंच जायें और उनको मुआवजा देना पड़े।    
    
इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता जब मृतक मजदूर के पिता से मिले तो उन्होंने बताया कि मृतक उनका बड़ा बेटा था। वे खुद मेहनत-मजूरी करके अपने परिवार का गुजारा करते हैं। कम्पनी ने उनके बेटे की मौत का कोई मुआवजा नहीं दिया है। केवल क्रिया कर्म में ही 10-15 हजार रुपये खर्च किये हैं। कम्पनी प्रबंधन ने कम्पनी के बाहर मौत होने की वजह से कम्पनी की कोई जिम्मेदारी होने से मना कर दिया।
    
इमके के कार्यकर्ताओं ने उन्हें बताया कि कम्पनी में काम करने वाले मजदूर की घर से कम्पनी जाने और कम्पनी से घर जाने तक की पूरी जिम्मेदारी कम्पनी प्रबंधन की होती है और मजदूर की मौत का मुआवजा उसके परिवार वालों को मिलना चाहिए।
    
कम्पनी बस से मजदूरों को अपनी फैक्टरी में काम करने बुलाती है लेकिन उसके लिए अपनी बस व बस के स्टाफ के नियुक्त नहीं करती है क्योंकि ऐसा करने में उसे ज्यादा पैसा खर्च करना पड़ेगा। इस सबसे बचने के लिए वह किसी प्राइवेट बस वाले की बस में मजदूरों को काम करने बुलाती है। अगर कम्पनी अपनी बस व स्टाफ को नियुक्त करती है तो निश्चित ही दुर्घटना की संभावनायें कम होंगी।
    
इसके अलावा जब इंकलाबी मजदूर केन्द्र के कार्यकर्ता अस्पताल में घायल महिला मजदूरों से मिले तो पता चला कि कम्पनी द्वारा अस्पताल में 5 या 7 दिन इलाज कराने के बाद उनको घर भेज दिया जा रहा है। चाहे वे ठीक हों या न हों।
    
शासन-प्रशासन या श्रम विभाग से तो मजदूरों का विश्वास इतना उठ चुका है कि वे अपनी समस्याओं को लेकर श्रम विभाग जाते ही नहीं हैं। उन्हें मालूम है कि अगर वे समस्या लेकर गये तो समस्या का समाधान तो दूर उनको काम से भी निकाल दिया जायेगा। भयानक बेरोजगारी के माहौल में मजदूर ये खतरा नहीं उठाना चाहते हैं। 
    
मृतकों व घायल मजदूरों के लिए आज मालिक/प्रबंधन का यह सामान्य रवैय्या बन चुका है। और यह अनायास नहीं है। वर्तमान व पूर्व की सरकारों ने पूंजीपतियों के मुनाफे के लिए उन्हें इस तरह की मनमानियां करने की पूरी छूट दी हुयी है। मजदूर की जिन्दगी का मालिक/प्रबंधन के लिए तभी तक मोल है जब तक वह उनके मुनाफे के लिए काम कर रहा है। मजदूर की जिन्दगी खत्म होते ही मालिक/प्रबंधन मजदूर की जिम्मेदारियों से अपना पिण्ड छुड़ा लेते हैं। सालों तक कम्पनी को मुनाफा कमा कर देने वाले मजदूर की मौत के बाद उसके परिवार का क्या होगा इसकी कोई संवेदना उनके अंदर नहीं होती है। 
    
ऐसे में आज मजदूरों को अपने व अपने वर्ग के साथ होने वाले अन्याय के खिलाफ डटकर खड़ा होना होगा। अगर ऐसा नहीं होगा तो अगला नम्बर उनका आयेगा। ऐसा ही हस्र उनके परिवार के साथ होगा। अगर मजदूर अपने वर्ग के लिए उठ खड़ा होगा तो यही ताकत उसे अपने साथ होने वाले अन्याय से भी बचायेगी। -एक मजदूर, काशीपुर

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