
लानत है
लानत है तुम्हारी जीत पर
लानत है तुम्हारे जश्न पर
कहते हो कि
तुम्हें जनता ने चुना है
मगर यही जनता पलटकर
जब सवाल करती है
तुम्हारे नजरिये में बवाल करती है
तुम्हारी नजरों में कांटे की तरह चुभती है
देशद्रोही और अर्बन नक्सल बताकर
तुम्हारी पुलिस जेलों में भरती है।
लानत है
लानत है तुम्हारे भव्य आयोजन पर
लानत है तुम्हारी उन आस्था की डुबकियों पर
जो कैमरे के सामने लगाई हैं
ये तुम्हारी आस्था का भौंडापन है
तुच्छ राजनीति का नंगापन है
कुंभ की भव्यता और भीड़ का
यशोगान करते हो
मगर कुंभ में कितने मरे, कितने गायब हैं
सच बताने से डरते हो।
लानत है
लानत है तुम्हारे वादों पर
लानत है तुम्हारे मंसूबों और इरादों पर
अच्छे दिनों का वादा करते हो
जनता को राशन की लाइन में खड़ा करके
तिजोरियां अंबानी-अडाणी की भरते हो।
लानत है
लानत है सबका साथ, सबका विकास अभियान पर
लानत है तुम्हारे हिंदुत्व के गौरवगान पर
सरेआम मंचों से आग उगलते हो
नफरत का विष जनमानस में भरते हो।
कब तक
आखिर कब तक ये
फ्री की रेवड़ियां तुम्हें बचायेंगी
धर्म की दीवार भी
भरभराकर गिर जायेगी
तुम्हारे चेहरे से मुखौटा नोंच डालेगी
जिस दिन ये जनता जाग जायेगी।
-भारत सिंह, आंवला