लोग मरें तो मरें, पर रंग में भंग न पड़े

28-29 जनवरी की रात को प्रयागराज में हो रहे महाकुम्भ में संगम नोज पर भगदड़ मचने से 30 लोगों की मौत हो गयी। काफी ना नुकुर के बाद योगी सरकार ने माना कि इस भगदड़ में 30 लोगों की मृत्यु हो गयी है और उनके लिए मुआवजा घोषित किया। लेकिन उसी रात संगम नोज से 2 किलोमीटर दूर ही झूंसी में ऐरावत गेट पर दूसरी भगदड़ भी मची जिसमें भी लोगों के मारे जाने की खबरें आ रही है। संगम नोज़ वाली घटना के बारे में योगी सरकार जहां शुरू में बिल्कुल खामोश रही वहीं झूंसी वाली घटना के बारे में जिक्र तक नहीं किया।

आम जनता की धार्मिक भावनाओं से खेलने में मोदी और योगी माहिर हो चुके हैं। योगी तो इन भावनाओं को भुनाकर नये-नये रिकॉर्ड अपने नाम कर रहे हैं। इसलिए उन्होंने इस बार इस महाकुम्भ में 45 करोड़ लोगों को डुबकी लगवाने के लिए विशेष इंतज़ाम किये। लेकिन इतनी भारी भीड़ के लिए इंतज़ाम केवल हवा हवाई ही रहे। और इसका खामियाजा लोगों का अपनी जान गँवाकर चुकाना पड़ा।

जब तक किसी काम में सफलता मिलती है तब मोदी इस तरह दिखाते हैं जैसे बरसात आते ही मेंढक टर्र-टर्र करते हैं। लेकिन जैसे ही उस काम से मोदी की छवि खराब होने की आशंका होती है तो मोदी ऐसे गायब हो जाते हैं जैसे मेढक सांप का देखकर गायब हो जाता है। अब भूलकर भी मोदी महाकुम्भ का बिल्कुल भी नाम नहीं ले रहे हैं। और योगी जो इस महाकुम्भ को आयोजन कर रिकॉर्ड बनाने का ख्वाब पाल रहे थे उनके लिए यह एक झटका ही था। इसलिए भगदड़ में लोगों के मारे जाने की खबर आने पर वे मीडिया मैनेजमेंट में लग गये। इसलिए संगम नोज़ की घटना को जहां बहुत देर से स्वीकार किया गया वहीं झूंसी में हुई दुर्घटना को पूरी तरह दबा दिया गया।

इन दुर्घटनाओं में लोगों के मारे जाने पर संवेदनहीनता और मूर्खता की मिसाल उत्तर प्रदेश के एक मंत्री और बाबा बागेश्वर ने भी पेश की। मंत्री ने कहा कि इतने बड़े कार्यक्रम के आयोजन में ऐसी छोटी-मोटी दुर्घटनायें तो होती रहती हैं। यानी उनके लिए इन मौतों का कोई मलाल नहीं है। ऐसे ही नये-नये उभर रहे बाबा बागेश्वर ने कहा कि जो गंगा किनारे मरता है वो मोक्ष प्राप्त करता है। इनके बयान पर योगी की चुप्पी भी उनकी बातों का समर्थन करती हैं।

ये वही गंगा किनारा है जहां कोरोना के समय लाशें दबी पड़ी थीं जिसने योगी द्वारा कोरोना को नियंत्रित करने के दावों की पोल खोल दी थी। आज एक बार फिर उसी गंगा किनारे पड़ी लाशों ने मोदी-योगी की आम जनता के प्रति किये जा रहे क्रूर व्यवहार की सच्चाई सामने ला दी है। आम जनता इनके लिए यज्ञ में आहुति के समान है। इनके द्वारा अपनी साख और प्रतिष्ठा कायम करने के लिए इन यज्ञों में आम जनता की बलि दी जाती रहती है।

अपने द्वारा किये जा रहे उत्सव में कोई विघ्न बाधा न पड़े इसके लिए मोदी योगी किसी हद तक भी जा सकते हैं। जनता इनकी हद को कब तोड़ती है यह देखना बाकी है।

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता