महाराष्ट्र : पुणे पोर्श कार हादसा

महाराष्ट्र के पुणे में 18 मई की रात को एक नाबालिग (17 साल 4 महीने) लड़के ने अपनी पोर्श कार से मोटरसाइकिल सवार दो लोगों (एक युवक और एक युवती) को तेज स्पीड से टक्कर मार दी। दोनों लोगों की घटनास्थल पर ही मौत हो गयी। 

जिस नाबालिग लड़के की कार से यह हादसा हुआ वह मुंबई के नामचीन बिल्डर का बेटा है और उस लड़के के बाप ने इंटर की परीक्षा में पास होने पर यह कार उसे गिफ्ट दी थी। इस कार की कीमत 2 करोड़ है। अभी उस कार का न तो रजिस्ट्रेशन हुआ था और न ही उस पर कोई नम्बर प्लेट थी जिस वक्त यह हादसा हुआ उस समय कार की स्पीड 160 किलोमीटर प्रति घंटा थी। हादसा इतना भयानक था कि पीछे बैठी युवती 15 फीट ऊपर उछली और उसका सिर फट गया।
    
हादसे के बाद पुलिस ने कार चला रहे उस लड़के को पकड़ तो लिया लेकिन जिस तरह थाने में उसकी खातिरदारी की गयी और पुलिस ने तुरत-फुरत हलकी धाराओं में केस बनाकर रविवार को अगले दिन ही उसको कोर्ट में पेश किया और जज (किशोर न्याय बोर्ड) ने जमानत भी दे दी, इससे यह साबित हो जाता है कि अमीर आदमी के साथ पुलिस और कानून का व्यवहार आम आदमी से अलग होता है। यहां तक कि पुलिस पर भी इस मामले में ढील देने पर सवाल उठ जाते हैं। जमानत देते समय बोर्ड द्वारा महज कुछ हिदायतें लड़के को दी जाती हैं। जैसे - 

1. वह 15 दिन तक ट्रैफिक पुलिस के साथ रहकर ट्रैफ़िक के नियम सीखेगा और उसके बाद एक रिपोर्ट आर टी ओ को सौंपेगा। 
2. 300 शब्दों का सड़क दुर्घटनाओं पर निबंध लिखेगा।
3. मनोचिकित्सक से शराब छुड़वाने के लिए इलाज करवाएगा। 
4. शराब छुड़वाने के लिए व्यसन मुक्ति केंद्र का सहारा लेगा।
5. भविष्य में अगर वह कोई दुर्घटना देखता है तो उसे पीड़ित की मदद करनी होगी।
    
इस तरह कानून का रखवाला जज रविवार के दिन उस लड़के को जमानत दे देता है और जो हिदायतें वह देता है वो इस तरह की हैं मानो उस लड़के ने कोई कांच का गिलास तोड़ा हो न कि दो लोगों की जानें ली हैं। क्या यही व्यवहार किसी आम लड़के के साथ होता। क्या पुलिस इतनी जल्दी उसे जज के सामने पेश करती और क्या जज रविवार यानी छुट्टी के दिन केस सुनता और इस तरह जमानत देता। इस तरह कानून यह साबित कर देता है कि वह गरीबों के लिए एक है और अमीरों के लिए दूसरा। 
    
चूंकि पुणे हादसे में मरने वाले फुटपाथ पर रहने वाले गरीब लोग नहीं थे। होते तो, शायद मामला इसी पर रुक जाता। लेकिन मामला इतना भेदभाव वाला था कि सोशल मीडिया में तुरन्त ही वायरल हो गया। हर कोई न्याय की निष्पक्षता पर सवाल उठाने लगा। इस घटना से वो साफ देख रहे थे कि न्याय जेब में पैसे से तय हो रहा है। 
    
सोशल मीडिया में मामला ऐसे समय में वायरल हुआ जब देश में आम चुनाव चल रहे हैं। इसी दौरान महाराष्ट्र में भी चुनाव का चरण था। इसलिए भी मामला तुरन्त ही राजनीतिक दलों के लिए चुनावी मोहरा बन गया। पूंजीपतियों के धन से अपनी कुर्सी, राजनीति, चेहरा चमकने वाले नेता अचानक से गरीबों के हितैषी का नकाब लगाने लगे।
    
इसके बाद पुलिस को उसके बाप को गिरफ्तार करना पड़ा। क्योंकि उसने अपने नाबालिग़ लड़के को कार चलाने को क्यों दी। साथ ही पब जहां बैठकर नाबालिग लड़के और दोस्तों ने शराब पी थी, के तीन मैनेजरों को बिना उम्र की जानकारी लिए शराब परोसने के लिए गिरफ्तार कर लिया। बाद में लड़के की जमानत रद्द कर दी गयी है और उसे 14 दिन की हिरासत में बाल सुधार गृह भेज दिया गया है।
    
किशोर न्याय बोर्ड के 3 सदस्यों के आचरण की जांच हेतु एक कमेटी गठित की गयी है। पुलिस ने इस घटना के बहाने ढेरों पब बंद करवा दिये हैं जिससे वहां काम करने वाले सैकड़ों लोगों की रोजी-रोटी छिन गयी है। इसके साथ ही किशोर के खून का सैम्पल बदलने वाले डाक्टर भी गिरफ्तार हो गये हैं।
    
इस कार हादसे ने सितम्बर 2002 में हुए कार हादसे की याद दिला दी जब फिल्म अभिनेता सलमान खान ने अपनी कार से फुटपाथ पर सो रहे पांच लोगों को गाडी से रौंद दिया था। एक व्यक्ति नुरुल्लाह शरीफ की मौत तो उसी समय हो गयी थी। बाद में कोर्ट से सलमान खान को 950 रुपये के निजी मुचलके पर जमानत मिल गयी। 
    
उस केस में आज तक पीड़ितों को न्याय नहीं मिला है। एक कांस्टेबल जिसने यह गवाही दी थी कि उसने सलमान खान को ड्राइविंग सीट से उतरते देखा उसकी नौकरी चली गयी। बाद में उसकी मौत हो गयी। और तब से केस इसी चक्रव्यूह में फंस गया कि गाड़ी कौन चला रहा था। सलमान खान या उसका ड्राइवर।
    
29 मई को उ.प्र. के कैसरगंज लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी करण भूषण सिंह की कार के काफिले ने 2 लोगों को कुचल कर मार डाला। करण भूषण कुख्यात भाजपा नेता बृज भूषण सिंह के पुत्र हैं। बृजभूषण के खिलाफ महिला पहलवानों ने लम्बा संघर्ष चलाया था पर कोई कार्यवाही नहीं की गयी है। अमीर व पहुंच वाले इस व्यवस्था में हत्या कर भी बेशर्मी से बरी हो जाते हैं। 

आलेख

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।