पंतनगर ठेका मजदूरों की नियमितीकरण की मांग

/pantnagar-thekaa-majadooron-ke-niyamitikaran-ki-maang

पंतनगर/ 24 अक्टूबर 2024 को ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर द्वारा मुख्यमंत्री उत्तराखंड  सरकार को ज्ञापन भेजकर पंतनगर में कार्यरत ठेका मजदूरों को श्रम नियमों द्वारा देय मूलभूत सुविधाएं और नियमितीकरण किए जाने की मांग की गई। जिसकी प्रतिलिपि कुलपति विश्वविद्यालय पंतनगर को भी भेजी गई है।
    
पत्र में कहा गया है कि उत्तराखंड शासन द्वारा विश्वविद्यालय के बजट में कटौती की जा रही है जिसकी वजह से ठेका मजदूरों को पूरे माह काम नहीं दिया जा रहा है। छुट्टी में आवश्यक काम तो करा लिया जाता है। पर माह में 20-22 कार्य दिवसों का ही वेतन भुगतान किया जाता है। आसमान छूती महंगाई में अति अल्प न्यूनतम वेतन में कार्यरत मजदूर आर्थिक तंगी से जूझ रहे हैं।
    
उत्तराखंड शासन की विनियमितीकरण नियमावली 2011 के अनुसार पंतनगर में लगातार 10 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके दैनिक वेतन भोगी मजदूरों का नियमितीकरण किया जा चुका है। इन्हें वर्ष में 20 दिनों का सवैतानिक अवकाश भी दिया जाता है। इसी को लेकर उत्तराखंड सरकार के मुख्यमंत्री आए दिन अखबारों में सुर्खियां बटोरते रहते हैं कि लगातार 10 वर्ष की सेवा पूर्ण कर चुके  मजदूरों को विनियमितीकरण किया जाएगा। पर पंतनगर वि.वि. के ठेका मजदूर मुख्यमंत्री की निगाह में नहीं हैं। यहां मजदूर 20-20 वर्षों से ठेके पर कार्यरत हैं पर सरकार-वि.वि. प्रशासन उन्हें नियमित करना तो दूर पूरे माह का वेतन तक देने को तैयार नहीं है। इन ठेका मजदूरों को ग्रेच्युटी-बोनस तक नहीं मिल रहा है। और जब तब काम से बाहर कर बैठा दिया जाता है। इससे पैदा होने वाली आर्थिक तंगी के चलते 2 मजदूर आत्महत्या तक कर चुके हैं।
    
ज्ञापन में ठेका मजदूरों को नियमित करने, समय से पूरे माह के वेतन भुगतान, ईएसआई सुविधा देने, गार्डों को 11 दिन का सवैतनिक अवकाश देने आदि की मांगें की गयीं।  -पंतनगर संवाददाता 

 

इसे भी पढ़ें :-

1. पंतनगर विश्वविद्यालय एवं ठेका मजदूरों का संघर्ष

2. पंतनगर विश्वविद्यालय में ठेका मजदूरों का शोषण

3. पंतनगर विश्व विद्यालय में ठेका मजदूरों का शोषण जारी है

आलेख

/brics-ka-sheersh-sammelan-aur-badalati-duniya

ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

/amariki-ijaraayali-narsanhar-ke-ek-saal

अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को

/philistini-pratirodha-sangharsh-ek-saal-baada

7 अक्टूबर को आपरेशन अल-अक्सा बाढ़ के एक वर्ष पूरे हो गये हैं। इस एक वर्ष के दौरान यहूदी नस्लवादी इजराइली सत्ता ने गाजापट्टी में फिलिस्तीनियों का नरसंहार किया है और व्यापक

/bhaarat-men-punjipati-aur-varn-vyavasthaa

अब सवाल उठता है कि यदि पूंजीवादी व्यवस्था की गति ऐसी है तो क्या कोई ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था कायम हो सकती है जिसमें वर्ण-जाति व्यवस्था का कोई असर न हो? यह तभी हो सकता है जब वर्ण-जाति व्यवस्था को समूल उखाड़ फेंका जाये। जब तक ऐसा नहीं होता और वर्ण-जाति व्यवस्था बनी रहती है तब-तक उसका असर भी बना रहेगा। केवल ‘समरसता’ से काम नहीं चलेगा। इसलिए वर्ण-जाति व्यवस्था के बने रहते जो ‘न्यायपूर्ण’ पूंजीवादी व्यवस्था की बात करते हैं वे या तो नादान हैं या फिर धूर्त। नादान आज की पूंजीवादी राजनीति में टिक नहीं सकते इसलिए दूसरी संभावना ही स्वाभाविक निष्कर्ष है।