‘पति, पत्नी और वो’ नाम से भारत में बम्बईया सिनेमा ने दो लोकप्रिय फिल्में बनायी। एक 1978 में और दूसरी 2019 में आई। दोनों फिल्में चलीं। लोगों का खूब मनोरंजन किया अैर फिर कौन याद रख सकता है कब कौन सी फिल्म आयी थी। ‘पति, पत्नी और वो’ के बीच क्या चक्कर था। कौन सही कौन गलत था।
इस वक्त जो फिल्म भारत वर्ष में चल रही है वह कोई रोमांटिक कामेडी ड्रामा नहीं है बल्कि असल में राजनैतिक जीवन में चल रही है। बम्बईया फिल्म की तरह इसमें भी तीन किरदार पति, पत्नी और वो हैं। और यहां पति, वो को लेकर एकदम सच्ची और करारी बातें कर रहा है परन्तु पत्नी, वो की घोर प्रशंसक ही नहीं बल्कि उसके हर अच्छे-बुरे कर्म की सहकर्मी है। ‘सनातन धर्म’ को मानने वाली पत्नी, पति के दिखाये रास्ते पर नहीं चलती है। पति बेचारा चीखता-चिल्लाता रहता है परन्तु पत्नी नहीं सुनती है। वह अपनी पूरी ऊर्जा, मेधा से वो के कामों में साथ देती रहती है।
पति ने वो के बारे में क्या, क्या नहीं कहा। उन्होंने कहा कि अगर वो की सरकार दुबारा बनती है तो उसके बाद कोई चुनाव नहीं होगा। पति ने कहा, ‘‘चुनावी बांड घोटाला दुनिया का सबसे बड़ा घोटाला है।’’ पति ने कहा यदि वो की पार्टी जीतती है; अगर सत्ता में दुबारा आती है तो देश का संविधान बदल जायेगा; देश का नक्शा बदल जायेगा। पति ने वो की तब भी खूब आलोचना की थी जब उसने नोटबंदी लागू की थी। लेकिन पत्नी ने पति की बात पर कभी कान नहीं दिया।
पति का नाम परकला प्रभाकर है वे अर्थशास्त्री हैं और उनकी पत्नी देश की वित्तमंत्री हैं और वो को तो आप समझ ही गये होंगे, कौन है।
पति, पत्नी और वो
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती।
7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को