तेंदुआ -उषा राय

/tendua-usaa-raaya

 (अंश)

1.
घुस आया है तेंदुआ
वे मुग्ध हैं उसके हिंसक अंदाज पर
गर्व करते हैं फूल माला से लाद देते हैं
पर लोग हैरान हैं कि यह तो तेंदुआ है!

2.
जब हम बेखबर रहते  
तेंदुआ दूर तक की चालें सोचता
शिकार को आंखों में रखता 
और सदा ही विलोम रचता है
मसलन
कहता है अच्छे दिन     
बुरे दिन हो जाते हैं
नारा बेटी बचाओ       
यौन शोषण का लाइसेंस बन जाता है
कहता है सहमति        
असहमति को दिखाता जेल का रास्ता
कहता है विकास         
विनाश हो जाता है
कहता है शिक्षा            
बच्चे छोड़ देते परीक्षा
कहता है सबका साथ     
दंगा करा दिया जाता है
रोजगार                     
बेरोजगारी में
खरीदना                     
बेचने में और
व्यवस्था                     
वोट की गणित में बदल जाती है
अब की है उसने शांति की बात   
चाकू खंजर भाला त्रिशूल की 
बात चल निकली है
जब-जब वह खतरों की बात उठाता है 
तब समझ लेना चाहिए
कि कोई नाव खतरे में नहीं  
पूरी नदी खतरे में है।

आलेख

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आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था। 

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ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।

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ब्रिक्स+ के इस शिखर सम्मेलन से अधिक से अधिक यह उम्मीद की जा सकती है कि इसके प्रयासों की सफलता से अमरीकी साम्राज्यवादी कमजोर हो सकते हैं और दुनिया का शक्ति संतुलन बदलकर अन्य साम्राज्यवादी ताकतों- विशेष तौर पर चीन और रूस- के पक्ष में जा सकता है। लेकिन इसका भी रास्ता बड़ी टकराहटों और लड़ाईयों से होकर गुजरता है। अमरीकी साम्राज्यवादी अपने वर्चस्व को कायम रखने की पूरी कोशिश करेंगे। कोई भी शोषक वर्ग या आधिपत्यकारी ताकत इतिहास के मंच से अपने आप और चुपचाप नहीं हटती। 

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अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को