भगवा लहर नहीं ! सत्ता विरोधी लहर

पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों में परिणाम 3-2 से भाजपा या एन डी ए के गठबंधन के पक्ष में रहा। कांग्रेस पार्टी ने चुनाव इंडिया गठबंधन को किनारे रखकर लड़ा था और उसे सिर्फ तेलंगाना में सफलता मिली। मिजोरम में भाजपा की सहयोगी पार्टी ‘मिजो नेशनल फ्रंट’ की करारी हार हुई। मिजोरम में एक नये दल जोरम पीपल्स मूवमेन्ट (जेड पी एम) को बहुत बड़ी जीत (40 सीटों में से 27) मिली।
    
मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ व राजस्थान में भाजपा को बहुत बड़ी जीत मिली। यद्यपि हवा कांग्रेस पार्टी के पक्ष में बह रही थी। अधिकांश चुनाव पूर्व सर्वे जहां छत्तीसगढ़ में कांग्रेस की सरकार बना रहे थे वहां मध्य प्रदेश व राजस्थान में कांटे की टक़्कर बता रहे थे। किंचित इसी कारण बसपा प्रमुख मायावती को कहना पड़ा कि चुनाव परिणाम विचित्र, अचंभित व शंकित करने वाला रहा है।     
    
इन तीन राज्यों की जीत ने भाजपा से ज्यादा मोदी के सितारे को और बुलंदी पर पहुंचा दिया है। इन तीनों राज्यों में कांग्रेस का मत प्रतिशत पुराने चुनावों के बराबर ही रहा यद्यपि भाजपा का मत प्रतिशत मध्य प्रदेश में 7 प्रतिशत, छत्तीसगढ़ में 13 प्रतिशत और राजस्थान में 4 प्रतिशत बढ़ा। यहां कांग्रेस की समस्या यह नहीं है कि उसका जनाधार घटा है बल्कि यह है कि वह बढ़ा नहीं है।
    
हालांकि मोदी-शाह की रग-रग में असुरक्षा बोध बसा हुआ है। वह विपक्षी पार्टियों को ही ठिकाने लगाने में नहीं जुटे हैं बल्कि अपनी पार्टी के भीतर के कद्दावर नेताओं को भी ठिकाने लगा रहे हैं। इसीलिए तीनों विजयी राज्यों में तीन नये मुख्यमंत्री बना उन्होंने शिवराज, रमन सिंह व वसुंधरा राजे को आडवाणी के मार्गदर्शक मण्डल की राह दिखा दी है। राजस्थान में भजन लाल शर्मा, छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय और म.प्र. में मोहन यादव को मुख्यमंत्री बना मोदी-शाह ने एक ओर अपने चहेतों को सत्तासीन किया है वहीं 2024 के चुनाव के मद्देनजर एक ब्राह्मण, एक ओबीसी, एक आदिवासी को मुख्यमंत्री बना जातीय समीकरण भी साधना शुरू कर दिया है। 
    
भाजपा की जीत पर किसका दांव लगा हुआ था इसको समझने में जीत के बाद शेयर मार्केट व अडानी के शेयरों से इसके एक सीधे सम्बन्ध से अंदाजा लगाया जा सकता है। सेंसेक्स में जहां 1,384 अंकों का वहां निफ़्टी में 419 अंकों का जबरदस्त उछाल आया। 4 दिसंबर को सेंसेक्स जहां 68,685 तो निफ़्टी 20,687 पर बंद हुआ। एकाधिकारी घरानों व हिंदू फ़ासीवाद का गठजोड़ फिर एक बार उजागर हो गया। 
    
मोदी और अडानी के रिश्ते को इस चुनावी जीत ने और साफ किया। अडानी समूह के शेयरों में भारी तेज़ी आयी। अडानी समूह का बाज़ार पूंजीकरण 73,000 करोड़ रुपये तक बढ़ गया। मोदी का ग्राफ बढ़ने का सीधा मतलब अडानी की दौलत बढ़ना रहा है। और अडानी आदि की दौलत बढ़ने का मतलब भाजपा के पास चुनाव लड़ने के लिए बेशुमार दौलत।
    
इन चुनावों को भगवा लहर के रूप में दिखलाया जा रहा है। हकीकत में यह सत्ता विरोधी लहर रही है। 5 राज्यों में से 4 राज्यों में सत्तारूढ़ दल की करारी हार हुई है। सिर्फ मध्य प्रदेश में ही भाजपा अपनी सत्ता भारी मशक्क़त के बाद बचा सकी। भाजपा ने मध्य प्रदेश के चुनाव को जीतने के लिए वह सब कुछ किया जो वह कर सकती थी। यहां तक कि केंद्रीय मंत्रियों तक को चुनाव में उतार दिया। एक केंद्रीय मंत्री मोदी-भाजपा के सारे प्रचार के बावजूद चुनाव हार गया। ध्यान रहे मध्य प्रदेश, गुजरात के बाद हिंदू फासीवादियों का सबसे मज़बूत किला रहा है। 
    
राजस्थान व छत्तीसगढ़ में कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने सत्ता बरकरार रखने के लिए हर दांव चला। लोक लुभावन नीतियां बनायीं व अनेकानेक घोषणाएं कीं। लोक लुभावन नीतियों में भाजपा ने कांग्रेस को धता बताते हुए ‘‘मोदी गारंटी’’ की चालें चलीं और वह कामयाब रही। यद्यपि मोदी कल तक इनकी चुनावी रेवड़ियां बताकर आलोचना कर रहे थे। और उन्होंने कांग्रेस को कांग्रेस की चाल से ही परास्त कर दिया। कांग्रेस के ‘‘जातीय जनगणना’’, और ‘‘पुरानी पेंशन’’ वाले दांव ज्यादा कामयाब नहीं रहे। 
    
तेलंगाना में कांग्रेस ने कर्नाटक की तरह एक बड़ी जीत हासिल की। यहां कांग्रेस पार्टी की गारंटियों ने अपना काम नहीं किया परन्तु उसकी जीत ‘भारत राष्ट्र समिति’ (बी आर एस) के भ्रष्टाचार व उसकी बढ़ती अलोकप्रियता की वजह से अधिक हुई। भाजपा यहां कुछ माह पूर्व तक सरकार बनाने का दावा कर रही थी परन्तु वह दहाई का आंकड़ा भी नहीं छू पायी।
    
मिजोरम में भाजपा नीत गठबंधन की पार्टी मिजो नेशनल फ्रंट (एम एन एफ) का एक तरह से सफाया हो गया। कांग्रेस और भाजपा को क्रमशः 1 और 2 सीट मिलीं। भाजपा को दो सीटें एम एन एफ की मेहरबानी से ही मिलीं। उसकी स्थिति तो यह थी कि वहां एम एन एफ के नेता ने मोदी के साथ सभा तक करने से इंकार कर दिया था। वजह मणिपुर बना है जहां भाजपा व हिंदू फ़ासीवादी ईसाई अल्पसंख्यकों कुकियों पर हमलावर रहे हैं। मणिपुर की आग में एम एन एफ व भाजपा दोनों ही झुलस गये। 
    
हिंदी क्षेत्र में भले ही भाजपा को जीत हासिल हुई हो परन्तु गैर हिंदी क्षेत्र में भाजपा का विस्तार ठहर सा गया है। तेलंगाना व मिजोरम में भाजपा की हार उसकी हिंदी क्षेत्र में जीत से बड़ी है। आज इतराती भाजपा को कल को मुंह की भी खानी पड़ सकती है।

आलेख

/chaavaa-aurangjeb-aur-hindu-fascist

इतिहास को तोड़-मरोड़ कर उसका इस्तेमाल अपनी साम्प्रदायिक राजनीति को हवा देने के लिए करना संघी संगठनों के लिए नया नहीं है। एक तरह से अपने जन्म के समय से ही संघ इस काम को करता रहा है। संघ की शाखाओं में अक्सर ही हिन्दू शासकों का गुणगान व मुसलमान शासकों को आततायी बता कर मुसलमानों के खिलाफ जहर उगला जाता रहा है। अपनी पैदाइश से आज तक इतिहास की साम्प्रदायिक दृष्टिकोण से प्रस्तुति संघी संगठनों के लिए काफी कारगर रही है। 

/bhartiy-share-baajaar-aur-arthvyavastha

1980 के दशक से ही जो यह सिलसिला शुरू हुआ वह वैश्वीकरण-उदारीकरण का सीधा परिणाम था। स्वयं ये नीतियां वैश्विक पैमाने पर पूंजीवाद में ठहराव तथा गिरते मुनाफे के संकट का परिणाम थीं। इनके जरिये पूंजीपति वर्ग मजदूर-मेहनतकश जनता की आय को घटाकर तथा उनकी सम्पत्ति को छीनकर अपने गिरते मुनाफे की भरपाई कर रहा था। पूंजीपति वर्ग द्वारा अपने मुनाफे को बनाये रखने का यह ऐसा समाधान था जो वास्तव में कोई समाधान नहीं था। मुनाफे का गिरना शुरू हुआ था उत्पादन-वितरण के क्षेत्र में नये निवेश की संभावनाओं के क्रमशः कम होते जाने से।

/kumbh-dhaarmikataa-aur-saampradayikataa

असल में धार्मिक साम्प्रदायिकता एक राजनीतिक परिघटना है। धार्मिक साम्प्रदायिकता का सारतत्व है धर्म का राजनीति के लिए इस्तेमाल। इसीलिए इसका इस्तेमाल करने वालों के लिए धर्म में विश्वास करना जरूरी नहीं है। बल्कि इसका ठीक उलटा हो सकता है। यानी यह कि धार्मिक साम्प्रदायिक नेता पूर्णतया अधार्मिक या नास्तिक हों। भारत में धर्म के आधार पर ‘दो राष्ट्र’ का सिद्धान्त देने वाले दोनों व्यक्ति नास्तिक थे। हिन्दू राष्ट्र की बात करने वाले सावरकर तथा मुस्लिम राष्ट्र पाकिस्तान की बात करने वाले जिन्ना दोनों नास्तिक व्यक्ति थे। अक्सर धार्मिक लोग जिस तरह के धार्मिक सारतत्व की बात करते हैं, उसके आधार पर तो हर धार्मिक साम्प्रदायिक व्यक्ति अधार्मिक या नास्तिक होता है, खासकर साम्प्रदायिक नेता। 

/trump-putin-samajhauta-vartaa-jelensiki-aur-europe-adhar-mein

इस समय, अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूरोप और अफ्रीका में प्रभुत्व बनाये रखने की कोशिशों का सापेक्ष महत्व कम प्रतीत हो रहा है। इसके बजाय वे अपनी फौजी और राजनीतिक ताकत को पश्चिमी गोलार्द्ध के देशों, हिन्द-प्रशांत क्षेत्र और पश्चिम एशिया में ज्यादा लगाना चाहते हैं। ऐसी स्थिति में यूरोपीय संघ और विशेष तौर पर नाटो में अपनी ताकत को पहले की तुलना में कम करने की ओर जा सकते हैं। ट्रम्प के लिए यह एक महत्वपूर्ण कारण है कि वे यूरोपीय संघ और नाटो को पहले की तरह महत्व नहीं दे रहे हैं।

/kendriy-budget-kaa-raajnitik-arthashaashtra-1

आंकड़ों की हेरा-फेरी के और बारीक तरीके भी हैं। मसलन सरकर ने ‘मध्यम वर्ग’ के आय कर पर जो छूट की घोषणा की उससे सरकार को करीब एक लाख करोड़ रुपये का नुकसान बताया गया। लेकिन उसी समय वित्त मंत्री ने बताया कि इस साल आय कर में करीब दो लाख करोड़ रुपये की वृद्धि होगी। इसके दो ही तरीके हो सकते हैं। या तो एक हाथ के बदले दूसरे हाथ से कान पकड़ा जाये यानी ‘मध्यम वर्ग’ से अन्य तरीकों से ज्यादा कर वसूला जाये। या फिर इस कर छूट की भरपाई के लिए इसका बोझ बाकी जनता पर डाला जाये। और पूरी संभावना है कि यही हो।