आखिरकार करीब डेढ़ महीने बाद न्यूजीलैंड में दक्षिणपंथी पार्टियां आपस में गठबंधन बनाकर सत्ता पर काबिज हो गयी हैं। नेशनल पार्टी के नेता क्रिस्टोफर लक्सन ने 27 नवंबर को प्रधानमंत्री पद की शपथ ले ली है। ज्ञात हो कि 14 अक्टूबर को हुए चुनाव के बाद न्यूज़ीलैंड की नेशनल पार्टी 38 प्रतिशत मतों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। वहीं पूर्व में सत्ताधारी पार्टी को महज़ 26.9 प्रतिशत मत मिले। न्यूजीलैंड फर्स्ट को 6 प्रतिशत और ए सी टी को 8.6 प्रतिशत मत मिले थे। करीब 6 सप्ताह की रगड़ घिस्सी के बाद नेशनल पार्टी, न्यूज़ीलैंड फर्स्ट और ए सी टी ने मिलकर सरकार बना ली। और इस तरह दक्षिणपंथी पार्टियां न्यूज़ीलैंड की सत्ता पर विराज़मान हो गयीं।
लेबर पार्टी नाम से तो मज़दूर वर्ग की पार्टी है लेकिन वास्तव में वह पूंजीपतियों के हिसाब से ही काम कर रही थी। अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ मिलकर जहां एक तरफ वह रूस-यूक्रेन युद्ध में यूक्रेन का साथ दे रही थी वहीं अमेरिका द्वारा चीन के खिलाफ बनाये गये फाइव आई इंटेलिजेंस में भी उसने न्यूज़ीलैंड को शामिल किया हुआ था। इसी तरह इराक और अफगानिस्तान युद्ध में भी वह अमेरिकी साम्राज्यवादियों के साथ थी।
घरेलू मोर्चे पर भी लेबर पार्टी की पूंजीपरस्त नीतियों के कारण लगातार बढ़ती महंगाई के कारण लोगों का जीवन कष्टकारी बनता जा रहा था। 6 लाख लोग जो कुल आबादी का 11.5 प्रतिशत हैं, फ़ूड पार्सल के सहारे जिंदा हैं। 50 में से 1 आदमी बेघर है। स्वास्थ्य और शिक्षा जैसी मूलभूत जरूरतें महंगी होती जा रही हैं। और इसी वजह से 2020 के चुनाव में 50 प्रतिशत मत प्राप्त करने वाली पार्टी का मत प्रतिशत इस बार घटकर महज़ 26.9 प्रतिशत रह गया।
न्यूज़ीलैंड में हुए चुनाव के बाद यह स्पष्ट हो गया कि जनता ने किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत नहीं दिया। एक बड़ी आबादी का संसदीय व्यवस्था से मोह भंग हुआ है जिसकी वजह से चौथाई आबादी (करीब 10 लाख) वोट डालने ही नहीं गयी। चुनावों के बाद नेशनल पार्टी के पक्ष में ‘‘नीली लहर’’ बताने वाले लोगों को यह समझना होगा कि दरअसल जनता ने उनकी नीतियों से खुश होकर उन्हें वोट नहीं दिया है बल्कि यह सत्तारूढ़ पार्टी से उपजी खीज थी।
लेकिन इतना तय है कि दक्षिणपंथी पार्टियां कम वोट हासिल करने के बाद भी समाज में अपना व्यापक असर कायम करने की स्थिति में आ गयी हैं। ए सी टी और न्यूज़ीलैंड फर्स्ट जैसी पार्टियां जिन्हें क्रमशः महज 8.6 प्रतिशत और 6 प्रतिशत मत मिले हैं, अपनी जनता विरोधी नीतियों को लागू करेंगी जिससे मजदूर वर्ग का जीवन और कठिन हो जायेगा।
ए सी टी के नेता डेविड सियमोर और न्यूजीलैंड फर्स्ट के नेता विंस्टन पीटर्स बारी-बारी से उप प्रधानमंत्री बनेंगे। न्यूजीलैंड फर्स्ट जैसी पार्टी जो अप्रवासी विरोधी नीतियों को लागू करने की पक्षधर रही है वह विदेश विभाग संभालेगी और ए सी टी पार्टी जो पूंजीपतियों के लिए कर माफी की पक्षधर रही है और छोटी सरकार, कम रोजगार की पक्षधर रही है, को शिक्षा, वित्त और स्वास्थ्य जैसे विभाग मिले हैं।
विदेश नीति के मामले में लेबर पार्टी और वर्तमान में सत्ता पर काबिज दक्षिणपंथी पार्टियों में कोई मतभेद नहीं रहा है। और इसीलिए अब बजट का 2 प्रतिशत रक्षा क्षेत्र में खर्च होगा जो अब तक 1.4 प्रतिशत था। और यह सब इसीलिए क्योंकि न्यूज़ीलैंड अमेरिकी साम्राजवादियों के साथ युद्ध में शामिल है।
शिक्षा के क्षेत्र में ए सी टी की निजीकरण की नीतियां लागू होंगी। और यह सब होगा चार्टर स्कूल के जरिये। इन स्कूलों को फंडिंग तो सरकार करेगी लेकिन इन स्कूलों को पाठ्यक्रम से लेकर स्कूल के खर्चे तक स्वयं तय करने का अधिकार होगा। ये चार्टर स्कूल 2014 में खोले गये थे बाद में इन्हें राजकीय स्कूल में बदल दिया गया। अब नयी सरकार में शिक्षा विभाग जो ए टी सी के अधीन है, ने यह आदेश जारी किया है कि वर्तमान में जो स्कूल चार्टर स्कूल में बदलने के लिए आवेदन करेगा उसे चार्टर स्कूल में बदल दिया जायेगा। यह शिक्षा के निजीकरण की राह है। इसी तरह न्यूज़ीलैंड फर्स्ट जो सेक्स एजुकेशन का विरोध करती है, उसे भी लागू किया जायेगा और छात्रों के मोबाइल फोन रखने पर प्रतिबंध लगा दिया जायेगा। इसके साथ ही छात्रों के लिए सैनिक शिक्षा अनिवार्य बनाने की भी योजना है ताकि समाज का सैन्यीकरण किया जा सके।
कुल मिलाकर जो नई सरकार बनी है उसका उद्देश्य पूंजीपति वर्ग की सेवा करना ही है और इसके लिए जनता पर कटौती कार्यक्रम लागू किये जाएंगे। बजट का अधिकांश हिस्सा पूंजीपतियों पर लुटाया जायेगा। यही काम पिछली सरकार भी कर रही थी। लेकिन उसके द्वारा पूंजीपति वर्ग की सेवा लम्बे समय से की जा रही थी जिस कारण वह अलोकप्रिय हो गयी थी। आम जनता को न तो पिछली सरकार से कोई उम्मीद बची थी और न ही आने वाली सरकार को उसने बहुमत दिया है। न्यूज़ीलैंड के समाज में क्रांतिकारी शक्तियों की अनुपस्थिति में दक्षिणपंथी शक्तियां अल्पमत में होते हुए भी आज समाज में हावी हैं और समाज को विपरीत दिशा में ले जा रही हैं।
न्यूज़ीलैंड में दक्षिणपंथी पार्टियां सत्ता में
राष्ट्रीय
आलेख
आजादी के आस-पास कांग्रेस पार्टी से वामपंथियों की विदाई और हिन्दूवादी दक्षिणपंथियों के उसमें बने रहने के निश्चित निहितार्थ थे। ‘आइडिया आव इंडिया’ के लिए भी इसका निश्चित मतलब था। समाजवादी भारत और हिन्दू राष्ट्र के बीच के जिस पूंजीवादी जनतंत्र की चाहना कांग्रेसी नेताओं ने की और जिसे भारत के संविधान में सूत्रबद्ध किया गया उसे हिन्दू राष्ट्र की ओर झुक जाना था। यही नहीं ‘राष्ट्र निर्माण’ के कार्यों का भी इसी के हिसाब से अंजाम होना था।
ट्रंप ने ‘अमेरिका प्रथम’ की अपनी नीति के तहत यह घोषणा की है कि वह अमेरिका में आयातित माल में 10 प्रतिशत से लेकर 60 प्रतिशत तक तटकर लगाएगा। इससे यूरोपीय साम्राज्यवादियों में खलबली मची हुई है। चीन के साथ व्यापार में वह पहले ही तटकर 60 प्रतिशत से ज्यादा लगा चुका था। बदले में चीन ने भी तटकर बढ़ा दिया था। इससे भी पश्चिमी यूरोप के देश और अमेरिकी साम्राज्यवादियों के बीच एकता कमजोर हो सकती है। इसके अतिरिक्त, अपने पिछले राष्ट्रपतित्व काल में ट्रंप ने नाटो देशों को धमकी दी थी कि यूरोप की सुरक्षा में अमेरिका ज्यादा खर्च क्यों कर रहा है। उन्होंने धमकी भरे स्वर में मांग की थी कि हर नाटो देश अपनी जीडीपी का 2 प्रतिशत नाटो पर खर्च करे।
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7 नवम्बर : महान सोवियत समाजवादी क्रांति के अवसर पर
अमरीकी साम्राज्यवादियों के सक्रिय सहयोग और समर्थन से इजरायल द्वारा फिलिस्तीन और लेबनान में नरसंहार के एक साल पूरे हो गये हैं। इस दौरान गाजा पट्टी के हर पचासवें व्यक्ति को