महिलाओं के साथ बढ़ती हिंसा

2023 दिसंबर की शुरुआत में एनसीआरबी (नेशनल क्राइम रिकार्ड ब्यूरो) की ‘क्राइम इन इंडिया’ रिपोर्ट जारी हुई है। ये रिपोर्ट हर साल जारी की जाती है। हर साल महिलाओं के खिलाफ बढ़ते अपराधों की दास्तां दोहराई जाती है। जैसे- महिलाओं के साथ होने वाली हिंसा में पिछले साल के मुकाबले इस साल कितनी और बढ़ोत्तरी हुई या हर दिन कितनी महिलाएं और नाबालिग लड़कियां दुष्कर्म का शिकार हुईं। हत्या, घरेलू हिंसा, दहेज हत्या का ग्राफ किन राज्यों में बढ़ा और कौन-कौन से राज्य महिलाओं के लिए सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। 
    
इस रिपोर्ट के आंकड़ों के अनुसार साल 2022 में देश भर में महिलाओं के खिलाफ अपराध के कुल 4,45,256 मामले दर्ज किए गए हैं। जबकि इसके पहले 2021 में 4,28,278 मामले दर्ज किए गए थे। यानी बीते साल 2022 में महिला अपराधों के हर घंटे लगभग 51 मामले दर्ज किए गए हैं। देश भर में पिछले साल बलात्कार के 31,516 मामले दर्ज किए गए। जिनमें 31,982 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। पिछले साल देश में हर दिन कम से कम 87 महिलाओं के साथ बलात्कार किया गया। पाक्सो के तहत बच्चों के साथ यौन हिंसा के 62,095 मामले दर्ज हुए जिसमें बलात्कार के शिकार 38,030 बच्चे हुए। 
    
इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय दंड संहिता (प्च्ब्) के तहत महिलाओं के खिलाफ अपराध के सबसे अधिक 31.4 प्रतिशत मामले पति या उसके रिश्तेदारों की क्रूरता के थे। यानी महिलाएं अपने घरों में ही अपनों के बीच सबसे ज्यादा असुरक्षित हैं। इस रिपोर्ट के अनुसार साल 2022 में 25,309 गृहणियों ने आत्महत्या के जरिए अपना जीवन समाप्त कर लिया। ये संख्या पिछले 5 वर्षों में सबसे अधिक है। ये कुल आत्महत्याओं का 14.8 प्रतिशत है।
    
ये आंकड़े महिला सुरक्षा के तमाम वादों और दावों से अलग एक हकीकत बयान करते हैं।
    
महिलाओं की हत्या, बलात्कार, सामूहिक बलात्कार, अपहरण और महिलाओं के साथ होने वाले अपराधों में उत्तर प्रदेश पहले स्थान पर है। महिलाओं के खिलाफ अपराध के उत्तर प्रदेश में करीब 65,743 मामले दर्ज हुए। इन मामलों में महाराष्ट्र दूसरे नंबर (2022 में 45,331 मामले), तीसरे नंबर पर राजस्थान (2022 में 40,058 मामले), चौथे नंबर पर पश्चिम बंगाल (2022 में 34,738 मामले) व पांचवे नंबर पर मध्य प्रदेश (2022 में 32,765 मामले) रहा।
    
पहाड़ी राज्य उत्तराखण्ड में वर्ष 2021 में महिला अपराध के 3,431 मामले सामने आए थे, जबकि वर्ष 2022 में यह संख्या बढ़कर 4,337 पहुंच गई।
    
वहीं देश की राजधानी दिल्ली भी महिला अपराधों में पीछे नहीं है। दिल्ली का महिला अपराध की दर के मामले में सबसे खराब रिकार्ड है। दिल्ली में महिलाओं के खिलाफ अपराध दर 144.4 प्रतिशत है, जो अपराध दर के राष्ट्रीय औसत 66.4 प्रतिशत से काफी ऊपर है। यानी 1 लाख महिलाओं पर कितनी महिलाएं अपराध का शिकार हुईं, यह वह प्रतिशत है।
    
इन आंकड़ों से देश में महिलाओं की खराब स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है, मगर हकीकत इससे बहुत बड़ी है। क्योंकि ये वही आंकड़े हैं जो पुलिस की फाइलों में दर्ज होते हैं। जबकि महिलाओं के साथ अपराध से संबंधित ऐसे बहुत से मामले हैं, जो शायद घर से बाहर पुलिस की फाइलों तक पहुंच ही नहीं पाते हैं या फिर इज्जत जाने के डर से दबा दिए जाते हैं।
    
सारी ही पार्टियां चुनाव के समय महिलाओं के वोट पाने के लिए बड़ी-बड़ी बातें, घोषणाएं करती हैं। नरेंद्र मोदी और योगी आदित्यनाथ महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में अपने भाषणों में आंसू बहाने का दिखावा करते हैं, जुमले फेंकते हैं। अपनी बड़ी-बड़ी घोषणाओं, दावों और वायदों के माध्यम से वे दिखाना चाहते हैं कि वे महिलाओं के प्रति कितने चिंतित हैं, उनके शुभ चिंतक केवल वह ही हैं।
    
‘‘नारी सुरक्षा में सेंधमारी करने वालों को पाताल से भी ढूंढ लाएंगे’’, ‘‘या तो अपराधी उत्तर प्रदेश छोड़ दें या फिर अपराध’’, ‘‘बहन-बेटी को छेड़ा तो अगले चौराहे पर यमराज इंतज़ार करेगा’’ ये सारे बयान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के हैं, मगर अफसोस ये कि मोदी-योगी जी के ये बयान महज शब्दों तक ही सीमित रह जाते हैं। व्यवहार इसके उलट किया जाता है। महिला अपराधों में शामिल लोगों को बचाने, उनको संरक्षण देने का काम किया जाता है।
    
इस तरह की रिपोर्ट को जारी करने के पीछे ये दिखाने की कोशिश की जाती है कि देश की सरकार महिलाओं के लिए कितनी चिंतित है कि हर साल सर्वे कराके रिपोर्ट जारी करवाते हैं। लेकिन इस समस्या के समाधान के लिए कोई प्रयास करने के बजाय उसको बढ़ाने का ही काम किया जाता है। नेता, मंत्री, तमाम संस्थानों में बैठने वाले सफेदपोश महिला हिंसा की घटनाओं में शामिल होते हैं। ये महिला अपराधों के कारणों को बढ़ाने का काम करते हैं। 
    
सत्ता में बैठे लोग महिलाओं के घर के कार्यों का महिमा मंडन करते हैं घर के कामों को महिलाओं का नैतिक कार्य, उनकी जिम्मेदारी माना जाता है। सामंती, धार्मिक रीति-रिवाजों का खूब प्रचार-प्रसार किया जाता है। टी.वी. धारावाहिकों, फिल्मों के माध्यम से तमाम व्रत, सामंती परंपराओं को स्थापित करने का काम किया जाता है। आदर्श बहू-बेटी वही स्थापित की जाती है जो तमाम परेशानियां उठाने के बाद भी इन परंपराओं को मानती हो, उन्हें लागू करती हो।
    
इसके अलावा महिलाओं के सस्ते श्रम का इस्तेमाल कर पूंजीपतियों को मुनाफा पहुंचाने के लिए समाज में महिलाओं की दोयम दर्जे की स्थिति को बना कर रखी गयी है। महिलाओं के सस्ते श्रम के दोहन के लिए पूंजीपतियों के पक्ष में तमाम कानून बना रहे हैं।
    
सौंदर्य प्रसाधन के बाजार को बढ़ावा दिया जा रहा है। अश्लील वीडियो, फिल्मों, गानों, पोर्नोग्राफी के जरिए समाज में अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति को बढ़ावा दिया जा रहा है। ये सारे ही कारण महिला अपराधों को बढ़ावा दे रहे हैं।
    
इन कारणों को खत्म किये बिना महिला अपराधों को खत्म नहीं किया जा सकता है। यानी घरेलू गुलामी से मुक्ति, पुराने रीति-रिवाज, सामंती बंधन, पुरुष प्रधान मानसिकता, अश्लील उपभोक्तावादी संस्कृति और महिलाओं को माल के रूप में प्रस्तुत करने वाली पूंजीवादी व्यवस्था की गुलामी से मुक्ति जब तक नहीं मिल पाती तब तक महिला अपराध खत्म नहीं हो सकते हैं। 

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