हिंदू फासीवादी, न्यायपालिका और मनुस्मृति

 हमारे देश की न्याय व्यवस्था पर हिंदू फासीवादियों का प्रभाव किस कदर बढ़ता जा रहा है इसका एक ताजा उदाहरण गुजरात हाईकोर्ट द्वारा एक मामले की सुनवाई के दौरान मनुस्मृति का हवाला देने के रूप में सामने आया है।
    

मामला यह है कि बलात्कार की शिकार एक किशोरी का गर्भ 24 हफ्ते से अधिक हो जाने पर उसके पिता ने 16 साल 11 महीने की अपनी पुत्री के भविष्य के मद्देनजर उसके भू्रण के गर्भपात हेतु गुजरात हाईकोर्ट में याचिका लगाई, क्योंकि गर्भपात सम्बंधी कानून के तहत सामान्य अवस्था में 20 हफ्ते तक एवं बलात्कार की अवस्था में 24 हफ्ते तक के भू्रण का ही गर्भपात किया जा सकता है।
    

याचिका पर सुनवाई करते हुये जज समीर दवे की एकल खंडपीठ ने कहा कि ‘‘यदि लड़की अथवा उसके भ्रूण में कोई बीमारी पाई जाती है तभी वे गर्भपात की इजाजत देंगे अन्यथा नहीं।’’ 
    

अब इतने तक जज की बातों में कानूनन कोई दिक्कत नहीं है। दिक्कत तब खड़ी हुई जबकि मान्यवर ने याचिकाकर्ता के वकील से कहा कि ‘‘पहले लड़कियों का 14 से 16 साल के बीच शादी करना और एक या दो साल बाद बच्चे को जन्म देना सामान्य बात थी, और यह मनुस्मृति में लिखा है।..... जाओ अपनी मां या परदादी से पूछो। वे आपको बतायेंगी कि पहले लड़कियों की शादी के लिये 14 से 16 साल सामान्य उम्र थी। यह मनुस्मृति में है। ...... मुझे पता है कि आप इसे नहीं पढ़ेंगे लेकिन फिर भी इसके लिये इसे एक बार जरूर पढ़ें।“
    

गौरतलब है कि मनुस्मृति प्राचीन विशेषकर सामंती भारत का एक ब्राह्मणवादी ग्रंथ व संहिता है जो कि वर्ण व्यवस्था एवं पितृसत्ता को समाज का आधार मानता है। मनुस्मृति के अनुसार ब्रह्मा के मुख से ब्राह्मण, भुजाओं से क्षत्रिय, पेट से वैश्य एवं पैरों से शुद्रों की उत्पत्ति हुई है और शुद्रों का काम ऊपरी तीन वर्णों -ब्राह्मण, क्षत्रिय एवं वैश्य- की सेवा करना है। शूद्र यदि ज्ञान हासिल करने की कोशिश करता है तो मनुस्मृति कहती है कि उसके कान में सीसा पिघला कर डाल देना चाहिये। शुद्रों एवं अछूत करार दिये गये लोगों के लिये ऐसे भयानक दंडों से मनुस्मृति भरी हुई है। गौरतलब है कि खुद राजा रामचंद्र ने वेदों का ज्ञान हासिल करने की चेष्टा के अपराध में एक शूद्र ज्ञानी पुरुष शम्बूक का वध कर दिया था।
    

जबकि महिलाओं के लिये मनुस्मृति कहती है कि विवाह से पूर्व उसे पिता के अधीन, विवाह के उपरांत पति के अधीन और बुढ़ापे में पुत्रों के अधीन रहना चाहिये। ऐसी ही और भी तमाम पितृसत्तात्मक बातों से यह ब्राह्मणवादी ग्रंथ भरा पड़ा है।
    

आखिर क्या वजह है कि हाईकोर्ट का जज ऐसे शोषण-उत्पीड़नकारी ब्राह्मणवादी ग्रंथ की वकालत कर समाज को पीछे ले जाने की बात कर रहा है। इसकी वजह यह है कि आज हमारे देश की सत्ता पर हिंदू फासीवादी काबिज हैं और जिनका शिकंजा न्यायपालिका समेत सभी राजकीय संस्थाओं पर कसता जा रहा है। सभी जगह हिंदू फासीवादी मानसिकता के लोगों की पैठ कायम हो रही है और हाईकोर्ट के जज समीर दवे भी ऐसे ही लोगों में से एक हैं। अपने विचारों के ही अनुरूप हिंदू फासीवादी महिलाओं को घर की चहारदीवारी में कैद कर देना चाहते हैं। इनका मानना है कि महिलाओं का मुख्य काम पति की सेवा करना और बच्चों को जन्म देना है। 
    

हिंदू फासीवादी देश में फासीवादी निजाम कायम करने के मंसूबे पाले हुये हैं और यदि ये अपने इस खतरनाक उद्देश्य में सफल हो गये तो फिर कोर्ट में महज हवाले नहीं बल्कि फैसले भी मनुस्मृति के आधार पर दिये जायेंगे क्योंकि तब संविधान को कूड़े की टोकरी में फेंक दिया जायेगा। 
    

ऐसे में देश की मजदूर-मेहनतकश जनता, दलितों-पिछड़ों, धार्मिक अल्पसंख्यकों, महिलाओं और नौजवानों सभी को एकजुट होकर इनके विरुद्ध संघर्ष के मैदान में आना होगा।

आलेख

/samraajyvaadi-comptetion-takarav-ki-aur

ट्रम्प के सामने चीनी साम्राज्यवादियों से मिलने वाली चुनौती से निपटना प्रमुख समस्या है। चीनी साम्राज्यवादियों और रूसी साम्राज्यवादियों का गठजोड़ अमरीकी साम्राज्यवाद के विश्व व्यापी प्रभुत्व को कमजोर करता है और चुनौती दे रहा है। इसलिए, हेनरी किसिंजर के प्रयोग का इस्तेमाल करने का प्रयास करते हुए ट्रम्प, रूस और चीन के बीच बने गठजोड़ को तोड़ना चाहते हैं। हेनरी किसिंजर ने 1971-72 में चीन के साथ सम्बन्धों को बहाल करके और चीन को सोवियत संघ के विरुद्ध खड़ा करने में भूमिका निभायी थी। 

/india-ki-videsh-neeti-ka-divaaliyaapan

भारत आबादी के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश है और उसकी अर्थव्यवस्था भी खासी बड़ी है। इसीलिए दुनिया के सारे छोटे-बड़े देश उसके साथ कोई न कोई संबंध रखना चाहेंगे। इसमें कोई गर्व की बात नहीं है। गर्व की बात तब होती जब उसकी कोई स्वतंत्र आवाज होती और दुनिया के समीकरणों को किसी हद तक प्रभावित कर रहा होता। सच्चाई यही है कि दुनिया भर में आज भारत की वह भी हैसियत नहीं है जो कभी गुट निरपेक्ष आंदोलन के जमाने में हुआ करती थी। 

/bharat-ka-garment-udyog-mahila-majadooron-ke-antheen-shoshan-ki-kabragah

भारत में वस्त्र एवं परिधान उद्योग में महिला एवं पुरुष मजदूर दोनों ही शामिल हैं लेकिन इस क्षेत्र में एक बड़ा हिस्सा महिला मजदूरों का बन जाता है। भारत में इस क्षेत्र में लगभग 70 प्रतिशत श्रम शक्ति महिला मजदूरों की है। इतनी बड़ी मात्रा में महिला मजदूरों के लगे होने के चलते इस उद्योग को महिला प्रधान उद्योग के बतौर भी चिन्हित किया जाता है। कई बार पूंजीवादी बुद्धिजीवी व भारत सरकार महिलाओं की बड़ी संख्या में इस क्षेत्र में कार्यरत होने के चलते इसे महिला सशक्तिकरण के बतौर भी प्रचारित करती है व अपनी पीठ खुद थपथपाती है।

/ceasefire-kaisa-kisake-beech-aur-kab-tak

भारत और पाकिस्तान के इन चार दिनों के युद्ध की कीमत भारत और पाकिस्तान के आम मजदूरों-मेहनतकशों को चुकानी पड़ी। कई निर्दोष नागरिक पहले पहलगाम के आतंकी हमले में मारे गये और फिर इस युद्ध के कारण मारे गये। कई सिपाही-अफसर भी दोनों ओर से मारे गये। ये भी आम मेहनतकशों के ही बेटे होते हैं। दोनों ही देशों के नेताओं, पूंजीपतियों, व्यापारियों आदि के बेटे-बेटियां या तो देश के भीतर या फिर विदेशों में मौज मारते हैं। वहां आम मजदूरों-मेहनतकशों के बेटे फौज में भर्ती होकर इस तरह की लड़ाईयों में मारे जाते हैं।

/terrosim-ki-raajniti-aur-rajniti-ka-terror

आज आम लोगों द्वारा आतंकवाद को जिस रूप में देखा जाता है वह मुख्यतः बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध की परिघटना है यानी आतंकवादियों द्वारा आम जनता को निशाना बनाया जाना। आतंकवाद का मूल चरित्र वही रहता है यानी आतंक के जरिए अपना राजनीतिक लक्ष्य हासिल करना। पर अब राज्य सत्ता के लोगों के बदले आम जनता को निशाना बनाया जाने लगता है जिससे समाज में दहशत कायम हो और राज्यसत्ता पर दबाव बने। राज्यसत्ता के बदले आम जनता को निशाना बनाना हमेशा ज्यादा आसान होता है।