भगवा बिकनी और हिंदू फासीवादी

हिंदू फासीवादी ताकतों ने अपने मुस्लिम विरोध के अभियान को नई ऊंचाईयों तक पहुंचा दिया है। हाल में ही इस विरोध के औजार के बतौर उन्होंने मुस्लिम हीरों की फिल्मों के बहिष्कार का नया तरीका ईजाद किया है। पहले आमिर खान की फिल्म को निशाने पर लिया गया और अब शाहरूख खान की फिल्म पठान को निशाने पर लिया जा रहा है।

पठान फिल्म का विरोध उसके पहले गाने ‘बेशरम रंग’ के सामने आते ही शुरू हो गया। फिल्म का विरोध करने वाले संघ/भाजपा के लोगों का कहना है कि इस फिल्म में हिरोइन दीपिका पादुकोण भगवा रंग की बिकनी पहन हिन्दू धर्म का अपमान कर रही है। इसलिए फिल्म का बहिष्कार होना चाहिए। जगह-जगह विरोध के बाद सेंसर बोर्ड ने भी इस गाने व कुछ अन्य दृश्यों को बदलने का निर्देश फिल्म निर्माताओं को दे दिया है।

पिछले दिनों देश में जैसे-जैसे हिन्दू फासीवादी मजबूत हुए हैं उनका हिंदू धर्म उतना ही संवेदनशील होता गया है। अब वह किसी महिला के भगवा बिकनी पहनने से ही आहत होने लग गया है। गौरतलब है कि इन्हें फिल्मों में बिकनी के जरिये देह प्रदर्शन से दिक्कत नहीं है। इन्हें दिक्कत भगवा रंग की बिकनी में देह प्रदर्शन से है।

भगवा गमछाधारी संघ-भगवा के लम्पट किसी भी निर्दोष व्यक्ति को सरेआम धमकायें तब हिन्दू धर्म आहत नहीं होता। ये भगवा गमछाधारी किसी मुसमलान की लिंचिंग कर दें तब भी हिंदू धर्म आहत नहीं होता। ये भगवा गमछाधारी किसी दंगे में मुस्लिम महिला का बलात्कार कर देें तब भी हिंदू धर्म आहत नहीं होता। हां ये सिर्फ इनके निशाने पर रहे कलाकार द्वारा भगवा बिकनी पहनने से आहत हो जाता है।

स्पष्ट है कि हिंदू धर्म के इन ठेकेदारों के हिंदू धर्म के आहत होने की परिभाषा मनमानी है। जिस भी करतूत से चाहे वो कितनी की काली क्यों न हो अगर साम्प्रदायिक वैमनस्य बढ़ता हो तो इससे इनका हिंदू धर्म गौरवान्वित होता है। बिलकिस के बलात्कारी, अखलाक-जुनैद के हत्यारे, धर्म सभा में जहरीले भाषण देते भगवा संत इनके हिंदू धर्म का गौरव बढ़ाते हैं।

जहां तक प्रश्न दीपिका-शाहरुख से इनकी परेशानी का है तो इन फिल्मी कलाकारों ने एक के बाद एक फिल्में राष्ट्रवाद का छौंका लगी बनाकर संघी ताकतों की मदद ही की है। इन्होंने कभी भी खुलकर हिन्दू फासीवादियों का विरोध नहीं किया। इसके बावजूद अगर इनसे संघी फासीवादियों को परेशानी हैं तो इसलिए कि इन्होंने अक्षय कुमार-विवेक अग्निहोत्री की तरह संघी ताकतों के आगे आत्मसमर्पण कर उनके सुर में सुर नहीं मिलाया। कि दीपिका जेएनयू छात्रों के समर्थन में जेएनयू पहुंच गयी। कि शाहरुख ने कभी दबी जुबान में असहिष्णुता बढ़ने की बातें कीं।

संघी ताकतें आज इस कदर मजबूत हो चुकी हैं कि वे खुलेआम धनाढ्य हीरो-हीरोइनों को भी अपने हिसाब से संचालित करने की जिद पकड़ रही हैं। जो भी उनकी जिद के आगे नहीं झुकेगा उसे लांक्षित करने में ये पीछे नहीं रहेंगी।

शाहरुख-दीपिका या भारतीय फिल्म उद्योग आज अपने बोये की फसल काट रहा है। बीते वर्षों में अंधराष्ट्रवाद से ग्रस्त जितनी फिल्में इन्होंने बनायीं उसका लाभ प्रकारान्तर से हिन्दू फासीवादियों ने उठाया। अब ये हिंदू फासीवादी इतने मजबूत हो गये हैं कि वे समूची फिल्म इंडस्ट्री को अपने इशारे पर नचाना चाहते हैं। वे कहानी से लेकर वेशभूषा अपने मुताबिक चाहते हैं। वे चाहते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री कश्मीर फाइल्स-रामसेतु के ही नित नये संस्करण बनाये। फिल्म इंडस्ट्री हिटलर के उद्यम में तब्दील हो जाये।

देखने की बात होगी कि कभी अंधराष्ट्रवाद तो कभी प्रेम के बहाने अकूत दौलत कमाने वाले भारतीय फिल्म उद्योग के कलाकार संघी हुक्मरानों के आगे अक्षय कुमार सरीखा नतमस्तक होते हैं या फिर इनसे टकराने का कुछ साहस दिखलाते हैं।

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