भोजनमाता यूनियन का सम्मेलन

/bhojanmaata-union-kaa-sammelan

भोजनमाता यूनियन का पहला सम्मेलन हरिद्वार में 2-3, जनवरी को सम्पन्न हुआ। सम्मेलन में उत्तराखंड के अलग-अलग जगह जैसे रामनगर, हल्द्वानी, हरिद्वार, गौला पार, गरमपानी और अन्य पहाड़ी इलाकों से भोजनमाताएं इकट्ठा हुईं। इस सम्मेलन में भोजनमाताओं ने अपनी यूनियन को मजबूत बनाने और संगठन को और ज्यादा कैसे मजबूत बनाएं, आगे बढ़ायें इस बारे में बातचीत की।
     
इस संगठन में ज्यादातर भोजनमाताएं पढ़ी-लिखी नहीं हैं, फिर भी अपने अधिकारों के लिए इतनी मजबूती से आगे आईं और यूनियन बनाई ये बहुत बड़ी बात है। पढ़ी-लिखी नहीं होने के बावजूद अपने हक-अधिकारों के लिए सरकारी अफसरों और मुख्यमंत्री आवास को घेरना और उनके सामने डट कर खड़े होना, यह उनकी हिम्मत को दिखाता है।
    
भोजनमाताओं के सम्मेलन में जाने के बाद मुझे बहुत कुछ सीखने को मिला। सम्मेलन खत्म होने के बाद जब जुलूस निकालने की बारी आती है, तब भोजनमाताएं नारे लगाती हैं। सारे नारे बड़े जोश में लगाए जाते हैं लेकिन एक नारा उन्हें बहुत पसंद आया- फूल नहीं चिंगारी हैं
हम उत्तराखंड की नारी हैं
    
इस नारे को लगाने के लिए वो खुद माइक हाथ में लेकर कहती हैं, ये वाला नारा लगाओ।
    
जहां पर लोग अपने निजी हितों के लिए नेताओं से समझौता कर लेते हैं, सिर्फ अपना मतलब पूरा करने के बारे में सोचते हैं वहां कम पढ़ी-लिखी होने के बावजूद अपनी घरेलू जिम्मेदारी निभाने के साथ खुद को एकजुट और संगठित कर, अपने अधिकारों के लिए आवाज उठा रहीं हैं, जो हमें बहुत कुछ सिखाता है।
    
दस्तावेज को दसताना कहने वाली भोजनमाताओं के संघर्ष की यह शुरुआत है जिसे अभी लंबा सफर तय करना है। आने वाले भविष्य की लड़ाई में इनकी आवाज मजबूती से बहरी सरकार को सुनाई देगी।                   -आरती, काशीपुर

आलेख

/modi-sarakar-waqf-aur-waqf-adhiniyam

संघ और भाजपाइयों का यह दुष्प्रचार भी है कि अतीत में सरकार ने (आजादी के बाद) हिंदू मंदिरों को नियंत्रित किया; कि सरकार ने मंदिरों को नियंत्रित करने के लिए बोर्ड या ट्रस्ट बनाए और उसकी कमाई को हड़प लिया। जबकि अन्य धर्मों विशेषकर मुसलमानों के मामले में कोई हस्तक्षेप नहीं किया गया। मुसलमानों को छूट दी गई। इसलिए अब हिंदू राष्ट्रवादी सरकार एक देश में दो कानून नहीं की तर्ज पर मुसलमानों को भी इस दायरे में लाकर समानता स्थापित कर रही है।

/china-banam-india-capitalist-dovelopment

आजादी के दौरान कांग्रेस पार्टी ने वादा किया था कि सत्ता में आने के बाद वह उग्र भूमि सुधार करेगी और जमीन किसानों को बांटेगी। आजादी से पहले ज्यादातर जमीनें राजे-रजवाड़ों और जमींदारों के पास थीं। खेती के तेज विकास के लिये इनको जमीन जोतने वाले किसानों में बांटना जरूरी था। साथ ही इनका उन भूमिहीनों के बीच बंटवारा जरूरी था जो ज्यादातर दलित और अति पिछड़ी जातियों से आते थे। यानी जमीन का बंटवारा न केवल उग्र आर्थिक सुधार करता बल्कि उग्र सामाजिक परिवर्तन की राह भी खोलता। 

/amerika-aur-russia-ke-beech-yukrain-ki-bandarbaant

अमरीकी साम्राज्यवादियों के लिए यूक्रेन की स्वतंत्रता और क्षेत्रीय अखण्डता कभी भी चिंता का विषय नहीं रही है। वे यूक्रेन का इस्तेमाल रूसी साम्राज्यवादियों को कमजोर करने और उसके टुकड़े करने के लिए कर रहे थे। ट्रम्प अपने पहले राष्ट्रपतित्व काल में इसी में लगे थे। लेकिन अपने दूसरे राष्ट्रपतित्व काल में उसे यह समझ में आ गया कि जमीनी स्तर पर रूस को पराजित नहीं किया जा सकता। इसलिए उसने रूसी साम्राज्यवादियों के साथ सांठगांठ करने की अपनी वैश्विक योजना के हिस्से के रूप में यूक्रेन से अपने कदम पीछे करने शुरू कर दिये हैं। 
    

/yah-yahaan-nahin-ho-sakata

पिछले सालों में अमेरिकी साम्राज्यवादियों में यह अहसास गहराता गया है कि उनका पराभव हो रहा है। बीसवीं सदी के अंतिम दशक में सोवियत खेमे और स्वयं सोवियत संघ के विघटन के बाद अमेरिकी साम्राज्यवादियों ने जो तात्कालिक प्रभुत्व हासिल किया था वह एक-डेढ़ दशक भी कायम नहीं रह सका। इस प्रभुत्व के नशे में ही उन्होंने इक्कीसवीं सदी को अमेरिकी सदी बनाने की परियोजना हाथ में ली पर अफगानिस्तान और इराक पर उनके कब्जे के प्रयास की असफलता ने उनकी सीमा सारी दुनिया के सामने उजागर कर दी। एक बार फिर पराभव का अहसास उन पर हावी होने लगा।

/hindu-fascist-ki-saman-nagarik-sanhitaa-aur-isaka-virodh

उत्तराखंड में भाजपा सरकार ने 27 जनवरी 2025 से समान नागरिक संहिता को लागू कर दिया है। इस संहिता को हिंदू फासीवादी सरकार अपनी उपलब्धि के रूप में प्रचारित कर रही है। संहिता