फरीदाबाद/ हरियाणा के ईएसआईसी मेडिकल कालेज अस्पताल व डिस्पेंसरियों में इलाज के नाम पर कभी पूरी दवाइयां नहीं तो कभी डाक्टर नहीं, कभी जांच नहीं जैसे मामलों पर उत्पीड़न झेल रहे मजदूरों की तरह-तरह की समस्याओं को लेकर इंकलाबी मजदूर केंद्र फरीदाबाद ने 4 दिसम्बर 2024 को ईएसआईसी अस्पताल में धरना-प्रदर्शन किया।
शहर में 21 नवंबर से ईएसआईसी की उपरोक्त समस्याओं पर एक पर्चा निकालकर तथा उसमें सात मांगें उठाते हुए औद्योगिक सेक्टरों से लेकर शहर की डिस्पेंसरियों, अस्पतालों, मेडिकल कालेज पर आये मरीजों एवं उनके परिजनों के बीच 2 दिसंबर तक इसका वितरण किया गया। तय दिन और समय के अनुसार 4 दिसंबर सुबह 10ः00 बजे छभ्3 ईएसआईसी मेडिकल कालेज गेट के सामने सैकड़ों की तादाद में इंकलाबी मजदूर केंद्र के कार्यकर्ता तथा विभिन्न फैक्टरी के महिला एवं पुरुष मजदूरों के साथ एक दिवसीय धरना-प्रदर्शन किया गया। सात मांगों वाला ज्ञापन डीन महोदय को एवं उनके द्वारा श्रम मंत्री भारत सरकार को दिया गया।
अच्छी बात यह भी रही कि इलाज के लिए आ रहे मजदूरों खासकर महिला मजदूरों और उनके परिजनों ने मंच पर आकर अपनी समस्याओं को रखा और अस्पताल में हो रही लापरवाहियों के प्रति अपना आक्रोश जाहिर किया।
ज्ञापन लेने गेट पर आये डीन महोदय से भी लोगों ने जमकर सवाल-जवाब किये। मीडिया बंधुओं ने मांगों के समर्थन में डीन महोदय से काफी सवाल-जवाब किये। ईएसआईसी के गेट पर लाल झंडे के साथ काफी संख्या में तख्तियां लेकर महिला एवं पुरुष मजदूर पूरे धरने के दौरान डटे रहे। जिन पर इलाज के दौरान आ रही समस्याओं को लिखा गया था।
ज्ञापन लेते हुए डीन ने बताया कि उसने दवाई वितरण के काउंटरों की संख्या 9 से बढ़ा कर 14 कर दी है। जांच की कुछ और मशीनें आ रही हैं। इसके अलावा अन्य घोषणाएं भी कीं।
धरना-प्रदर्शन व ज्ञापन की कार्रवाई में इमके के अलावा कई संगठनों के प्रतिनिधियों ने भागीदारी की। एच एम एस से राष्ट्रीय उपाध्यक्ष, श्री एस डी त्यागी, सामाजिक कार्यकर्ता यशवंत मौर्य, सामाजिक कार्यकर्ता भोपाल कश्यप, सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार खरवार तथा कई अन्य समाज के जागरुक लोगों ने भी भागीदारी की।
-फरीदाबाद संवाददाता
ईएसआईसी स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार के लिए धरना-प्रदर्शन
राष्ट्रीय
आलेख
फिलहाल सीरिया में तख्तापलट से अमेरिकी साम्राज्यवादियों व इजरायली शासकों को पश्चिम एशिया में तात्कालिक बढ़त हासिल होती दिख रही है। रूसी-ईरानी शासक तात्कालिक तौर पर कमजोर हुए हैं। हालांकि सीरिया में कार्यरत विभिन्न आतंकी संगठनों की तनातनी में गृहयुद्ध आसानी से समाप्त होने के आसार नहीं हैं। लेबनान, सीरिया के बाद और इलाके भी युद्ध की चपेट में आ सकते हैं। साम्राज्यवादी लुटेरों और विस्तारवादी स्थानीय शासकों की रस्साकसी में पश्चिमी एशिया में निर्दोष जनता का खून खराबा बंद होता नहीं दिख रहा है।
यहां याद रखना होगा कि बड़े पूंजीपतियों को अर्थव्यवस्था के वास्तविक हालात को लेकर कोई भ्रम नहीं है। वे इसकी दुर्गति को लेकर अच्छी तरह वाकिफ हैं। पर चूंकि उनका मुनाफा लगातार बढ़ रहा है तो उन्हें ज्यादा परेशानी नहीं है। उन्हें यदि परेशानी है तो बस यही कि समूची अर्थव्यवस्था यकायक बैठ ना जाए। यही आशंका यदा-कदा उन्हें कुछ ऐसा बोलने की ओर ले जाती है जो इस फासीवादी सरकार को नागवार गुजरती है और फिर उन्हें अपने बोल वापस लेने पड़ते हैं।
इजरायल की यहूदी नस्लवादी हुकूमत और उसके अंदर धुर दक्षिणपंथी ताकतें गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों का सफाया करना चाहती हैं। उनके इस अभियान में हमास और अन्य प्रतिरोध संगठन सबसे बड़ी बाधा हैं। वे स्वतंत्र फिलिस्तीन राष्ट्र के लिए अपना संघर्ष चला रहे हैं। इजरायल की ये धुर दक्षिणपंथी ताकतें यह कह रही हैं कि गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को स्वतः ही बाहर जाने के लिए कहा जायेगा। नेतन्याहू और धुर दक्षिणपंथी इस मामले में एक हैं कि वे गाजापट्टी से फिलिस्तीनियों को बाहर करना चाहते हैं और इसीलिए वे नरसंहार और व्यापक विनाश का अभियान चला रहे हैं।
कहा जाता है कि लोगों को वैसी ही सरकार मिलती है जिसके वे लायक होते हैं। इसी का दूसरा रूप यह है कि लोगों के वैसे ही नायक होते हैं जैसा कि लोग खुद होते हैं। लोग भीतर से जैसे होते हैं, उनका नायक बाहर से वैसा ही होता है। इंसान ने अपने ईश्वर की अपने ही रूप में कल्पना की। इसी तरह नायक भी लोगों के अंतर्मन के मूर्त रूप होते हैं। यदि मोदी, ट्रंप या नेतन्याहू नायक हैं तो इसलिए कि उनके समर्थक भी भीतर से वैसे ही हैं। मोदी, ट्रंप और नेतन्याहू का मानव द्वेष, खून-पिपासा और सत्ता के लिए कुछ भी कर गुजरने की प्रवृत्ति लोगों की इसी तरह की भावनाओं की अभिव्यक्ति मात्र है।